अब तक विश्व के अनेक देशों में से इजरायल, रूस और तदनंतर फ्रांस के साथ परिवहन, व्यापार, रक्षा तथा उद्योग में भारत के घनिष्ठ संबंध रहे हैं । भारत ने सर्वप्रथम अमेरिका के राष्ट्रपति जो बायडेन को भारत के गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम में आमंत्रित किया था; किंतु उन्होंने उसे अस्वीकार कर दिया । इसके उपरांत भारत ने फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन को गणतंत्र दिवस के लिए आमंत्रित किया । इसलिए मैक्रॉन २६ जनवरी को आयोजित ‘परेड’ में मुख्य अतिथि के रूप में सहभागी होंगे । मैक्रॉन भारत के गणतंत्र दिवस परेड में मुख्य अतिथि बनने वाले फ्रांस के छठे राष्ट्रपति होंगे ।
वर्ष १९७६ से भारत ने फ्रांस के राष्ट्रपतियों को लगभग ५ बार गणतंत्र दिवस के लिए आमंत्रित किया है । १४ जुलाई २०२३ को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फ्रांस के ‘बैस्टिल डे परेड’ में मुख्य अतिथि के रूप में सहभागी हुए थे । इस परेड में सहभागी होनेवाले वे दूसरे भारतीय प्रधानमंत्री थे । परेड में भारतीय राफेल विमानों ने उडान भरा था । भारत की तीनों सेनाओं की ‘मार्चिंग’ टुकडियों के २६९ सैनिक भी परेड में सहभागी हुए थे । प्रधानमंत्री मोदी से पहले भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी ‘बैस्टिल डे परेड’ में सहभागी हुए थे । परेड आरंभ होने से पहले मैक्रॉन ने नरेंद्र मोदी से गले मिलकर उनका स्वागत किया था ।
फ्रांस-भारत मैत्रीपूर्ण संबंध !
मैक्रॉन मार्च २०१८ में भारत आए थे । सितंबर २०२३ में भी फ्रांस के राष्ट्रपति ‘जी-२०’ शिखर सम्मेलन के लिए देहली आए थे । इस बार मोदी और मैक्रॉन के बीच द्विपक्षीय बैठक में इजरायल-हमास युद्ध, लाल समुद्र में हुती आक्रमण के साथ-साथ दोनों देशों में रक्षा सहयोग और ‘ईयू’ व्यापार अनुबंध पर चर्चा होने की संभावना है । फ्रांस की प्रशंसा करते हुए मोहनदास गांधी ने कहा था, ‘यह एक ऐसा देश है जो ३ शब्दों की शक्ति का प्रतीक है: ‘स्वतंत्रता’, ‘समानता’ और ‘बंधुत्व’ ! जिस समय अधिकांश देश भारत को केवल औपनिवेशिक वर्चस्व के दृष्टिकोण से देखते थे, तब फ्रांसीसी नोबेल पारितोषिक विजेता रोमेन रोलैंड ने कहा था,‘भारत हमारी संस्कृति की जननी भी है’ । भारत और फ्रांस की मित्रता का आरंभ जुलाई १९९८ में पोखरण में भारत के अणु परीक्षण करने के अवसर पर हुआ । इसका विरोध करते हुए अमेरिका और अन्य पाश्चात्य देशों ने भारत पर अनेक प्रतिबंध लगा दिए थे । उस समय भारत का समर्थन करनेवाला फ्रांस ही पश्चिम का एकमात्र देश था । उस समय फ्रांस के राष्ट्रपति जैक शिराक ने भारत का समर्थन किया था । पाश्चात्य देशों के समान फ्रांस ने भारत को अणु प्रकल्प बनाने में सहायता की । रूस के पश्चात फ्रांस एकमात्र देश है, जिसने आण्विक क्षमता बढाने में भारत की सहायता की है ।
भारत विश्व का सबसे बडा हथियार का क्रेता (खरीदार) है । वहीं फ्रांस विश्व का तीसरा सबसे बडा हथियार निर्यातक (बेचनेवाला) देश है । वर्ष २०१८ से २०२२ तक भारत ने फ्रांस से ३० प्रतिशत हथियार खरीदे (क्रय किए थे)। भारत और फ्रांस के बीच वार्षिक व्यापार लगभग ९७ सहस्र करोड रुपए के होने का अनुमान है । फ्रांस के लिए भारत बडा हाट (बाजार)है । फ्रांस और भारत को किसी भी सूत्र पर एक-दूसरे से सहयोग नहीं चाहिए । विश्व के विविध सूत्रों पर इन दोनों में अनेक वर्षाें से अच्छी भागीदारी है।
फ्रांस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है । भारत कई दिनों से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में परिवर्तन की मांग कर रहा है । ‘संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना के उपरांत अब विश्व में बहुत परिवर्तन हुआ है’, ऐसा भारत का मत है । ऐसी स्थिति में विश्व को चलाने वाली संस्था में परिवर्तन आवश्यक है । ‘यू.एन.’ को कुछ देशों की आज्ञाओं का पालन करना बंद कर देना चाहिए । फ्रांस ने भी भारत की इन मांगों का समर्थन किया है । दूसरी ओर, भारत ने ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ में स्थायी सदस्यता की मांग की है । फ्रांस इस विषय में भारत के पक्ष में है । भारत जैसा फ्रांस भी बहुध्रुवीय विश्व का समर्थक है । इसका अर्थ यह है कि दोनों देश किसी भी एक देश को विश्व पर हावी नहीं होने देंगे । इसका अभी का उदाहरण यह है अमेरिका के विरुद्ध चीन के प्रति फ्रांस की भूमिका ! ‘नाटो’ का सदस्य होते हुए भी फ्रांस ने स्पष्ट कर दियाथा कि वह चीन को लेकर अमेरिका के निर्देशों का पालन नहीं करेगा । फ्रांस ताइवान के विषय में अमेरिकी नीतियों का भी समर्थन नहीं करता है । भारत की बात कहें, तो शीतयुद्ध के समय से ही भारत किसी एक गुट का भी समर्थक होने का विरोध कर रहा है । भारत ने फ्रांस से ३६ ‘राफेल’ लडाकू विमान लिए हैं । भारत में मानव अधिकार और जनतंत्र पर अमेरिका, ब्रिटेन तथा जर्मनी को कई बार प्रश्न उपस्थित करते हमने देखा है । उसकी अपेक्षा फ्रांस भारत की आंतरिक बातों में बहुत अल्प हस्तक्षेप करता है । भारत और फ्रांस के मध्य कभी भी बडे मतभेद न होने का यह एक प्रमुख कारण है । ८ जुलाई २०१० को स्वतंत्रता वीर विनायक दामोदर सावरकर की फ्रांस के समुद्र में छलांग लगाने के १०० वर्ष पूरे हुए थे । उस अवसर पर फ्रांस की सरकार ने मार्सेलिस के बंदरगाह (पत्तन) में स्वतंत्रता वीर सावरकर का स्मारक बनाने की अनुमति दी है; किंतु यह प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास पूरे ११ वर्षाें से लंबित था । अभी भी उसकी अनुमति नहीं दी गई है । इस अवसर पर यह काम यथाशीघ्र पूरा होने की अपेक्षा है !
फ्रांस में इतिहास के अध्यापक की हत्या का प्रकरण चर्चा में रहते हुए फ्रांस के नीस शहर में चाकू के आक्रमण में ३ लोगों की मृत्यु हुई थी, तब फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने पहले आक्रमण के पश्चात इस्लामी कट्टरवादियों के प्रति कठोर भूमिका अपनाई है । वर्ष २०१५ में ‘शार्ली हेब्दो’ मासिक में महंमद पैगंबर का व्यंगचित्र प्रकाशित करने के उपरांत कट्टरपंथियों ने इस मासिक के कार्यालय पर आक्रमण किया था । कक्षा में यही व्यंगचित्र दिखानेवाले अध्यापक सैमुएल पैटी की गला काटकर हत्या कर दी गई थी । ‘हम ऐसे किसी प्रकार के भी दबाव से नहीं झुकेंगे, अध्यापक की हत्या इस्लामी आतंवादियों का आक्रमण है’, इस अध्यापक को श्रद्धांजलि देते हुए इमैनुएल मैक्रॉन ने ऐसा कहा था । अनेक वर्षों से इस्लामिक आतंकवाद के विरुद्ध लडाई में भी भारत और फ्रांस, दोनाें देश साथ साथ हैं । फ्रांस भी कट्टरपंथियों का अहंकार बिल्कुल सहन नहीं करता, मस्जिदों के प्रति फ्रांस की भूमिका से ध्यान में आता है कि वह कट्टरपंथियों को सही पाठ पढाता ही है । इससे भारत को फ्रांस से स्वाभिमान सीखना चाहिए । २६ जनवरी के पश्चात विदेश नीति की दृष्टि से भारत-फ्रांस संबंधों का नया युग सफल हो, हमें यही अपेक्षा है !
इस भ्रम से सतर्क रहें कि हमारी स्वतंत्रता कभी भी छीनी नहीं जाएगी ! |