नई देहली – जर्मन की विख्यात लेखिका एवं हिन्दू धर्म की प्रगाढ अध्ययनकर्त्री मारिया वर्थ ने ट्वीट किया है, भारत को लूटनेवाले ब्रिटिश भारत को बुद्धिमानी सिखाने का दुःसाहस नहीं करें ! यह क्लेशदायक है ! इस ट्वीट के साथ ही उन्होंने एक अत्यंत अध्ययनपूर्ण वीडियो भी जोडा है ।
It's painful and they dare to lecture India…
It's 4 min in all. It's in full on my Facebook page pic.twitter.com/pamsti4rfC
— Maria Wirth (@mariawirth1) December 26, 2022
इस वीडियो में कहा गया है कि २० वें शतक के अंत तक भारत के पिछडेपन को हिन्दू धर्म का कारण बता कऱ शोरगुल मचाया जा रहा था; परंतु प्रा. एंगस मेडिसन की अध्यक्षता में ३६ संपन्न देशों के ‘आर्थिक विकास एवं सहयोग संगठन’ ने एक विवरण प्रकाशित किया है । उसमें विगत २ सहस्र वर्षों की वैश्विक अर्थव्यवस्था का अध्ययन किया गया था । वैश्विक स्तर के अनुसार १ ईसा पूर्व से १००० ईसा पूर्व के मध्य भारत का सकल घरेलू उत्पाद विश्व के उत्पादों के पूरे ३४.८ प्रतिशत था तथा ब्रिटेन द्वारा भारत पर आक्रमण करने के पूर्व वर्ष १७५७ में यह अनुपात २४ प्रतिशत से अधिक था । ब्रिटेन द्वारा भारत पर आक्रमण करने के पश्चात, तथा विविध अकालों में भारत की एक दशमलव तीन (१/३) जनता की मृत्यु होने के पश्चात भी ब्रिटेन की संपत्ति अनेक गुना बढती ही गई । वर्ष १९०० आने तक भारत का उत्पाद वैश्विक स्तर पर केवल १.७ प्रतिशत ही रह गया, जबकि वर्ष १७५७ में वैश्विक आंकडों में केवल २.१ प्रतिशत रहे ब्रिटेन के उत्पाद वर्ष १९०० में १८.५ प्रतिशत के आगे निकल गया । इससे ध्यान में आता है कि उसने भारत को किस अनुपात में लूटा होगा ! सिंधु संस्कृति के समय से औद्योगिक काम पर आधारित भारतीय अर्थव्यवस्था ब्रिटेन के आक्रमण के पश्चात खेती पर आधारित हो गई । भारत भूखा एवं दरिद्र हो गया । (आशा है कि भारत की नई शिक्षा नीति के अंतर्गत इस वास्तविकता को पढाया जाएगा तथा ‘पश्चिमी देश भारत के किस प्रकार शत्रु हैं’, उदाहरण सहित इसकी व्याख्या की जाएगी ! – संपादक)
संपादकीय भूमिकाजो एक जर्मन लेखिका के ध्यान में आता है, वह भारत के किसी भी पत्रकार, लेखक तथा अध्यननकर्ता के ध्यान में क्यों नहीं आता ? ये लोग केवल ‘पुरस्कार वापसी’ का दंभ कर भारत के समूल विनाश के लिए कार्यरत हैं । ऐसे लोगों को अब खरी खोटी सुनाने की आवश्यकता है ! |