तनावमुक्‍त आनंदमय जीवन हेतु युवा स्‍वसूचना एवं अध्‍यात्‍म की ओर बढेें ! – सद़्‍गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे, राष्‍ट्रीय मार्गदर्शक, हिन्‍दू जनजागृति समिति

ग्‍वालियर के आई.टी.एम. महाविद्यालय में ‘तनावमुक्‍ति’ विषय पर ऑनलाइन व्‍याख्‍यान !

ग्‍वालियर (म.प्र) – ‘‘कोरोना महामारी के कारण पढाई, नौकरी को लेकर युवाओं के मन में भविष्‍य की चिंता होना स्‍वाभाविक है । तनाव के कारण शारीरिक रोगों के साथ हमारे पढाई और दिनचर्या पर भी परिणाम होता है । फिर युवा निराश होकर किसी व्‍यसन का सहारा लेते दिखते हैं । ऐसे विपरीत चक्र से बाहर निकलने के लिए युवा स्‍वसूचना एवं अध्‍यात्‍म का आधार ले । स्‍वसूचना से मन सकारात्‍मक बनाकर हम तनावमुक्‍त रह सकते हैं । अध्‍यात्‍म मन को सकारात्‍मक तथा आनंदमय जीवन जीना सिखाता है’’, ऐसा सद़्‍गुरु डॉ. पिंगळेजी ने कहा ।
यहां के आई.टी.एम. महाविद्यालय द्वारा आयोजित ‘तनावमुक्‍ति एवं संतुलित जीवन का रहस्‍य’ विषय पर वे विद्यार्थियों को संबोधित कर रहे थे । इस व्‍याख्‍यान से १७० विद्यार्थी लाभान्‍वित हुए । कार्यक्रम का आयोजन राष्‍ट्रीय सेवा योजना प्रमुख तथा महाविद्यालय के मेकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के सहायक प्रा. नरेंद्र कुमार वर्माजी ने किया और कंपनी सेक्रेटरी विभाग की प्रोफेसर श्रीमती अर्चना तोमर ने कार्यक्रम का संचालन किया । सूत्रसंचालन छात्रा
कु. अनुष्‍का राजपूत ने किया । कार्यक्रम के आयोजन हेतु महाविद्यालय की छात्रा कु. नीति खांडेकर ने समन्‍वय किया ।
श्री. वर्माजी ने कहा कि ‘‘तनाव हमेें बडी मात्रा में प्रभावित करता है । विद्यार्थी तनाव की स्‍थिति में डगमगा जाते हैं । अध्‍यात्‍म में सीखने के इच्‍छुक रहे तो हम सकारात्‍मक स्‍थिति में रह सकते हैं । हमारे लिए सौभाग्‍य की बात होगी कि आप नियमित ऐसे कार्यक्रम हमारे विद्यालय में कर बच्‍चों को सही दिशा में जाने के लिए प्रेरित करें ।’’

अध्‍यात्‍म के द्वारा विद्यार्थी उजागर करें अपनी योग्‍यता !

हम सभी फल को नीचे गिरता देखते हैं, पर न्‍यूटन के मन में ही ‘यह गुरुत्‍वाकर्षण है’, इसका विचार क्‍यों आया ? वस्‍तुओं को पृथ्‍वी गुरुत्‍वाकर्षण से अपनी ओर खींचती है, यह सिद्धांत उन्‍हें ही क्‍यों ध्‍यान में आया ? सुनामी या भूकंप जैसी आपदा के समय पशुआें को पहले ही सूचना कैसे मिल जाती है ? जो पशुआें को ध्‍यान में आता है, वह विज्ञान और मनुष्‍य क्‍यों नहीं आता ? नास्‍त्रेदमस के पास ऐसा क्‍या था कि उसने आगे का काल देखकर भविष्‍य लिखकर रखा । इसका उत्तर केवल अध्‍यात्‍मशास्‍त्र दे सकता है । साधना द्वारा हम भी हमारी छठी इंद्रिय जागृत कर सकते हैं । विज्ञान के साथ तुलना नहीं हो रही, इसलिए अध्‍यात्‍मशास्‍त्र को नकारना अनुचित है । पूर्व में अध्‍यात्‍म था पर विज्ञान नहीं था, वर्तमान में अध्‍यात्‍म को विज्ञान की धरातल पर सभी के सामने रखने की आवश्‍यकता है ।