साधकों के लिए सूचना !
‘कुछ साधक कहते हैं, ‘मैं भोजन कर आता हूं ।’ कुछ साधक अन्य साधकों से पूछते हैं, ‘क्या आपका भोजन हो गया ?’, साधक इसके स्थान पर कहें, ‘मैं महाप्रसाद लेकर आता हूं’ अथवा ‘क्या आपने महाप्रसाद लिया ?’, ऐसा पूछें । शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध तथा उनसे संबंधित शक्तियों का सह-अस्तित्व होता है, अध्यात्म के इस सिद्धांत के प्रति हमारे मन में जैसा भाव होता है, वैसे हमें उसका लाभ होता रहता है । अन्न पूर्णब्रह्म होता है । ‘मैं महाप्रसाद लेकर आता हूं’, ऐसा कहने से हमारे मन में अन्न के प्रति भाव उत्पन्न होकर आध्यात्मिक स्तर पर हमें उसका लाभ होता है । अतः साधक ‘अल्पाहार अथवा भोजन’, ऐसा न कहकर ‘प्रसाद-महाप्रसाद’ कहें ।’
– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी