सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का ११ मई को जन्मदिवस, अर्थात ‘अवतरण दिवस’ हुआ ! सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी को जाननेवाले सभी संतों ने उनके विषय में बताते हुए कहा है, ‘वे अवतारी पुरुष हैं ।’ साथ ही सप्तर्षियों ने जीवनाडी-पट्टिका के माध्यम से भी बताया है कि सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी श्रीविष्णु के अवतार हैं । सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने कभी भी स्वयं को ‘अवतारी पुरुष’ नहीं कहा है । उन्होंने अपने विषय में सदैव यही कहा है, ‘मैं प.पू. बाबा का (प.पू. भक्तराज महाराजजी का) शिष्य हूं ।’ श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने यह बताया है, ‘जब-जब पृथ्वी पर अधर्म बढता है, तब-तब मैं अवतरित होकर धर्म की पुनर्स्थापना करता हूं ।’ काल के अनुसार भगवान का अवतारी कार्य भिन्न होता है तथा उसका स्वरूप भी भिन्न-भिन्न होता है । ‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का अवतारी कार्य किस प्रकार चल रहा है ?’, इसे समझना आवश्यक है । भगवान श्रीविष्णु के अधिकतर अवतारों के पास शस्त्र थे तथा उन्होंने दुष्टों का निर्दालन कर साधक, भक्त, संत आदि की रक्षा की है । सामान्यतः भले ही ऐसा ही होता है; परंतु काल के अनुसार अवतारी कार्य भिन्न होता है । सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का कार्य समाज को अध्यात्मशास्त्र विशद कर उसे साधना की ओर प्रवृत्त करना तथा धर्म की पुनर्स्थापना करना है । इसके लिए उन्होंने ‘ग्रंथ-निर्मिति को ही अपना मुख्य शस्त्र बनाया है’, ऐसा कहना अनुचित न होगा । संत ज्ञानेश्वरजी ने उस काल में मूल संस्कृत भाषा में लिखी श्रीमद्भगवद्गीता का लेखन प्राकृत भाषा में किया । उसके आधार पर विगत ८०० वर्षाें में करोडों जीवों ने साधना कर आध्यात्मिक प्रगति की । उस काल की तुलना में आज धर्म की स्थिति अत्यंत दयनीय है । अतः काल के अनुसार समाज को अध्यात्मशास्त्र बताना आवश्यक हो गया था । आज इस विज्ञानयुग में समाज को विज्ञान के आधार पर ‘विज्ञान की सीमाएं एवं अध्यात्मशास्त्र की श्रेष्ठता’ दिखलाने का कार्य सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी कर रहे हैं । अन्य कोई इस प्रकार का कार्य करता नहीं पाया जाता । इस मार्गदर्शन के कारण ही आज की विज्ञानवादी पीढी साधना करने लगी तथा उनमें से अनेक लोग जन्म-मृत्यु के चक्र से भी मुक्त हुए हैं तथा हो रहे हैं । कुछ लोग संत पद तक पहुंच गए हैं । यह चमत्कार तो केवल अवतारी व्यक्ति ही करा सकता है । इस विश्व में भौतिक एवं लौकिक चमत्कार करनेवाले अनेक लोग होंगे; परंतु एक ही समय पर अनेक लोगों की आध्यात्मिक प्रगति करवाना तथा कुछ ही वर्षाें की साधना से उन्हें जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त करनेवाले दुर्लभ ही हैं !
देवताओं के अधिकाधिक तत्त्व से युक्त चित्र !
आध्यात्मिक स्तर पर समाज में रज-तम की प्रबलता नष्ट कर सत्त्वगुण की वृद्धि करने हेतु सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने साधकों के माध्यम से देवताओं के अधिकाधिक तत्त्व से युक्त चित्र पहुंचाए । कलियुग में किसी भी देवता के चित्र में ३० प्रतिशत तक उनका तत्त्व आ सकता है । सनातन-निर्मित देवताओं के चित्रों में देवताओं का तत्त्व ३१ प्रतिशत तक आया है । हिन्दुओं के घरों में ऐसे चित्र पहुंचने पर उन्हें आध्यात्मिक स्तर पर उसका लाभ मिलेगा तथा समाज की सात्त्विकता बढने लगेगी । घरों की शुद्धि होगी । इस प्रकार का कार्य अभी तक किसी ने नहीं किया है । आगे जाकर इस प्रकार से देवताओं की मूर्तियां भी बनाई जाएंगी ।
आध्यात्मिक शोधकार्य
सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने आध्यात्मिक शोध के माध्यम से समाज को अध्यात्मशास्त्र विशद करने का अभूतपूर्व प्रयास किया है । उन्होंने सनातन वैदिक धर्म की महिमा विदेश के लोगों तक पहुंचाई है तथा उन्हें साधना हेतु प्रवृत्त किया है । आज के समय में अनेक विदेशी नागरिक साधना कर रहे हैं तथा वे संत एवं सद्गुरु पद तक पहुंच गए हैं । वैज्ञानिक यंत्रों की सहायता से सूक्ष्म जगत, अच्छी एवं अनिष्ट शक्तियों के प्रकार तथा उनके होनेवाले परिणाम, साथ ही अनिष्ट शक्तियों का प्रभाव दूर करने के लिए आवश्यक नामजपादि उपचार, विभिन्न देवताओं के नामजप का परिणाम, तारक एवं मारक नामजपों का परिणाम; स्थूलदेह, मनोदेह, कारणदेह एवं महाकारणदेह पर परिणाम आदि सूत्रों को सरल भाषा में स्पष्ट कर समाज के लोगों के शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक कष्ट दूर किए जा रहे हैं । अभी तक किसी ने ऐसा कार्य नहीं किया है । यह कार्य करते समय सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने कभी भी किसी व्यक्ति की व्यावहारिक समस्या का समाधान करने के लिए मार्गदर्शन नहीं किया है । उन्होंने सदैव सकाम साधना करने के स्थान पर निष्काम साधना करने का ही मार्गदर्शन किया । भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में कहा है, ‘मेरा जो भक्त निष्काम होता है, मैं उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण करता हूं’ । सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में साधना करनेवाले साधक प्रतिदिन इसकी अनुभूति ले रहे हैं ।
रामराज्य की स्थापना !
सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य है हिन्दुओं को हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करने हेतु जागृत करना ! वर्ष १९९८ में ही, ‘वर्ष २०२५ में देश में हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होनेवाली है’, ऐसा बताकर उन्होंने इस संदर्भ में चरणबद्ध पद्धति से समाज का मार्गदर्शन कर उसके अनुसार हिन्दुओं में जागृति की । देश में क्रांति नहीं, अपितु उत्क्रांति आवश्यक है, साथ ही प्रत्येक क्षेत्र में अध्यात्म की दृष्टि से समग्र परिवर्तन लाना आवश्यक है तथा इसे साध्य करने हेतु सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी आध्यात्मिक स्तर के कार्य कर रहे हैं । आज के समय में समाज हिन्दू राष्ट्र की मांग कर रहा है । इससे सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की त्रिकालदर्शिता के दर्शन होते हैं ।
सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के इस अवतारी कार्य को संक्षेप में रखने का प्रयास किया है । इससे पूर्व ऐसा कार्य नहीं हुआ है । इस कार्य से आनेवाले कुछ वर्षाें में पृथ्वी पर धर्मराज्य की अर्थात रामराज्य की स्थापना होगी है । यह काल सत्ययुग का होगा । केवल अवतारी पुरुष ही इस प्रकार से युगनिर्मिति कर सकते हैं !
प्रत्येक क्षेत्र में समग्र परिवर्तन करने का आध्यात्मिक स्तर का कार्य सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी कर रहे हैं !