वैज्ञानिकों ने इत्र का प्रयोग भी बंद कर दिया था !
बेंगळूरु (कर्नाटक) – भारत द्वारा सूर्य अभियान के अंतर्गत लॉन्च किए गए ‘आदित्य एल-१’ अंतरिक्ष यान के निर्माण के पीछे की जानकारी अब सामने आ रही है । वैज्ञानिकों ने कहा कि जिस स्थान पर यह यान बनाया जा रहा था, उस स्थान पर उनको इत्र लगाकर आने के साथ ही अनेक प्रतिबंध लगाए गए थे; क्योंकि यान के उपकरणों पर सूक्ष्मतम कणों का परिणाम होने की संभावना थी । इस स्थान की स्वच्छता चिकित्सालय की गहन चिकित्सा इकाई (आइ.सी.यू.) से १ लाख गुना अधिक रखनी पडती है । यहां किसी भी प्रकार का प्रदूषण होना, वैज्ञानिकों के सभी प्रयासों पर पानी फेरने जैसा है ।
Aditya L1 के वैज्ञानिकों को थी परफ्यूम की सख्त मनाही, गलती से कर लेते यूज तो सालों की मेहनत पर फिर जाता पानी
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यहां के तंत्रज्ञान दल के प्रमुख नागाबुशाना ने कहा कि इस स्थान पर काम करने के लिए विशेष प्रकार का सूट (पोशाक) पहनना पडता है । इस कारण यहां किसी भी प्रकार का प्रदूषण नहीं पहुंच सकता । दल के प्रत्येक सदस्य को इस स्थान पर आने से पूर्व अल्ट्रासोनिक क्लिनिंग प्रोसेस’ (सूक्ष्मस्तरीय स्वच्छता प्रक्रिया) पूरी करके आना पडता था ।
संपादकीय भूमिकासत्त्व, रज एवं तम के कण सूक्ष्मतम होते हैं एवं वे ७ दीवारों के पार भी जा सकते हैं । विज्ञान अभी तक इन कणों तक नहीं पहुंच पाया है; परंतु उनके ध्यान में प्रदूषण करनेवाले कण आए हैं । साथ ही वैज्ञानिक उसके लिए भिन्न भिन्न प्रकार की सावधानी रखते हैं । रज एवं तम के संदर्भ में प्रदूषण रोकने के लिए धर्मशास्त्रों में धार्मिक कृत्य विशद किए गए हैं । परंतु धर्म निरपेक्षतावादी ऐसे कृत्यों का विरोध करते हैं, यह ध्यान में लें ! |