देश को एक ओर जहां बाळशास्त्री जांभेकर, आगरकर, लोकमान्य टिळक, आचार्य प्र.के. अत्रे आदि पत्रकारों की धरोहर प्राप्त है, वहीं दूसरी ओर आज ‘न्यूजक्लिक’ जैसे एक ‘न्यूज पोर्टल’(वेबसाइट) चीनी उद्योगपतियों से लाखों रुपए की दलाली लेकर भारतविरोधी पत्रकारिता करते हैं, यह पत्रकारिता पर लांछन है । इस प्रकरण में प्रवर्तन निदेशालय ने (‘ईडी’ ने) ऐसे पत्रकारों को बंदी बनाने की (गिरफ्तार करने की) कार्यवाही की । उस पर तथाकथित आधुनिकतावादी आरोप लगाते हैं कि ‘यह पत्रकारिता पर किया जा रहा आघात है ।’ यदि ऐसा है, तो ‘न्यूजक्लिक’ के पत्रकारों ने चीनी उद्योगपतियों से लाखों रुपए का चंदा क्यों लिया ? किस चीज के बदले इन चुनिंदा पत्रकारों को चीन ने चंदा दिया, ये प्रश्न विचारणीय हैं ।
१. भारत के साथ खुली शत्रुता मोल लेनेवाले पत्रकार !
रूसी गुप्तचर संगठन ‘केजीबी’ के कुछ गुप्तचरों ने यह स्पष्ट किया था कि भारत में पहले नेहरू एवं इंदिरा गांधी के कार्यकाल में पूंजीवादी अमेरिका के विरोध के रूप में वामपंथी (कम्युनिस्ट) रूस के पक्ष में राजनीति एवं पत्रकारिता की जा रही थी । अब यही वामपंथी आधुनिकतावादी पत्रकार राष्ट्रहित की पत्रकारिता करनेवाले पत्रकारों को ‘गोदी मीडिया’ बोल रहे हैं । इससे यह स्पष्ट है कि वामपंथी विचारधारावाले पत्रकार भारत के साथ खुली शत्रुता करनेवाले चीन की गोद में बैठकर पत्रकारिता कर रहे हैं । ‘ईडी’ ने इन तथाकथित आधुनिकतावादी पत्रकारों के आवास पर छापा मारकर ‘न्यूजक्लिक’ के संपादक प्रबीर पुरकायस्थ तथा अमित चक्रवर्ती को बंदी भी बनाया है, जबकि अन्य ४६ लोग जांच के घेरे में हैं । अब तक का यह अनुभव है कि ‘ईडी’ द्वारा की जानेवाली जांच प्रमाणबद्ध होती है तथा उसके चक्रव्यूह में फंसा व्यक्ति सहजता से बाहर नहीं निकल सकता । इस बार पहली बार ही देशद्रोही पत्रकार उजागर हुए हैं तथा आधुनिकतावादियों का जो प्रिय समाचारपत्र है ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’, उसी ने इन पत्रकारों की पोल खोली थी ।
२. चीन के पक्ष में लेखन करनेवाले वामपंथी विचारधारावाले पत्रकार !
मूलतः भारतीय वंश का तथा आज के समय में चीन का बडा व्यक्ति अमेरिकी उद्योगपति नवीन रॉय सिंघम चीन से अपना व्यापार चला रहा है । वह चीन की ‘कम्युनिस्ट (वामपंथी) पार्टी’ का समर्थक है तथा संयोग से उसी ने ‘न्यूजक्लिक’ के पत्रकारों को लाखों रुपए की फंडिंग (आर्थिक सहायता) की है । चीन प्रत्येक क्षेत्र में भारतविरोधी गतिविधियां चलाता रहता है । चाहे वह डोकलाम जैसी घटना हो, लद्दाख के क्षेत्र में भारतीय सैनिकों के साथ हुई झडप हो, अरुणाचल प्रदेश में ‘स्टेपल वीजा’ देना हो (स्टेपल वीजा का अर्थ है किसी देश में जाने के लिए मूल पासपोर्ट पर स्टैंप न लगाकर, एक अन्य कागद पर जानकारी लिखना, उस पर मुद्रा लगाकर, उस कागद को पासपोर्ट से ‘स्टेपल पिन’ से जोडना) अथवा भारत की उत्तरी सीमा से हिमालय से पाकिस्तान को जोडनेवाला महामार्ग (हायवे) बनाना हो, साथ ही श्रीलंका पर दबाव बनाकर श्रीलंका के बंदरगाह में गुप्त जानकारी इकट्ठा करनेवाली स्वयं की नौका स्थापित करना हो; ये प्रत्येक घटना भारत की सुरक्षा से संबंधित है । ऐसी स्थिति में कांग्रेस के नेता चीन के नेताओं से निजी भेंट करते हैं तथा आधुनिकतावादी पत्रकार चीन से मिले पैसों के बदले में भारतविरोधी तथा चीन हितकारी पत्रकारिता कर, वैश्विक स्तर पर भारत को बदनाम करने का षड्यंत्र रचते रहते हैं । इसमें चाहे ‘न्यूजक्लिक’ के पत्रकारों द्वारा लडाकू विमान ‘राफेल’ से संबंधित तथाकथित घोटाले के संदर्भ में किया गया लेखन हो, देहली का किसान आंदोलन हो, ‘सीएए’ (नागरिकता संशोधन कानून) के विरुद्ध हुआ आंदोलन हो अथवा कोरोना महामारी के समय भारत की स्वास्थ्य सेवा किस प्रकार से पिछडी हुई है ?, यह बतानेवाला लेखन हो; उनका लेखन सदैव ही देश एवं भारत सरकार के विरुद्ध होता है । इसके विपरीत ये वामपंथी विचारधारावाले चीन के पक्षधर पत्रकार संपूर्ण विश्व में कोरोना महामारी फैलानेवाले तथा ‘उसके माध्यम से लाखों लोगों की हत्याएं करनेवाले चीन ने किस प्रकार कोरोना पर विजय प्राप्त की’, ऐसा चीन का गुणगान करनेवाला लेखन कर रहे थे ।
३. भारत को तोडने का षड्यंत्र रचनेवालों को कठोर दंड मिलना आवश्यक !
वर्ष २००९ में स्थापित ‘न्यूजक्लिक’ वर्ष २०१७ तक आर्थिक दृष्टि से घाटे में था; परंतु अकस्मात ही चीन द्वारा की गई लाखों रुपए की आर्थिक सहायता से वह चर्चा में आ गया; यहीं से दाल में कुछ काला है, यह स्पष्ट हो जाता है । वास्तव में पत्रकारिता निष्पक्ष एवं निर्भीक होनी चाहिए; परंतु जिन्होंने अपने लेखनी की स्याही चीन जैसे शत्रुराष्ट्र को बेच दी हो, उनसे इससे भिन्न पत्रकारिता की अपेक्षा करना अनुचित है । आज के समय में ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ में प्रकाशित समाचार को चुनौती देनेवाले ‘न्यूजक्लिक’ के पत्रकार जब अमेरिका में ‘हिंडेनबर्ग’ का ब्योरा प्रकाशित हुआ, उस समय उसे अपने सिर पर लेकर नाच रहे थे । इस प्रकार की दायित्वशून्य पत्रकारिता के कारण भारत को तथा अदानी समूह को करोडों रुपए का आर्थिक घाटा सहन करना पडा । भारत को घाटा होने के कारण निश्चित ही चीन जैसा शत्रुराष्ट्र आनंदित हुआ होगा तथा उसके कारण ही ‘न्यूजक्लिक’ जैसे समाचार प्रसारित करनेवाले जालस्थल ने हिंडेनबर्ग के ब्योरे का स्वागत किया । आज चाहे पत्रकार अभिसार शर्मा हो अथवा ‘न्यूजक्लिक’ से जुडा हुआ कोई भी आधुनिकतावादी पत्रकार हो; उसे चीनी उद्योगपति नवीन रॉय सिंघम की ओर से किस चीज के बदले में लाखों रुपए मिले ?, इसकी जांच होना आवश्यक है ।
इसलिए देशद्रोही वामपंथी पत्रकारों की जांच होने को पत्रकारिता पर आघात होना नहीं कहा जा सकता । आज नहीं तो कल जांच से सच्चाई बाहर आकर रहेगी । एक ओर वामपंथी विचारधारावाले छात्र जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में ‘भारत तेरे टुकडे होंगे’ के नारे लगा रहे हैं, तो दूसरी ओर चीनी उद्योगपतियों से लाखों रुपए लेकर भारतविरोधी समाचार प्रसारित कर रहे हैं । यह तो भारत को तोडने का षड्यंत्र है । अतः इस षड्यंत्र में संलिप्त लोगों की जांच तो होनी ही चाहिए; परंतु उसके साथ ही उन्हें न्यायालय के समक्ष खडा कर कठोर दंड देना भी उतना ही आवश्यक है । तभी जाकर पाकिस्तान, चीन जैसे देशों को पता चलेगा कि ‘अब हमें भारत में आश्रय नहीं मिलेगा’।
– श्री. रमेश शिंदे, राष्ट्रीय प्रवक्ता, हिन्दू जनजागृति समिति (९.१०.२०२३)