‘आपातकाल में मार्ग दिखाने हेतु ईश्‍वरस्वरूप तीन गुरु मिलना’, यह सनातन के साधकों का सौभाग्य !

श्री. विनायक शानभाग

आजकल संपूर्ण पृथ्वी पर ‘कोरोना’ विषाणुरूपी संकट मंडरा रहा है । यह संकटकाल ही है । इसके कारण विश्‍व के सभी राष्ट्र, समाज के लोग भय और चिंता से ग्रस्त हैं । कई करोड लोग केवल एक बार का भोजन कर पा रहे हैं, तो अनेक लोगों के घर भी नहीं रह गए हैं । ‘भविष्य कैसा होगा’, इस चिंता से अनेक लोग मनोरोगी बन गए हैं । समाज के लिए इस संकटकाल का जीवन, तट से दूर, विशाल समुद्र के मध्य, अंधेरी रात में और अत्यंत तीव्रगति से चल रही हवा में फंसी एक छोटी सी नौका में अकेले रहने जैसा है । उन्हें मार्ग दिखानेवाला कोई भी नहीं है; परंतु सनातन के साधकों का यह सौभाग्य है कि ३ गुरु उनका मार्गदर्शन कर रहे हैं । साधकों को इस संकटकाल में ‘गुरुमुख से निकला शब्द किसी मंत्र की भांति कार्य कर रहा है’, इसकी अनुभूति होने ही वाली है । साधकों ने इन ३ गुरुओं की आज्ञाओं तथा सभी कार्यपद्धतियों का, उत्तरदायी साधकों की सूचनाओं और ‘सनातन प्रभात’ के माध्यम से मिलनेवाली सूचनाओं का पालन किया, तो ये तीनों गुरु साधकों को इस संकटकाल से सुरक्षित बाहर निकालेंगे ।

१. सनातन के तीनों गुरुओं के पृथ्वी पर स्थित केवल अस्तित्व से ही साधकों की रक्षा होगी !

     ‘जिनकी प्राणवायु में अनंत कोटि ब्रह्मांड में एक क्षण प्रवेश कर आनेवाली वायु है, जिनकी वाणी में देवी सरस्वतीजी विराजमान हैं और जिनकी वाणी से निकले शब्द सुनने के लिए देवता भी आतुर रहते हैं’, सनातन के ऐसे तीनों गुरु परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी अलौकिक हैं । पृथ्वी पर स्थित ‘इन तीनों गुरुओं के केवल अस्तित्व से ही पूरे विश्‍व में सनातन के सभी साधकों की रक्षा होनेवाली है’, इसके प्रति मुझमें दृढ श्रद्धा है । सनातन के तीनों गुरु तथा उनके प्रति श्रद्धा रखने के कारण इस घोर संकटकाल से पार होनेवाले सनातन के साधक वर्ष २०२३ के पश्‍चात इस सृष्टि पर नया इतिहास रचनेवाले हैं ।

२. श्रीविष्णुजी के अभय हस्त की भांति साधकों पर कृपाछत्र रखनेवाले परात्पर गुरु डॉक्टरजी !

     हम सभी ने श्रीविष्णुजी के अभय हस्त के संदर्भ में सुना है । श्री विष्णुस्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के अभय हस्तोंतले सभी साधक सुरक्षित हैं । संकटकाल में ही श्रीविष्णुजी के ‘अभय हस्त’ का महत्त्व ध्यान में आता है । इसके आगे भी कोरोना जैसे अनेक संकटकाल आएंगे; परंतु गुरुदेवजी साधकों का हाथ पकडकर उन्हें किसी पुष्प की भांति इससे पार ले जानेवाले हैं । ‘श्रीविष्णुजी का अभय हस्त सभी साधकों के मस्तक पर सदैव बना रहे और उनकी छत्रछाया के तले सभी साधक आनंद के साथ संकटकाल का सामना कर सकें’, यही ‘श्रीविष्णु के अवतार परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के चरणों में प्रार्थना है ।’ (९.५.२०२०)

– श्री. विनायक शानभाग, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.