जोधपुर उच्च न्यायालय का निर्णय
जोधपुर (राजस्थान) – जोधपुर उच्च न्यायालय ने ऋग्वेद जैसे हिन्दू धर्मग्रंथ के साथ ही यहूदी, ईसाई और इस्लाम धर्माें में विद्यमान सिद्धांतों का संदर्भ देते हुए आजन्म कारावास का दंड भोगनेवाले ३४ वर्ष के कैदी नंदलाल को उसकी पत्नी रेखा गर्भवती हो, इसलिए १५ दिन संचित छुट्टी (पैरोल) संमत की ।
जोधपुर हाईकोर्ट ने एक महिला की याचिका पर उसके कैदी पति को 15 दिनों के पैरोल पर इसलिए रिहा करने का आदेश दिया है ताकि कैदी की पत्नी गर्भधारण कर सके. #Jodhpurhttps://t.co/XjlCKkZ8na
— AajTak (@aajtak) April 14, 2022
न्यायालय का कहना है कि कारावास से कैदी की पत्नी का लैंगिक एवं भावनिक आवश्यकताओं पर परिणाम हुआ है । १६ संस्कारों में से संतान होना, यह स्त्री का प्रथम अधिकार है । वंश आगे चलाने के उद्देश्य से संतति होना, यह धार्मिक तत्त्वज्ञान, भारतीय संस्कृति एवं न्यायालय के विविध निर्णयों द्वारा भी बताया गया है । संतति का अधिकार वैवाहिक सहवास द्वारा ही संपन्न हो सकता है । उसी का परिणाम दोषी को सामान्य व्यक्ति बनाने में होता है और कैदी के वर्तन में परिवर्तन होने में सहायता मिलती है । पैरोल का उद्देश्य है दोषी कारागृह से छूटने के पश्चात उसे शांति से समाज के प्रमुख प्रवाह में पुनः लाना । कैदी की पत्नी को बिना किसी अपराध के उसे संतानसुख के अधिकार से वंचित रखा गया है । इसलिए, विशेषरूप से संतान के उद्देश्य से दोषी कैदी को उसकी पत्नी के साथ वैवाहिक संबंध रखने से वंचित करने पर उसकी पत्नी के अधिकारों पर विपरीत परिणाम होगा ।