चीन और पाकिस्तान जैविक अस्त्र बना रहे हैं ! – ऑस्ट्रेलिया के संकेतस्थल का दावा

  • चीन और पाकिस्तान यदि जैविक अस्त्र बना रहे हों, तो उनसे रक्षा होने हेतु भारत को भी औषधि बनानी होगी और उसके लिए अभी से प्रयास करने चाहिए !
  • ऑस्ट्रेलिया के संकेतस्थल को जो जानकारी मिली, क्या वह भारतीय गुप्तचर विभागों को मिली है ? यदि मिली हो, तो सरकार ने उसके लिए क्या उपाय खोजे हैं, जनता को इसकी जानकारी मिलना आवश्यक !

कैनबेरा (ऑस्ट्रेलिया) – ‘चीन-पाकिस्तान इकॉनॉमिक कॉरिडॉर’ (सीपीईसी – चीन-पाक आर्थिक महामार्ग) की आड में चीन और पाकिस्तान जैविक अस्त्र बना रहे हैं । पिछले ५ वर्षाें से इस पर काम चल रहा है । ऑस्ट्रेलिया स्थित संकेतस्थल ‘क्लाक्सोन’ ने यह दावा किया है । विशेष बात यह कि जिस प्रयोगशाला के विरुद्ध कोरोना विषाणु की उत्पत्ति करने का आरोप लगा है, उस वुहान की ‘इन्स्टीट्यूट ऑफ वाइरॉलॉजी’ को ही इसका दायित्व दिया गया है, इस जानकारी में यह भी कहा गया है ।

१. इस संकेतस्थल पर प्रसारित एंथनी क्लान के ब्यौरे के अनुसार वुहान के वैज्ञानिक पाकिस्तान में वर्ष २०१५ से ही जैविक अस्त्र की निर्मिति के लिए शोधकार्य कर रहे हैं ।

२. ‘क्लाक्सोन’ संकेतस्थल ने यह दावा किया है कि पिछले महीने में चीन और पाकिस्तान ने अपने जैविक अस्त्रों की क्षमता बढाने हेतु ३ वर्षाें का और एक गुप्त अनुबंध किया है । इन दोनों देशों के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया शोध नियतकालिक में छपा है ।

३. यह शोधकार्य दिसंबर २०१७ से मार्च २०२० तक किया गया है । यह शोधकार्य पशुओं से मनुष्य में होनेवाले संक्रमणकारी विषाणुओं का परिचय और लक्षणों पर आधारित है ।

४. इस शोध में नील वाईरस, मर्स-कोरोना वाईरस, क्रिमिया-कौंगो हेमोरजिक फीवर वाईरस, थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम वाईरस और चिकनगुनिया वाईरस पर प्रयोग किए गए हैं । इसके लिए सहस्रों पाकिस्तानी महिलाएं, पुरुष और बच्चों के रक्त के नमूने लिए गए । आज इन विषाणुओं से बचने के लिए कोई भी रामबाण औषधि नहीं है । इन विषाणुओं में से कुछ विषाणु विश्व के सबसे घातक और संक्रमणकारी विषाणु हैं ।