कोरोना की भीषण महामारी के समय आध्यात्मिक बल बढाने के संदर्भ में सनातन प्रभात में बताए नामजप के संदर्भ में इंदौर (मध्य प्रदेश) के हिन्दू जनजागृति समिति के श्री. आनंद जाखोटिया को समझ में आए सूत्र

श्री. आनंद जाखोटिया

     आजकल कोरोना महामारी पर प्रतिबंधात्मक उपचार के लिए सनातन प्रभात में चिकित्सा, साथ ही आध्यात्मिक बल बढाने हेतु श्री दुर्गादेव्यै नमः ३ बार, श्री गुरुदेव दत्त १ बार, श्री दुर्गादेव्यै नमः ३ बार और ॐ नमः शिवाय १ बार नामजप करने की सूचना पढने को मिली । उसके पश्‍चात नामजप करते समय मेरे मन में यह प्रश्‍न उठा कि यह नामजप करने के लिए क्यों बताया गया होगा । तब ईश्‍वर से मुझे निम्नांकित उत्तर मिला –

१. मनुष्यजाति पर उत्पन्न इस महामारी का संकट दूर होने हेतु श्री दुर्गादेवी का जप बताना

     ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश क्रमशः उत्पत्ति, स्थिति एवं लय से संबंधित देवता हैं । भले ऐसा हो; परंतु उत्पत्ति, स्थिति एवं लय का प्रत्यक्ष कार्य शक्ति के माध्यम से ही चलता है । उसके कारण सनातन संस्था के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा रचित शक्तिस्तवन का आरंभ ही आदिशक्ति तू, अंतशक्ति तू । जगज्जननी तू, लयकारी तू ॥ किया गया है । इसके कारण अब काल के रूप में मनुष्यजाति पर उत्पन्न यह संकट दूर होने के लिए उपासकों पर शक्ति की अर्थात श्री दुर्गादेवी की कृपा रहे; इसके लिए श्री दुर्गादेवी का जप बताया गया है ।

२. ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश का एकत्रित तत्त्व भगवान दत्तात्रेयजी में है । अतः श्री गुरुदेव दत्त नामजप बताया गया है ।

३. वर्तमान के लय अर्थात प्रकोप के कठिन काल में उपासकों पर भगवान शिवजी की विशेष कृपा बनी रहे; इसके लिए भगवान शिवजी का नामजप बताया गया है ।

     इस संकटकाल में साधकों को विशेष नामजप के माध्यम से रक्षा का आध्यात्मिक उपाय बतानेवाले गुरुदेवजी तथा संतों के चरणों में मैं कृतज्ञ हूं ।

– श्री. आनंद जाखोटिया, हिन्दू जनजागृति समिति के राज्य समन्वयक, मध्य प्रदेश एवं राजस्थान
(४.६.२०२०)  

इस अंक में प्रकाशित अनुभूतियां, जहां भाव, वहां भगवान इस उक्ति अनुसार साधकों की व्यक्तिगत अनुभूतियां हैं । वैसी अनूभूतियां सभी को हों, यह आवश्यक नहीं है । – संपादक

बुरी शक्ति : वातावरण में अच्छी तथा बुरी (अनिष्ट) शक्तियां कार्यरत रहती हैं । अच्छे कार्य में अच्छी शक्तियां मानव की सहायता करती हैं, जबकि अनिष्ट शक्तियां मानव को कष्ट देती हैं । प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के यज्ञों में राक्षसों ने विघ्न डाले, ऐसी अनेक कथाएं वेद-पुराणों में हैं । अथर्ववेद में अनेक स्थानों पर अनिष्ट शक्तियां, उदा. असुर, राक्षस, पिशाच को प्रतिबंधित करने हेतु मंत्र दिए हैं । अनिष्ट शक्ति के कष्ट के निवारणार्थ विविध आध्यात्मिक उपाय वेदादी धर्मग्रंथों में वर्णित हैं ।