हेतुतः अनुचित उल्लेख कर हिन्दू और मुसलमानों में दंगे भडकाने का आपका सुप्त उद्देश्य तो नहीं है ?
डोंबीवली के अक्षय फाटक ने पत्र द्वारा दैनिक ‘लोकसत्ता’ के संपादक स्पष्टीकरण मांगा
- हिन्दुआें की धार्मिक भावनाआें के अपमान के संबंध में जागरूक रहकर त्वरित स्पष्टीकरण मांगनेवाले श्री. अक्षय फाटक का अभिनंदन ! ऐसी सर्तकता और तत्परता प्रत्येक धर्मप्रेमी हिन्दू दिखाए, तो हिन्दू राष्ट्र दूर नहीं है !
- मदर टेेरेसा से संबंधित लिखे गए लेख पर ईसाइयों द्वारा उठाई गई आपत्ति के पश्चात अग्रलेख पीछे लेनेवाले लोकसत्ता के संपादक क्या हिन्दुआें की क्षमा मांगने का सौजन्य दिखाएंगे ?
मुंबई, २० जुलाई (वार्ता.) – अयोध्या की विवादित भूमि ‘रामजन्मभूमि’ है, ऐसा स्पष्ट निर्णय सर्वोच्च न्यायालय ने दिया है । ऐसा होते हुए भी ‘यह स्थान बाबरी मस्जिद की ही था’, क्या ऐसा भ्रम आप मुसलमानों में उत्पन्न करने का प्रयत्न कर रहे हैं ? हेतुतः ऐसा अनुचित उल्लेख कर मुसलमान और हिन्दुआें में अनबन उत्पन्न करने और दंगे भडकाने का कहीं आपका सुप्त उद्देश्य तो नहीं है ?, यह डोंबीवली के धर्मप्रेमी श्री. अक्षय फाटक ने पत्र द्वारा दैनिक ‘लोकसत्ता’ के संपादक गिरीश कुबेर से पूछा है ।
१९ जुलाई को दैनिक ‘लोकसत्ता’ के पृष्ठ क्रमांक १ पर ‘राममंदिर के शिलान्यास के लिए प्रधानमंत्री मोदी को निमंत्रण’ इस शीर्षक के अंतर्गत मुख्य समाचार प्रकाशित किया गया है । इस समाचार के शिरोभाग में ‘अयोध्या में बाबरी मस्जिद के स्थान पर राममंदिर निर्माण कार्य का भूमिपूजन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों करवाने के लिए रामजन्मभूमि तीर्थक्षेत्र न्यास ने उन्हें ३ अथवा ५ अगस्त इन दो दिनांकों का विकल्प दिया है’, ऐसा उल्लेख किया गया है । इस संबंध में श्री. अक्षय फाटक ने पत्र द्वारा दैनिक ‘लोकसत्ता’ के संपादक का निषेध किया है ।
इस पत्र में श्री. अक्षय फाटक ने आगे कहा है कि,
१. श्रीराम और अयोध्या करोडों भक्तों की आस्था का और आत्मिक विषय है । देश में बहुसंख्यक हिन्दू समाज होते हुए भी, इस विवाद में न्यायपालिका तय करेगी, वह निर्णय मान्य करने की धैर्यशीलता और सहिष्णुता इस देश के हिन्दू समाज ने दिखाई है ।
२. रामजन्मभूमि का उल्लेख ‘बाबरी मस्जिद का स्थान’, करना, यह एक अक्षम्य चूक ही नहीं, भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय और न्यायव्यवस्था का भी अपमान है । इस प्रकार का उल्लेख कर आप कहीं सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय कोे झूठ तो सिद्ध नहीं कर रहे हैं ?, ऐसे अनेक प्रश्न उपस्थित हो रहे हैं ।
३. ऐसा अनुचित उल्लेख कर आप समस्त हिन्दू समाज, प्रभु रामचंद्र के असंख्य भक्तों और श्रद्धालुआें का तथा देश के सर्वोच्च न्यायपालिका का भी अपमान किया है ।
४. इस संबंध में आपसे त्वरित स्पष्टीकरण आना अपेक्षित है । केवल स्पष्टीकरण न छापते हुए आप समस्त रामभक्त और न्यायालय की क्षमा मांगें ।
५. इस संबंध में स्पष्टीकरण न देने पर यह निश्चित हो जाएगा कि यह उल्लेख आपने जानबूझकर किया है । इससे न्यायालय का अपमान करने के प्रकरण में आप पर कानूनी कार्यवाही करने की मांग मैं सरकार से करनेवाला हूं । इसलिए आप इस प्रकरण में त्वरित ध्यान दें तथा चूक सुधारकर क्षमा मांगें ।