भक्तों का तीव्र विरोध होते हुए भी, केरल में कम्युनिस्ट सी.पी.आई. (एम) सरकार ने कन्नूर में मत्तनूर महादेव मंदिर अपने नियंत्रण में ले लिया !

  • प्रशासनिक अधिकारियों ने ताले तोड़कर मंदिर में किया प्रवेश !

  • भक्तों का आरोप है कि प्रशासनिक अधिकारियों के साथ सत्तारूढ़ माकपा के कार्यकर्ता भी थे ।

  • माकपा का हिन्दू विरोधी क्रियाकलाप ! देश में केवल हिन्दू मंदिरों का राष्ट्रीयकरण किया जाता है; लेकिन ध्यान दें कि किसी भी राजनीतिक दल की सरकार ईसाइयों और मुसलमानों के धार्मिक स्थलों का सरकारीकरण करने का साहस नहीं करती !  – संपादक
  • सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवतजी ने संघ के विजयादशमी समागम में हिन्दू मंदिरों के सरकारीकरण का विरोध किया था । अत: हिन्दू विचार करते हैं कि केंद्र की भाजपा सरकार को मंदिरों के सरकारीकरण को रोकने और हस्तगत किए गए मंदिरों को भक्तों को पुन: सौंपने के लिए कानून बनाना चाहिए ! – संपादक
मत्तनूर महादेव मंदिर

कन्नूर (केरल) – भक्तों के कड़े विरोध के बावजूद केरल में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सी.पी.एम.) की सरकार ने एक बड़े पुलिस बल की सहायता  से यहां के मत्तनूर महादेव मंदिर को अपने नियंत्रण में ले लिया। मंदिर का संचालन अब मालाबार देवस्वम मंडल करेगा । इस समय  श्रद्धालुओं ने पुलिस और प्रशासन को रोकने के कई प्रयास किए किन्तु पुलिस ने उन्हें बलपूर्वक  हटा दिया। इतना ही नहीं देवस्वम मंडल के प्रशासनिक अधिकारियों ने मंदिर के प्रवेश द्वार पर लगे ताले को तोड़कर कर  मंदिर को अपने नियंत्रण में ले लिया । ‘देवस्वम मंडल’ सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है। १९७० के दशक में यह मंदिर बहुत ही दयनीय  स्थिति में था तदोपरांत  श्रद्धालुओं ने इस का पुनरुद्धार किया ।

१. भक्तों का आरोप है कि देवस्वम मंडल के पदाधिकारी और सत्तारूढ़ माकपा के कार्यकर्ता भी जब मंदिर नियंत्रण में लिया तब वहां उपस्थित  थे । उन्होंने मंदिर में प्रवेश किया और देवस्वम मंडल की एक पट्टिका लगाई। (यदि यह सत्य है तो यह माकपा की तानाशाही है ! प्रकरण की सुनवाई के समय  सर्वोच्च न्यायालय को इस पर विचार करना चाहिए ! – संपादक)

२. मंदिर समिति ने कहा कि इस संबंध में प्रकरण सर्वोच्च न्यायालय  में लंबित होने के कारण यह  कार्रवाई करना अनुचित था । इस संबंध में देवस्वम मंडल द्वारा कोई नोटिस भी जारी नहीं किया गया थाm ।

३. देवस्वम मंडल के अध्यक्ष मुरली ने कहा कि मंदिर के कर्मचारियों को केवल १३,०००  रुपये प्रति माह वेतन का भुगतान किया जाता  था। वास्तव में  मंदिर समिति इससे अधिक भुगतान कर सकती थी। अब हमारा प्रबंधन इस समस्या का समाधान करेगा। (मस्जिदों और चर्चों में मौलवियों और पादरियों को कितना भुगतान मिलता है ? क्या प्रशासन इसका पता लगाता है ? – संपादक)

४. विश्व हिन्दू परिषद और अन्य संगठन पिछले एक सप्ताह से इस मंदिर के सरकारीकरण का विरोध कर रहे हैं। मंदिर समिति ने सर्वोच्च न्यायालय  में भी मंदिर के सरकारीकरण का विरोध किया था।

मुसलमानों और ईसाइयों की तरह हिन्दुओं को भी उनके धार्मिक स्थलों के प्रबंधन का अधिकार दिया जाना चाहिए ! -सामाजिक कार्यकर्ता राहुल ईश्वर

सामाजिक कार्यकर्ता राहुल ईश्वर ने कहा कि १९४७  में भले ही भारत स्वतंत्र  हुआ, किन्तु  हिन्दू मंदिरों को अभी तक स्वतंत्रता  नहीं मिली है। ब्रिटिश शासन के दौरान १८१२  की व्यवस्था अभी भी लागू है। अंग्रेजों ने हिन्दुओं को दबाने के लिए मंदिरों पर नियंत्रण करने का कानून बनाया था । हिन्दुओं को भी अपने पूजा स्थलों का प्रबंधन करने का उतना ही अधिकार होना चाहिए जितना कि मुसलमानों और ईसाइयों को है।