परिजनों तथा मित्रों के साथ भोजन बनाने तथा करने से शरीर के साथ आत्मा भी संतुष्ट होती है ! – ‘गॅलप’ प्रतिष्ठान

विदेशी प्रतिष्ठानों द्वारा किए सर्वेक्षण का निष्कर्ष

वॉशिंग्टन (अमेरिका) – अमेरिका के एक प्रतिष्ठान ‘गॅलप’ और जापान के एक खाद्यपदार्थ निर्मिति प्रतिष्ठान द्वारा किए एक अध्ययन में पाया गया कि जो लोग परिजन अथवा मित्रों के साथ नियमित भोजन बनाकर उसे ग्रहण करते हैं, उनका शरीर स्वस्थ रहता है । साथही उनकी आत्मा भी संतुष्ट होती है । इसके परिणामस्वरुप उनकी दिनचर्या भी अच्छी रहती है । इस अध्ययन के लिए ४२ देशों में सर्वेक्षण किया गया ।

१. ब्यौरे के निष्कर्षानुसार भोजन बनाने का आनंद और सर्वोत्तम जीवन में सकारात्मक संबंध है । भोजन बनाते समय आनंद का अनुभव लेनेवालों की जीवन में सफल होने की संभावना ‘भोजन करते समय आनंद नहीं मिला’, ऐसा कहनेवालों की तुलना में डेढ गुना अधिक है । साथही जो लोग नियमितरुप से एकसाथ भोजन करते हैं, उनके सामाजिक संबंध भी अधिक अच्छे रहते हैं और स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है ।

२. ब्यौरे में कहा है कि अधिक आय वाले देशों में अकेले भोजन करने की प्रवृति बढती जा रही है । अकेले भोजन करनेवाले अपने परिचित लोगों की तुलना में अल्प सामाजिक संबंध रखते हैं ।

३. सर्वेक्षण में देखा गया कि जो लोग सप्ताह में ४ बार परिजन अथवा मित्रों के साथ भोजन करते हैं, उनमें आनंद और आदरयुक्त भावनाओं का भान अधिक है । उनकी दिनचर्या में अच्छे से आराम करना, हंसना, कुछ सीखना अथवा कुछ रंजक कृत्य करना इत्यादि अपनेआप आ जाता है ।

संपादकीय भूमिका 

हिन्दू धर्म में कुटुंबव्यवस्था है । प्राचीन काल से ही परिवार के सभी सदस्यों पर एकत्रित रुप से भोजन करने का संस्कार संयुक्त कुटुंबपद्धति में होता था । अब पश्चिमी लोगों के अंधानुकरण के कारण ऐसे संस्कार दुर्लभ हो गए हैं । हिन्दुओं को अब इसपर विचार करना आवश्यक !