मंदिरों की भूमि सदैव मंदिरों के पास ही रहेगी ! – मद्रास उच्च न्यायालय का ऐतिहासिक आदेश

चेन्नई (तमिलनाडु) – “मंदिर दानदाताओं की इच्छा के विरुद्ध किसी को भूमि नहीं देनी चाहिए । भूमि सदैव मंदिरों के पास ही रहेगी । यह कानून उन प्रकरणों में लागू नहीं होगा, जहां समुदाय के हित सामान्यतः मंदिरों की भूमि पर निर्भर होते हैं”, ऐसा ऐतिहासिक निर्णय मद्रास उच्च न्यायालय ने सुनाया है । इस पृष्ठभूमि में, उच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक स्मारकों तथा प्राचीन मंदिरों के रखरखाव एवं संरक्षण के लिए तमिलनाडु सरकार को ७५ दिशानिर्देशों का एक संग्रह जारी किया है । ‘द हिंदू’ समाचार पत्र में प्रकाशित ‘द साइलेंट ब्यूरियल’ शीर्षक के एक पाठक के पत्र पर आधारित भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश संजय किशन द्वारा प्रविष्ट एक याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह आदेश पारित किया । (हिन्दू श्रद्धालुओं तथा हिन्दू संगठनों को नहीं, अपितु एक सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश को इस संबंध में याचिका प्रविष्ट करनी पडी ; यह लज्जाजनक बात है ! – संपादक)

१. मद्रास उच्च न्यायालय ने सरकारी अधिकारियों को मंदिरों की भूमि पर हुए अतिक्रमणों की सूची तैयार कर, अतिक्रमण करने वाले तथा भूमि का किराया न देने वालों से तत्काल अर्थदंड वसूलने के निर्देश दिए ।

२. न्यायालय ने सूची तैयार करने तथा उसका विवरण संकेतस्थल (वेबसाइट) पर डालने के लिए ६ सप्ताह की अवधि दी है । न्यायालय ने यह भी चेतावनी दी कि, ८ सप्ताह में अतिक्रमण हटाने में विफल रहने की स्थिति में मानव संसाधन विकास विभाग एवं उसके अधिकारियों के विरुद्ध उचित कार्रवाई की जाएगी ।

प्राचीन मूर्तियों एवं मंदिरों की रक्षा करने में विफल रहने के लिए हिन्दू धार्मिक एवं धर्मार्थ संपदा विभाग एवं पुरातत्व विभागों को न्यायालय ने फटकार लगाई !

न्यायालय ने कहा कि भव्य एवं प्राचीन मंदिरों तथा परिसर संपत्ति की रक्षा करने वालों को कष्ट कम हैं । ऐसा होते हुए भी वे उनकी रक्षा नहीं करते । हमारी बहुमूल्य धरोहर का विनाश किसी प्राकृतिक आपदा के कारण नहीं है, अपितु प्रशासन द्वारा इसके नवीनीकरण की उपेक्षा के कारण है । आश्चर्य की बात यह है कि, प्रमुख मंदिरों को दान प्राप्त होने के पश्चात भी, हिन्दू धार्मिक एवं धर्मार्थ संपदा विभाग ऐतिहासिक मंदिरों तथा मूर्तियों की रक्षा नहीं कर सकता है । इन सबका प्राचीन मूल्य अधिक है । राज्य के कुछ मंदिरों को ‘यूनेस्को’ द्वारा ऐतिहासिक धरोहर स्थल घोषित किया गया है । राज्य में २ सहस्र वर्ष पुराने मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं । न तो पुरातत्व विभाग तथा न ही हिन्दू धार्मिक एवं धर्मार्थ संपदा विभाग पहल करने को तैयार है ।

मंदिरों की धनराशि मंदिरों के लिए ही व्यय करनी चाहिए !

न्यायालय ने अपने आदेश में आगे कहा है कि, ‘मंदिर की धनराशि का उपयोग मात्र मंदिरों के लिए किया जाना चाहिए । विविध मंदिरों का निधि उसी मंदिर के रख-रखाव एवं मरम्मत, मंदिरों में त्योहारों के आयोजन के साथ-साथ पुजारियों, संगीतकारों, नाटकों एवं लोकगीतों के कलाकारों सहित कर्मचारियों के लिए लगानी चाहिए । साथ ही, मंदिरों की संपत्ति का भी उचित पद्धति से लेखा परीक्षण होना चाहिए ।’

मंदिरों के लिए न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) स्थापित करने का आदेश

न्यायालय ने हिन्दू धार्मिक नवं धर्मार्थ संपदा कानून के अंतर्गत एक विशेष न्यायाधिकरण स्थापित करने का भी आदेश दिया है । यह न्यायाधिकरण मंदिरों के संदर्भ में अर्थात धार्मिक प्रकरण, संस्कृति, परंपराओं, धरोहर, लंबित किराए, अतिक्रमण के साथ-साथ मंदिरों एवं मठों के अन्य प्रकरणों की सुनवाई करेगा । इसके साथ ही हिन्दू धार्मिक एवं धर्मार्थ संपदा कानून की समीक्षा के लिए एक न्यायपीठ गठित करने का भी आदेश दिया गया है । ३ वर्ष में एक बार इस कानून की समीक्षा के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया जाना चाहिए ।

धरोहर आयोग की स्थापना करने का आदेश

न्यायालय ने धरोहर आयोग की स्थापना करने का भी आदेश दिया है । आगामी २ माह में, १७ सदस्यीय धरोहर आयोग गठित करने के लिए कहा गया है । केंद्रीय अधिनियम अथवा राज्य अधिनियम के अंतर्गत अधिसूचित किसी भी स्मारक, मंदिर, मूर्तियों, मूर्तिकलाओं में संरचनात्मक परिवर्तन करने के लिए इस आयोग से अनुमति लेना अनिवार्य होगा ।