१. ‘जिहाद’ क्या होता है ?
हिन्दू, ईसाई, बौद्ध अथवा जैनों के धार्मिक ग्रंथों में ‘जिहाद’ शब्द का संदर्भ नहीं है । उसका संदर्भ मुसलमानों के कुरान, सुरा, हदीस, फतवा, साथ ही औरंगजेब द्वारा लिखे गए ग्रंथ आलमगिरी में मिलता है । ‘जिहाद’ शब्द का अर्थ संघर्ष अथवा लडाई है । यह संघर्ष किसानों का हित, छात्रों का कल्याण अथवा समाज के अन्य समूहों के लिए किया जानेवाला संघर्ष नहीं है; अपितु इस्लाम के लिए किया जानेवाला संघर्ष है तथा यही कडवा सत्य है ।
२. प्राचीन काल से ही ‘भूमि जिहाद’ की विचारधारा कार्यरत
‘भूमि जिहाद’ (लैंड जिहाद) की संकल्पना भारतीयों के लिए कोई नई नहीं है । यह संकल्पना ‘लव जिहाद’ तथा ‘हलाल प्रमाणपत्र’ के माध्यम से वर्तमान में चल रहे ‘आर्थिक जिहाद’ की संकल्पना से भी पुरानी है । भारत के मुसलमान प्राचीन काल से ‘भूमि जिहाद’ चलाते आ रहे हैं । अयोध्या का श्रीराम मंदिर तोडकर वहां बनाई गई बाबरी, ज्ञानवापी मंदिर तो तोडकर वहां मस्जिद होने का किया जानेवाला दावा, मथुरा के श्रीकृष्ण मंदिर की दीवारें तोडकर बनाई गई मस्जिद, साथ ही श्रीरंगपट्टणम् (मंड्या, कर्नाटक) का हनुमान मंदिर नष्ट कर उसपर बनाई गई मस्जिद ‘भूमि जिहाद’ के कुछ उदाहरण हैं । कर्नाट के मंड्या जिले के श्रीरंगपट्टणम् में भव्य-दिव्य श्री हनुमान मंदिर था । एक बार टीपू बचपन में खेल रहा था । उस समय वहां एक फकीर आकर उसे कहने लगा, ‘जब तुम बडे हो जाओगे, तब तुम इस मंदिर को तोडकर वहां मस्जिद बनाओ ।’ वर्ष १७८२ में हैदर अली की मृत्यु के उपरांत सत्ता हाथ में आने पर टीपू ने सर्वप्रथम इस मंदिर को गिराकर वहां मस्जिद बनाई । हमारे पास सूचना के अधिकार के अंतर्गत इकट्ठा किए गए सभी कागदपत्र हैं, साथ ही सरकारी राजपत्र में समाहित प्रविष्टियां हैं; जिनमें ऐसा स्पष्टता से उल्लेख किया गया है कि पहले इस मस्जिद के स्थान पर हनुमान मंदिर था । संपूर्ण भारत में ‘भूमि जिहाद’ के ऐसे अनेक उदाहरण देखने को मिलेंगे ।
३. ‘भूमि जिहाद’ के विरोध में भारत में लडी गई लडाई का स्वरूप
प्रथम बेंगळूरु के चामराजपेठ मैदान का उदाहरण देखेंगे । वर्ष १८९१ से आज तक इस मैदान में ईदगाह की इमारत का अस्तित्व है । (ईदगाह का अर्थ है नमाज पढने का स्थान) ईदगाह के लिए वैकल्पिक भूमि दी गई है, जो आज के ईदगाह से ४०० से ५०० मीटर की दूरी पर है, साथ ही उन्हें दफनभूमि के लिए भी वैकल्पिक भूमि दी गई है । वर्ष १९६४ में सर्वाेच्च न्यायालय के द्वारा दिए गए निर्णय में कहा गया है, ‘ईदगाह के लिए वैकल्पिक भूमि उपलब्ध करा दी गई है; इसलिए वर्तमान की इमारत को गिराकर वह भूमि बेंगळूरु महानगरपालिका के नियंत्रण में दी जाए; परंतु ऐसा होते हुए भी मुसलमान समाज अभी भी इस प्रांगण में गणतंत्र दिवस के दिन राष्ट्रीय ध्वज फहराने नहीं देता, साथ ही कोई भी हिन्दू त्योहार अथवा सांस्कृतिक कार्यक्रम मनाने नहीं देता ।
इस मैदान के विषय में सूचना के अधिकार के अंतर्गत याचिका प्रविष्ट करने पर कुछ विचित्र तथा चौंकानेवाले तथ्य सामने आए । बेंगळूरु महानगरपालिका ने उनके पास उपलब्ध कागदपत्रों के आधार पर यह ईदगाह मैदान नहीं है; अपितु वह बेंगळूरु महानगरपालिका का सार्वजनिक मैदान होने की बात कही । इसका अर्थ इस भूमि का स्वामित्व बेंगळूरु महानगरपालिका के पास होने की बात स्पष्ट होती है । जब मेरे पास यह कागदपत्र आए, तब मैंने उन्हें महापालिका के मुख्य आयुक्त तथा सहआयुक्त को प्रस्तुत किए, साथ ही इस मैदान में स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मनाने के विषय में ज्ञापन प्रस्तुत किया, साथ ही राष्ट्रीय ध्वज फहराने की अनुमति मांगी । उसपर कर्नाटक वक्फ बोर्ड तथा कर्नाटक की केंद्रीय मुसलमान संगठन इस भूमि पर अपना दावा जताने लगे । उसके उपरांत बेंगळूरु महानगरपालिका के आयुक्त तथा मंडल आयुक्त ने एक पत्रकार सम्मेलन किया, उसमें उन्होंने इस मैदान को सरकारी भूमि बताया । इस मैदान में राष्ट्रीय ध्वज लगाने के लिए वक्फ बोर्ड का विरोध था । इस पत्रकार सम्मेलर्न से यह भूमि सरकारी होने की बात प्रमाणित हुई । हमारी लडाई को मिली सफलता के कारण हमने १५ अगस्त को इस प्रांगण पर ध्वजवंदन करना सुनिश्चित किया ।
४. चामराजपेट में मुसलमानों के द्वारा हिन्दू श्मशान भूमि पर अतिक्रमण
बेंगळूरु शहर के मध्य में चामराजपेट विधानसभा क्षेत्र है । वहां से जमीर अहमद खान निरंतर ४ बार विधायक चुने गए हैं । इइ उपविभाग में हिन्दुओं की ४ श्मशान भूमियां हैं । उनमें से २ कन्नड भाषियों की तथा १ तमिल हिन्दुओं की हैं तथा शेष एक सभी हिन्दुओं के लिए है । वर्ष २०११ से २०१९ तक की अवधि में वहां ५ सहस्र ८०० लोगों को दफनाया गया । कुछ कारणवश इस क्षेत्र के मुसलमान पार्षदों तथा विधायक ने मिलकर इस दफनभूमि में दफनाए गईं ३ सहस्र समाधियां खोदकर निकाली तथा उन्हें शहर के बाहर विभिन्न भागों में ले जाकर फेंका, साथ ही कुछ समाधियां संपूर्णतः नष्ट कीं । यह ज्ञात होने पर हमने सूचना के अधिकार के अंतर्गत बेंगळूरु महानगरपालिका के अभियांत्रिकी, स्वास्थ्य तथा राजस्व विभागों के साथ पत्राचार किया तथा वहां दफनाए गए शवों का आंकडा मांगा । उनके द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार यह आंकडा ५ सहस्र ८०० से अधिक था ।
५. संपूर्ण भारत के मुसलमानों का त्रिसूत्रीय कार्यक्रम
‘ये लोग ऐसा आचरण क्यों करते हैं ?’, इसका विचार करने पर इसका एक ही कारण ध्यान में आएगा तथा वह है हिन्दुओं में संघर्ष करने की वृत्ति नहीं है । संपूर्ण भारत के कहीं के भी मुसलमान हों, वे ‘दार उल् इस्लाम’ (जहां इस्लाम का शासन चलता है, ऐसा प्रदेश), ‘दार उल् हर्ब’ (युद्धभूमि, जहां इस्लाम का शासन नहीं चलता, ऐसा प्रदेश) तथा ‘दार उल् अमन’ (शांतिपूर्ण प्रदेश, जहां लडाई-झगडे नहीं होते), इन ३ सूत्रों के आधार पर कार्य करते हैं । जहां मुसलमान बहुसंख्यक होते हैं, वहां वे ‘दार उल् इस्लाम’ के नियम के अनुसार चलते हैं तथा अन्य धर्मियों को उनकी कोई भी धार्मिक कृति नहीं करने देते । ‘दार उल् इस्लाम’ की भूमि के निकट की भूमियों को ‘दार उल् हर्ब’ भूमि के रूप में जाना जाता है तथा भविष्य में उन्हें ‘इस्लामिक स्टेट’ बनाया जाता है । अंतिम ‘दार उल् अमन’ की विचारधारा के अनुसार वर्तमान समय में भारत में कार्य चल रहा है । जब हिन्दुओं की तुलना में मुसलमान बहुसंख्यक नहीं होते, उस समय ‘अमन’ के अनुसार कार्य किया जाता है । उस समय वे आरक्षण तथा वक्फ बोर्ड की भूमि की मांग करते हैं, साथ ही सभी प्रकार की समाजविघातक गतिविधियां चलाते हैं ।
६. हिन्दुओं के कल्याण के लिए सूचना अधिकार कानून का उपयोग करना आवश्यक !
हमारे यहां ‘सूचना अधिकार कानून २००५’ नामक एक कानून है । उसके द्वारा आवश्यक कागदपत्र तैयार कर हमें ‘भूमि जिहाद’ से लडाई लडनी है । स्वामी विवेकानंदजी कहते थे, ‘ज्ञान में शक्ति है’; परंतु वर्तमान स्थिति में ‘सूचना का अधिकार ही संपत्ति तथा शक्ति है ।’ हिन्दुत्वनिष्ठ कार्यकर्ताओं को यह लडाई लडते समय प्रथम ‘सूचना अधिकार कानून २००५’ को ध्यान में लेकर उसके द्वारा आवश्यक कागदपत्र इकट्ठा कर हिन्दू समाज के कल्याण हेतु बडे स्तर पर लडाई लडनी चाहिए ।’
– श्री. एस. भास्करन्, अध्यक्ष, विश्व सनातन परिषद, बेंगळूरु