हनुमान जयंती
१. तिथि : कुछ पंचांगों के अनुसार हनुमान जन्मतिथि कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी है, तो कुछ चैत्र पूर्णिमा बताते हैं । महाराष्ट्र में हनुमानजयंती चैत्र पूर्णिमापर मनाई जाती है ।
२. महत्त्व : हनुमान जयंती पर हनुमानतत्त्व अन्य दिनों की तुलना में १००० गुना अधिक कार्यरत रहता है ।’ इस तिथिपर ‘श्री हनुमते नमः ।’ का नामजप तथा हनुमानजी की अन्य उपासना भावपूर्ण करने से हनुमानतत्त्व का अधिकाधिक लाभ होने में सहायता मिलती है ।’
३. उत्सव मनाने की पद्धति : इस दिन हनुमानजी के मंदिर में सूर्योदय होनेसे पहले ही कीर्तन आरंभ करते हैं । सूर्योदय पर हनुमानजी का जन्म होता है, उस समय कीर्तन समाप्त होता है एवं सभी को प्रसाद बांटा जाता है । (सभी को प्रसाद के रूप में सोंठ देते हैं ।)
जन्म का इतिहास
जब राजा दशरथ ने पुत्रप्राप्ति हेतु ‘पुत्रकामेष्टी यज्ञ’ किया, तब यज्ञ से अग्निदेव ने प्रकट होकर दशरथ की रानियों के लिए पायस (खीर, यज्ञ का अवशिष्ट प्रसाद) प्रदान किया था । अंजनी को भी दशरथ की रानियों के समान तपश्चर्याद्वारा पायस प्राप्त हुआ था । इसी प्रसाद के प्रभाव से हनुमान का जन्म हुआ था । उस दिन चैत्र पूर्णिमा थी । यह तिथि ‘हनुमान जयंती’ के रूप में मनाई जाती है ।
श्रीवाल्मीकिरामायण में (किष्किंधाकाण्ड, सर्ग ६६) हनुमानजी की जन्मगाथा कुछ इस प्रकार दी है – माता अंजनी के गर्भ से हनुमानजी का जन्म हुआ । जन्म लेते ही, उगते सूर्यबिंब को पका हुआ फल समझ हनुमान ने उसकी ओर उडान भरी । पर्वतिथि होने के कारण उस दिन सूर्य को निगलने के लिए राहु भी आकाश में उपस्थित था । हनुमान को सूर्य की ओर झपटते हुए देख, वह दूसरा राहु ही है, यह समझकर इंद्र ने हनुमान पर अपना वज्र फेंका, जो उनकी ठोडी को चीरता हुआ चला गय । इसलिए उनका नाम पडा ‘हनुमान’ (‘हनु’का अर्थ है ठोडी) ।
हनुमंत को मारुति भी कहते हैं । ‘मरुत्’ से ही मारुति शब्द की उत्पत्ति होती है । मारुति एवं रुद्रसंबंधी विभिन्न विचारधाराएं हैं । मरुत् एवं हनुमान, दोनों ही रुद्रपुत्र हैं । ११ रुद्र हैं । हनुमान रुद्र हैं, इसलिए उनकी गणना एकादश-रुद्रों में की जाती है । भीम एकादशरुद्रों में से एक नाम है । हनुमंत को ‘भीमरूपी महारुद्र’ कहा जाता है । हनुमानजी को रुद्र का अवतार माना जाता है ।
हनुमानस्तोत्र का पाठ
समर्थ रामदासस्वामीजी का तेरह करोड रामनाम का जप पूर्ण होने पर हनुमान उनके समक्ष प्रकट हुए तथा उस दर्शन के उपरान्त स्वामीजी ने मराठी हनुमानस्तोत्र (भीमरूपी स्तोत्र) रचा । इस स्तोत्र में रामदासस्वामीजी ने विविध नामों से हनुमान के रूप का वर्णन एवं उनकी स्तुति की है । ‘यह स्तोत्रपाठ करनेवाले को धनधान्य, पशुधन, सन्तति आदि एवं उत्तम रूप विद्यादि का लाभ होता है । इस स्तोत्र के पाठ से भूत, पिशाच, समन्ध आदि अनिष्ट शक्ति की बाधा, सर्व रोग, व्याधि (त्रिविध ताप) नष्ट होते हैं, उसी प्रकार हनुमान के दर्शन से सारी चिन्ताएं दूर होकर आनन्द की प्राप्ति होती है’, ऐसी फलश्रुति इस स्तोत्र में दी गई है ।
दास्यभक्ति करनेवाले हनुमान
दास्यभक्ति का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण देने हेतु आज भी हनुमानजी की रामभक्ति का स्मरण होता है । वे अपने प्रभु पर प्राण अर्पण करने हेतु सदैव तत्पर रहते । उनकी सेवा की तुलना में शिवत्व एवं ब्रह्मत्व भी उन्हें कौडी के मोल लगते । हनुमान सेवक एवं सैनिक का सुन्दर सम्मिश्रण हैं ! हनुमान अर्थात शक्ति एवं भक्ति का संगम !
(संदर्भ – सनातन का लघुग्रंथ ‘हनुमान’)