संपादकीय
लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई स्थान, अर्थात ३३ प्रतिशत आरक्षण देनेवाला ‘नारी शक्ति वंदन विधेयक २०२३’ अभी-अभी लोकसभा में सम्मत हुआ है । लोकसभा के ४५४ सदस्यों ने विधेयक के पक्ष में, तो केवल एम.आइ.एम. पक्ष के २ सांसदों ने इस आरक्षण विधेयक के विरुद्ध मतदान किया । इसमें कोई शंका नहीं कि इस विधेयक के कारण संसद एवं विधान सभाओं में चुनी गई अधिकांश महिला प्रतिनिधि महिला उत्पीडन के विषय में दृढतापूर्वक मत व्यक्त कर महिलाओं की समस्याओं तथा प्रश्नों के समाधान के लिए सरकार पर दबाव बनाएंगी । देश में विविध स्तरों पर लगभग १५ लाख महिला प्रतिनिधि हैं; किंतु अबतक महिलाओं के लिए कोई कानून नहीं बन सका है । अनेक बार महिला आरक्षण का विधेयक दोनों सभागृहों में प्रस्तुत किया गया था । कभी उस विधेयक का विरोध हुआ, तो कभी उसमें परिवर्तन करने की मांग की गई । देश की राजनीति में महिलाओं को विशेष स्थान देने के लिए सदैव प्रयास होते रहे हैं । आज की १७ वीं लोकसभा में महिलाओं का प्रतिशत १४ है । अभी अपने देश में ७८ महिला सांसद हैं । पिछले कार्यकाल में यही संख्या ६२ थी । प्रधानमंत्री नरेंद्रजी मोदी के मंत्रीमंडल में महिलाएं ५ प्रतिशत हैं । संसद में महिलाओं का प्रतिशत देखें तो बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका एवं नेपाल जैसे देशों से भी भारत में यह प्रतिशत अल्प है । आज की लोकसभा में सांसदों की संख्या का विचार किया, तो ५४३ सांसदों में से ३३ प्रतिशत, अर्थात १८१ स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित हो सकते हैं ।
महिला आरक्षण के समर्थक कहते हैं कि भारत में अधिकांश राजनीतिक पक्षों का नेतृत्व पुरुषों के पास होने से देश में महिलाओं की परिस्थिति में सुधार लाने के लिए इस विधेयक का सम्मत होना आवश्यक है । महिला स्थिति के विषय में स्वतंत्रता आंदोलन के नेताओं की उच्च अपेक्षाओं के पश्चात भी वास्तविकता यह है कि महिलाओं को अभी भी संसद में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है । इसलिए, यदि महिलाओं को आरक्षण दिया जाता है, तो महिलाएं उन सूत्रों पर प्रकाश डालने के लिए एक सुदृढ संख्यात्मक शक्ति निर्माण करेंगी, जिसे सदैव दुर्लक्ष किया जाता रहा है । आज भारत में महिलाओं पर होनेवाले अत्याचारों एवं अपराधों का प्रतिशत अधिक है । उपजीविकाओं में महिलाओं की अल्प भागीदारी, महिलाओं का अल्प पोषण स्तर एवं लिंग अनुपात में असमानता की चुनौतियों का समाधान करने के लिए निर्णय लेने की प्रक्रिया में अधिक महिलाओं की आवश्यकता है । इसलिए ‘आरक्षण देना चाहिए’, समर्थकों द्वारा भी ऐसा तर्क दिया जाता है । दूसरी ओर महिला आरक्षण के विरोधियों का कहना है कि महिलाओं को आरक्षण देने से संविधान में निहित समानता के सिद्धांतों का उल्लंघन हो सकता है । महिलाओं को संसद में आरक्षण दिए जाने से मतदाताओं को अपनी रुचि का प्रत्याशी चुनने की स्वतंत्रता नहीं रहेगी ।
महिलाओं की स्थिति सुधारने का प्रयास !
महिलाओं को अल्प प्रतिनिधित्व मिलने से उनकी हानि के विषय पर सामाजिक कार्यकर्त्री मेधा कुलकर्णी ने कहा, ‘महिलाओं का प्रतिनिधित्व न होने से महिलाओं के प्रश्नों पर कोई चर्चा ही नहीं होती । उदाहरण के लिए, हम महाराष्ट्र विधानमंडल के साथ काम कर रहे हैं । विगत १ वर्ष से महिला एवं बाल अधिकार पर काम करनेवाली वैधानिक समितियों का गठन ही नहीं हुआ है । महाराष्ट्र में महिला एवं बाल-कल्याण समितियां ही अस्तित्व में नहीं हैं । महिला-नीतियों पर चर्चा नहीं होती । सत्ता में परिवर्तन होने से ‘शक्ति’ कानून बना । इससे दिन-ब-दिन महिलाओं की स्थिति दुर्बल होती जा रही है ।’ वर्ष २००९ में भारत के केंद्रीय मंत्रीमंडल ने पंचायत-राज संस्थाओं में ५० प्रतिशत महिला आरक्षण की घोषणा की, शासन का यह कदम ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं की सामाजिक स्थिति सुधारने का प्रयास है, इससे बिहार, झारखंड, ओडिशा एवं आंध्र प्रदेश, जैसे अन्य राज्यों में बडी संख्या में महिलाएं ग्राम पंचायत अध्यक्ष चुनी गईं ।
कार्यक्षम महिलाओं की आवश्यकता !
वर्तमान स्थिति में महिला प्रतिनिधियों का विचार करें तो विधानसभा में महिला विधायकों को किसी भी प्रश्न पर बोलने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया जाता अथवा उनको दुर्लक्ष किया जाता है । सरकार उनके उठाए प्रश्नों को गंभीरता से नहीं लेती । इसलिए सच्चाई यह है कि महिला सांसदों को बार-बार एक ही प्रश्न उठाने पडते हैं । अत: सरकार के लिए आरक्षण से चुनी गई महिला का सम्मान करना, उनके उठाए प्रश्न एवं समस्याओं की ओर ध्यान देकर उनका समाधान करना आवश्यक है । महिलाओं को आरक्षण दिया गया है, किंतु विधानसभा एवं लोकसभा में चुनी गई महिलाओं को अच्छी तरह शिक्षित एवं अध्ययनशील होना चाहिए । आज ग्रामपंचायत से लेकर विधानसभा तक सुशिक्षित, अध्ययनशील तथा समाज के प्रश्नों की समझ रखने वाली महिलाओं को चुनना आवश्यक है; क्योंकि समाज में अशिक्षित अथवा समाज के प्रश्नों से अनभिज्ञ महिलाओं को चुनने पर समाज की प्रगति नहीं होगी । वर्तमान स्थिति में चुनी गई कुछ महिला जन प्रतिनिधियों को छोडकर अन्य महिला प्रत्याशियों के पति ही अधिकतर समाज में कार्यरत दिखाई देते हैं । ऐसी महिलाएं केवल हस्ताक्षर करने के लिए होती हैं । उन्हें बाहरी विश्व का कोई अध्ययन नहीं होता । यदि ‘महिला आरक्षण विधेयक से इस तरह के प्रकरण बढेंगे, तो क्या महिला आरक्षण का उद्देय साध्य होगा ?’ यह मुख्य प्रश्न है, इसलिए बुद्धिवादी नागरिकाें का मानना है कि महिला आरक्षण के सूत्र राजनीतिक पूंजी न बनें । भारत का इतिहास देखें, तो बडी संख्या में ऐसी महिलाएं हैं जिन्होंने आत्म बल पर सफलता प्राप्त की हैं । ऐसी सक्षम महिलाओं के कारण केवल महिलाएं ही नहीं, अपितु समाज का भी भला हुआ है । इसलिए, यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि ऐसी निपुण एवं बहु-प्रतिभाशाली महिला केवल राजनीति ही नहीं, अपितु किसी भी क्षेत्र में डंका बजा सकती है !