मारे गए आतंकवादियों के बच्चों की छात्रवृत्ति में दोगुनी वृद्धि करने के जम्मू-कश्मीर प्रशासन के प्रस्ताव का राष्ट्रप्रेमियों ने किया विरोध

  • मूलतः आतंकवादियों के बच्चों को छात्रवृत्ति दी ही क्यों जाती है ? पुनर्वास के नामपर यदि ऐसी सुविधा मिलती हो, तो आतंकी इससे प्रति आश्‍वस्त रहेंगे कि यदि ‘मैं मारा गया, तब भी सरकार मेरे बच्चों की चिंता करेगी ।’ इस प्रकार की योजना लानेवाले आतंकवाद को बल ही दे रहे हैं, इसे ध्यान में रखें !
  • आतंकवादियों के बच्चों को छात्रवृत्ति देने का प्रस्ताव लानेवालों ने क्या कभी वीरगति को प्राप्त सैनिकों के बच्चों को छात्रवृत्ति दी है ?
  • सैनिक अपने प्राण संकट में डालकर आतंकियों को मार डालते हैं और सरकारी तंत्र ऐसी योजना चलाकर सैनिकों के शौर्य का अपमान करते हैं, यह देशद्रोह है !

जम्मू – मारे गए आतंकवादियों के बच्चों को वर्ष २००८ से अर्थात तत्कालीन कांग्रेस सरकार के शासनकाल में छात्रवृत्ति दी जाती है । (कांग्रेस का आतंकवाद प्रेम जान लें ! – संपादक) इस योजना के अंतर्गत प्रतिमाह ७५० रुपए दिए जाते हैं । अब यह छात्रवृत्ति को दोगुनी करने का प्रस्ताव लाया गया है, जिसका राष्ट्रप्रेमियों ने तीव्र विरोध किया है । जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने हाल ही में राज्य के नागरिकों को २७ प्रकार की सुविधाएं देनेवाला विज्ञापन प्रसारित किया । इस विज्ञापन के १६वें सूत्र में मारे गए आतंकवादियों के अनाथ बच्चों को समाजकल्याण विभाग से छात्रवृत्ति देने की बात कही गई है । तो दूसरी ओर आतंकवादियों के बच्चों को ‘ऑनलाइन’ छात्रवृत्ति देने की सरकार की नीति उजागर होने के समाचारों के पश्‍चात सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय के आधिकारिक संकेतस्थल से उसकी जानकारी हटाई गई ।

१. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मारे गए आतंकवादियों के बच्चों को दी जानेवाली छात्रवृत्ति एवं अन्य सुविधाओं में दोगुनी वृद्धि करने का प्रस्ताव रखा है । (सरकार ऐसा प्रस्ताव लाकर किस प्रकार की परंपरा स्थापित करने का प्रयास कर रही है ? देश के अस्तित्व को मिटाने के लिए प्रयासरत आतंकवादियों के बच्चों को इस प्रकार की सुविधाएं देने की घटना विश्‍व में केवल भारत में ही देखने को मिलती होगी ! – संपादक) परंतु आतंकवादियों द्वारा मारे गए लोगों के परिवारवालों को दी जानेवाली सुविधाओं में कुछ ही मात्रा में वृद्धि की जाएगी । इस संदर्भ में जम्मू-कश्मीर प्रशासन से आधिकारिक रूप से कागदपत्रों से इसकी जानकारी मिली है ।

२. उसमें कहा गया है कि वर्ष २००८ में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार ने आतंकवादियों के अनाथ बच्चों को छात्रवृत्ति देने के प्रस्ताव को सहमति दी थी । उसके अनुसार अनाथ बच्चा १८ वर्ष का होनेतक उसे प्रतिमाह ७५० रुपए दिए जाने थे, साथ ही प्रतिवर्ष शिक्षाशुल्क के लिए ५ सहस्र रुपए, तो छात्रालय के लिए ७ सहस्र रुपए दिए जाते थे । उसके लिए कुल १९ करोड रुपए का प्रबंध किया गया था । वर्तमान में ऐसे बच्चों की कुल संख्या १ सहस्र ५५९ है । इस धनराशि में वृद्धि कर उसे प्रतिमाह १ सहस्र ५०० रुपए किया जाएगा ।

३. इस योजना का उद्देश्य मारे गए आतंकवादियों के बच्चों को समाज के मुख्य प्रवाह में पुनः स्थापित कर उन्हें अवसर उपलब्ध कराना है, अन्यथा वे समाज से अलग-थलग पड सकते हैं और उनपर भी आतंकी विचारधारा का प्रभाव पड सकता है ।

४. इस संदर्भ में एक सेना अधिकारी ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ‘मारे गए आतंकवादियों को आतंकवादी कहने के स्थानपर ‘मिलिटेंट’ (मिलिटेंट’ का एक अर्थ ‘लडाकू’ अथवा ‘योद्धा’ भी है ।) उन्हें ऐसा क्यों कहा गया है ? और आतंकवादियों के परिवारवाले ‘पीडित’ की श्रेणी में कैसे आते हैं ? पाक समर्थित आतंकवादियों के आक्रमणों में मारे गए लोगों के परिवारवालों को ‘पीडित’ कहा जाता है । यह सरकारी विज्ञापन तो पाक समर्थित आतंकवाद से लडते समय वीरगति को प्राप्त सैनिकों का अपमान है । प्रशासन की इस नीति के कारण देशद्रोहियों का मनोबल बढेगा ।’

५. वर्ष १९९८ में कुपवाडा सेक्टर में आतंकवादियों के साथ लडते हुए वीरगति को प्राप्त पुलिस उप अधीक्षक गुलबदन सिंह की पत्नी सुषमा सिंह ने प्रशासन की इस नीति के संदर्भ में कहा, ”यह नीती घावोंपर नमक छिडकनेवाली है । आतंकवादियों के कारण सैनिक वीरगति को प्राप्त हो रहे हैं । हमारा प्रशासन वीरगति को प्राप्त सैनिकों के परिवारवालों का विचार करने के स्थानपर मारे गए आतंकवादियों के परिवारवालों का विचार कर रहा है, जो सैनिकों का उपहास है ।”

६. सुषमा सिंह ने यह बताते हुए खेद व्यक्त किया कि ‘मेरे पति वर्ष १९९८ में वीरगति को प्राप्त हुए । तब से अभीतक मुझे सरकारी नौकरी नहीं मिली है ।’ सरकारी कार्यालयों के चक्कर काटकर ऊब गई सुषमा सिंह ने कहा कि ‘मैं भिखारी नहीं हूं । मैं वीरगति को प्राप्त हुए सैनिक की पत्नी हूं । प्रशासन कृपा कर हमारी भावनाओं से खेलना बंद करें ।’

योजना आरंभ करनेवाली कांग्रेस ने भाजपा की आलोचना की ।

वर्ष २००८ में कांग्रेस की ओर से छात्रवृत्ति योजना आरंभ की गई थी । वही कांग्रेस अब इस विषयपर भाजपा की आलोचना कर रही है । राज्य के कांग्रेस के प्रवक्ता राजेंद्र शर्मा ने कहा कि आज भाजपा का पाखंड उजागर हुआ है । उसी भाजपा ने आत्मसमर्पण करनेवाले आतंकवादियों की पुनर्वास नीति की आलोचना की है । आज वही भाजपा आतंकवादियों के बच्चों को छात्रवृत्ति दे रही है ।

प्रशासन के निर्णय के विरुद्ध आंदोलन

प्रशासन के इस निर्णय के विरुद्ध सूचना अधिकार कार्यकर्ता अमनदीन सिंह बोपाराय, साथ ही अनेक समाजसेवियों ने मिलकर आंदोलन किया । उन्होंने इस निर्णय को वापस लेने की मांग करते हुए कहा कि ‘सरकार का यह निर्णय तो हमारे वीरगति को प्राप्त हुए सैनिकों का अपमान है ।’

स्वयं के आतंकी पिता को ‘स्वतंत्रतावीर’ कहनेवाले आतंकियों के बच्चे क्या देशहित साधेंगे ?

भारतीय संसदपर आक्रमण करनेवाले मोहम्मद अफजल के लडके को जब १२वीं कक्षा की परीक्षा में अच्छे अंक मिले, तब उसके साथ कई भेंटवार्ताएं की गई । उस समय उसने अपने पिता का उल्लेख ‘स्वतंत्रतावीर’ कहकर किया था । इससे यही ध्यान में आता है कि सरकार आतंकवादियों के परिवारवालों को समाज की मुख्य धारा में लाने का भले कितना भी प्रयास क्यों न करे; परंतु उनकी धर्मांध वृत्ति नहीं जाती । यह उदाहरण ताजा होते हुए भी मारे गए आतंकवादियों के बच्चों को छात्रवृत्ति देना देशद्रोह है !