पाक के जिहाद का फलित !

पाकिस्तान आजकल अराजकता की दहलीज पर खडा है । अफगानिस्तान के तालिबानी सत्ताधीशों का समर्थन प्राप्त ‘तेहरिक-ए-तालिबान पाकिस्तान’, नामक आतंकवादी संगठन ने पाक का आवाहन किया है । इस संगठन ने पाकिस्तान में स्वतंत्र मंत्रिमंडल भी घोषित किया है । इस संगठन के सहस्रों आतंकवादी अब पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा पर हैं । पाकिस्तान के कुछ प्रांतों में तो ‘तेहरिक-ए-तालिबान पाकिस्तान’ ने वर्चस्व भी स्थापित कर लिया है । इस संगठन की भूमिका है कि पाकिस्तान को ‘शरीयत’ विधि (कानून) के अनुसार चलना चाहिए । अफगानिस्तान के तालिबानियों से बढावा मिलनेवाले ‘तेहरिक-ए-तालिबान पाकिस्तान’ और पाकिस्तान की सेना में संघर्ष बढ रहा है । अफगानिस्तान समान पाकिस्तान में भी वर्चस्व स्थापित करने के तालिबानियों के प्रयास हो रहे हैं । जब इम्रान खान प्रधानमंत्री थे तब उन्होंने ‘तेहरिक-ए-तालिबान पाकिस्तान’ को सहलाने की भूमिका निभाई थी । इसलिए इम्रान खान के सत्ताच्युत होने पर इस आतंकवादी संगठन ने पाक में आतंकवादी कार्यवाहियां अधिक तीव्र कर दी हैं ।  पाक के आतंकवादी जो कुकृत्य भारत में करते थे, वही काम ‘तेहरिक-ए-तालिबान पाकिस्तान’ पाक में कर रहा है । पाकिस्तान में यह  अराजकता उसकी अपनी ही धर्मांधता का फलित है ।

विरोधी पक्षनेता शाहबाज शरीफ ने इम्रान खान के विरोध में अविश्वास प्रस्ताव जीता । इससे सत्ता की अवधि पूरी होने से पहले ही इम्रान खान को पदच्युत होना पडा । पाक में असमय पदच्युत होने की परंपरा ही है; किंतु यहां महत्त्वपूर्ण बात यह है कि भ्रष्टाचार, बेरोजगारी आदि के जिन कारणों से इम्रान खान सत्ताच्युत हुए थे, उनमें सुधार होने के स्थान पर नए शासन के समय में वहां की स्थिति अधिक ही गंभीर होती जा रही है ।शासन के विरोध में पाक की जनता रास्ते पर उतरी है और ऐसे में पाकिस्तान में अक्टूबर 2023 में लोकसभा के चुनाव भी होनेवाले हैं । इससे वहां की राजकीय स्थिति और भी अधिक तनावपूर्ण होती जा रही है । भविष्य में पाकिस्तान में इससे गृहयुद्ध के आरंभ होने की संभावना है ।

जनतंत्र कैसे बचेगा ?

भारत को घेरने के लिए अमरिका और चीन ने सदैव पाकिस्तान पर वर्चस्व स्थापित करने का प्रयास किया । इन दोनों देशों ने पाकिस्तान का सदैव अपने लाभ के लिए प्रयोग किया ।  पाक में निर्माण हुई अराजक स्थिति में भी ये दोनों देश अपने लाभ के लिए प्रयत्नशील हैं । आर्थिक दृष्टि से टूटे पाक की लाचारी का लाभ उठाते हुए चीन ने पाकिस्तान की हाट (मार्केट) अपने अधिकार में लेने के लिए ‘बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव’, यह आर्थिक ‘कॉरिडोर’ (एशिया खंड, अफ्रिका और यूरोप को जोडनेवाला एक मार्ग) बनाने का काम शुरू किया है । चीन से मिलनेवाले आर्थिक लाभ के कारण इस प्रकल्प को मान्यता देना, यह पाकिस्तान की लाचारी है । चीन इस प्रकल्प से पाक के बलुचिस्तान में वर्चस्व बनाना चाहता है, यह समझ में आने पर वहां के नागरिक इस प्रकल्प का विरोध कर रहे हैं । इस क्षेत्र में काम की सुरक्षा के लिए रखे पाकिस्तानी और चीनी सैनिकों पर बलुची नागरिक बीच-बीच में आक्रमण कर रहे  हैं । दूसरी और आनेवाले चुनाव में इम्रान खान को दूर रखने के लिए अमरिका कार्यरत है । इस संपूर्ण स्थिति को देखते हुए प्रश्न उठता है कि भविष्य में पाकिस्तान का अस्तित्व कितने वर्ष टिका रहेगा ? संक्षेप में, इम्रान खान और शाहबाज शरीफ, दोनों ही पाक की स्थिति संभालने में असफल रहे हैं । किंबहुना पाकिस्तान की धर्मांधता के कारण जनतंत्र जर्जर हो गया है ।

भारत के विभाजन के पश्चात पाकिस्तान ने भारत में जिस पद्धति से आतंकवादी कार्यवाहियां की, अनेकों की हत्या की, जम्मू-कश्मीर में भारतीय सैनिकों पर आक्रमण कर उनके देहों का विडंबना की, ऐसा धर्मांध शत्रु यदि नष्ट हो रहा हो, तो भारत को उसके लिए अश्रु बहाने की रत्ती भर भी आवश्यकता नहीं । ध्यान देनेवाली बात तो यह है कि पाक की यह स्थिति जिस धर्मांध प्रवृत्ति के कारण हुई, वही अब भारत में भी बढती जा रही है । इसलिए इसकी चिंता भारत को करना आवश्यक है । भारत में हिजाब के लिए हुआ आंदोलन, नूपुर शर्मा ने प्रेषित मुहम्मद पैगंबर के विषय में किया वक्तव्य और उस पर हुए दंगे, लव जिहाद के क्रौर्य की बढती घटनाएं, इसी धर्मांधता की द्योतक हैं । मुंबई के आजाद मैदान में निदर्शन के लिए आए 15 सहस्र से अधिक मुसलमानों के एकत्र होने का कारण यही था कि ‘इस्लाम खतरे में है ।’ त्रिपुरा में मस्जिद तोडने की अफवाह के कारण मुसलमानों ने भारत में दंगे किए । इन सभी दंगों में मुसलमानों ने हिन्दुओं के जीवन एवं वित्त (जान-माल) की हानि की । वे सभी  भारत को ‘इस्लामी राष्ट्र’ बनाने का स्वप्न देख रहे हैं । भारत में आज इन्हें ‘अल्पसंख्यक’ कहकर और उनकी चापलूसी करने के लिए दंगों पर नियंत्रण नहीं लाया जाता, यही वास्तविकता है । पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिन्दू भी अल्पसंख्यक हैं; किंतु वे कभी भी आक्रमक नहीं हो सकते । केवल भारत में ही ये अल्पसंख्यक देश के बहुसंख्यक हिन्दुओं पर आक्रमण करते हैं और यदि यही अल्पसंख्यक भविष्य में बहुसंख्य हो गए, तो क्या होगा ? इस पर भारत में विचार होना आवश्यक है ।

वास्तव में पाकिस्तान मुसलमानबहुल और इस्लामी राष्ट्र है । वहां उन्हें चाहे जैसे इस्लाम अनुसार विधि (कानून) बनाने से किसी ने नहीं रोका; किंतु इस्लामिक कट्टरतावाद और जनतंत्र एकसाथ नहीं रह सकते, यही इस उदाहरण से दिखाई देता है । भविष्य में भारत के अल्पसंख्यक कट्टरतावादी बहुसंख्य हो गए, तो क्या वे यहां जनतंत्र टिकने देंगे ? इसपर आधुनिकतावादी विचार करें । हिन्दू धर्म कट्टरतावाद को नहीं संजोता । छत्रपति शिवाजी का शासन इसका प्रतीक है । ‘भारत हिन्दूबहुल है, इसीलिए जनतंत्र बचा है’, यह आधुनिकतावादियों और निधर्मियों को ध्यान में लेना चाहिए ।

‘अल्पसंख्यक’ होने से सुविधा लेनेवाले बहुसंख्य होने पर इस्लामी राष्ट्र की मांग नहीं करेंगे, इसकी निश्चिती कौन देगा ?