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नई दिल्ली – कुछ सप्ताह पूर्व पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के भोंग शहर में एक ८ वर्षीय हिन्दू लडके ने वहां के मदरसे में मूत्रविसर्जन करने के कारण उसके विरोध में ईशनिंदा का आरोप लगाकर उसे हिरासत में लिया गया था । इस कारण पाकिस्तान का ईशनिंदा का दमनकारी कानून एक बार पुन: चर्चा में आ गया था । इस पृष्ठभूमि पर पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारों के लिए लडने वाले राहत ऑस्टिन ने बताया कि, पाक में तालिबान के विरोध में बोलना भी ईशनिंदा समान ही हो गया है । वहां की परिस्थिति अल्पसंख्यकों के लिए बहुत कठिन हो गई है । दैनिक ‘सनातन प्रभात’ के प्रतिनिधि ने राहत ऑस्टिन से जब दूरभाष पर संपर्क किया था, तब उन्होंने पाकिस्तान की भयानक स्थिति की जानकारी दी ।
इस समय ऑस्टिन ने कहा, ‘‘भोंग शहर में निर्दोष हिन्दू लडके के कृत्य का आधार लेकर सैकडों स्थानीय धर्मांधों ने वहां के गणपति मंदिर पर आक्रमण किया था । मंदिर की तोडफोड करते हुए हिन्दुओं के देवताओं की मूर्तियां तोडी गई थी: परंतु अब उस लडके पर लगे सभी आरोप निराधार है, यह स्पष्ट होने के कारण उसके विरोध में प्रविष्ट अपराध निरस्त किया गया है । ऐसा होते हुए भी, धर्मांधों द्वारा संबंधित हिन्दू परिवार पर संकट होने के कारण परिवार अभी भी पुलिस की सुरक्षा निगरानी में है ।’’
ऑस्टिन ने पाक की धर्मांधता के संबंध में चौंकाने वाले खुलासे किए हैं । उनके द्वारा दी जानकारी आगे दी गई है
१. पाक के धर्मांधों को मंदिरों एवं अल्पसंख्यकों पर आक्रमण करने के लिए कोई भी छोटा कारण पर्याप्त होता है । हिन्दू धर्म और हिन्दुओं का वंशविच्छेद करना ही वहां के बहुसंख्यकों का एकमात्र कार्यक्रम होता है । इसलिए पाक में अल्पसंख्यकों की संख्या दिन/-प्रतिदिन घटती जा रही है ।
२. पाक के मंदिरों पर आक्रमण होने के पश्चात हिन्दुओं के देवताओं की मूर्तियां तोडी जाती है । इसके पश्चात पुन: कभी भी मूर्तियां स्थापित नहीं की जाती है । मंदिरों में केवल हिन्दुओं के देवताओं के चित्र लगाकर हिन्दुओं को मौन कर दिया जाता है । ‘किसी महिला पर बलात्कार करने के पश्चात उसे अच्छे कपडे पहनाना एवं वहां की भूमि को स्वच्छ करना’, इसके समान यह हो गया ।
३. भोंग शहर में हुई हिंसा के कारण वहां के १५० हिन्दू परिवारों ने पलायन किया था । इनमें से कुछ ही परिवार लौटे हैं । अन्य अनेक परिवार अभी भी भय के कारण नहीं लौटे हैं ।
४. पाक में व्यक्ति जितना शिक्षित होता है, वह उतना ही अधिक कट्टर होता है । मैं स्वयं अधिवक्ता होने के कारण बता सकता हूं कि, न्यायालय के लिपिक की अपेक्षा न्यायाधीश अधिक कट्टर होते हैं एवं वे धर्म के आधार पर ही विचार करते हैं । वर्ष २००९ से मैं इसका अनुभव कर रहा हूं ।