परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी एवं सद्गुरुद्वयी का धर्मसंस्थापना का कार्य
अ. नाडीपट्टिकाओं में अनेक ऋषियों द्वारा सनातन संस्था के गुरुओं द्वारा ‘धर्मसंस्थापना’ होने का सूत्र लिखा होना : ‘अभी तक सप्तर्षि जीवनाडी-पट्टिका के माध्यम से सनातन संस्था के लिए २०० से भी अधिक बार नाडीवाचन हो चुका है । इसके अतिरिक्त कौशिक नाडी, भृगु नाडी, शिवनाडी, वसिष्ठ नाडी, काकभुशुंडि नाडी और अत्रि नाडी जैसे अनेक ऋषियों द्वारा लिखी गई नाडीपट्टिकाओं में सनातन संस्था के ३ गुरु अर्थात सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के श्रीविष्णु के अवतार होने की तथा श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ‘श्रीविष्णु की शक्तियां’ अर्थात श्री महालक्ष्मी देवी के अवतार होने की बात बताई गई है । केवल इतना ही नहीं, अपितु अधिकतर इन नाडीपट्टिकाओं में ऋषि-मुनियों द्वारा लिखा गया है कि ‘सनातन के ३ गुरु ‘धर्मसंस्थापना’ करेंगे ।’ ‘धर्मसंस्थापना’ तो किसी देश में होनेवाली सामान्य क्रांति न होकर वह विश्व के संचालन हेतु ईश्वर द्वारा किया जानेवाला लीलामय परिवर्तन है ।
आ. स्थूल से किसी प्रकार का आर्थिक, सामाजिक, साथ ही राजनीतिक संरक्षण न होते हुए भी सनातन संस्था के सद्गुरु अवतारी होने से उनके द्वारा धर्मसंस्थापना होना संभव ! : स्थूल दृष्टि से सनातन संस्था के संस्थापक परात्पर गुरु डॉक्टरजी की आयु वर्तमान में ७९ वर्ष है । उनकी आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी, ये दोनों महिलाएं सामान्य गृहिणियां हैं । सनातन संस्था तो कुछ सहस्र साधकों की एक छोटी सी संस्था है, जिसे किसी भी प्रकार का आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक अथवा अन्य कोई संरक्षण नहीं है । सनातन के साधक भी सामान्य ही हैं ।
श्रीराम राजा थे । उनके पास सैनिक, अन्य राजा, शस्त्रास्त्र आदि सर्व साधन थे । श्रीकृष्ण भी राजा थे, साथ ही पांडव भी राजवंश से थे । उसके कारण उनके पास भी सैनिक, शस्त्रास्त्र, सहायता के लिए अन्य राजा, धन आदि सबकुछ था । स्थूल से देखा जाए, तो ‘सनातन संस्था के गुरुओं के पास ऐसा कुछ भी नहीं है; परंतु तब ऐसे में वे कैसे धर्मसंस्थापना कर पाएंगे ?’, किसी भी साधक के मन में यह प्रश्न उठ सकता है । इसलिए केवल साधकों के लिए ही यहां परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी एवं सद्गुरुद्वयी के अवतारत्व का उल्लेख करने की इच्छा होती है ।
इ. अवतारों के लिए सूक्ष्म के बंधन न होने से एक ही समय पर अनेक स्थानों पर सूक्ष्म से अनेक कार्य करना : ‘अवतार’ शब्द की उत्पत्ति ‘अवतृ’, अर्थात ‘धारण करना’ शब्द से हुई है । ईश्वर जब पृथ्वी पर अवतार धारण करते हैं, तब उनका मूल रूप वैकुंठ में होता है और वे केवल लीलामय रूप धारण कर ही पृथ्वी पर आए होते हैं । इस लीलामय रूप में भी अवतार पृथ्वी पर रहकर एक ही समय १४ लोकों में (भुवनों में) उपस्थित और कार्यरत होते हैं । अवतार के लिए भले ही स्थूल के सभी बंधन लागू होते हों; परंतु उसके लिए सूक्ष्म के बंधन लागू नहीं होते और उसके कारण अवतार एक ही समय पर सूक्ष्म से अनेक कार्य करते रहते हैं ।
सनातन के गुरु भी ऐसे ही हैं । स्थूल से भले ही वे ‘रामनाथी आश्रम में निवास कर रहे हैं’, ऐसा दिखाई देता हो; परंतु सूक्ष्म से उनका कार्य अनेक गुना चल रहा होता है । उनका सूक्ष्म कार्य अनंत है; परंतु वह दिखाई न देनेवाला है । उनकी स्थूल विशेषताएं दिखाई देती हैं; परंतु माया के कारण ही सूक्ष्म की उनकी विशेषताएं मनुष्य के ध्यान में नहीं आतीं ।
ई. कलियुग में अनिष्ट शक्तियों का स्थूल की अपेक्षा सूक्ष्म में अधिक कार्यरत होना तथा वर्तमान में पृथ्वी का नियंत्रण उनके हाथ में होना : सत्य, त्रेता एवं द्वापर युगों में अनिष्ट शक्तियां स्थूल से अधिक कार्यरत थीं; परंतु इस कलियुग में अब वे स्थूल की अपेक्षा सूक्ष्म से अधिक कार्यरत हैं । अनिष्ट शक्तियां सदैव मायावी होती हैं । वे धर्म का विरोध करती हैं अथवा धर्म द्वारा डाले गए बंधन तोडकर नए नियम बनाती हैं । विगत २ सहस्र वर्षाें में माया के आधार पर मनुष्य के माध्यम से उन्होंने विश्व पर अपना नियंत्रण स्थापित किया है । वर्तमान में पृथ्वी उनके नियंत्रण में है । प्रकृति का विनाश करनेवाले, अलग-अलग मनुष्य समूहों में कलह उत्पन्न करनेवाले, साथ ही निर्बल जीव, अन्य लोक और महिलाओं का शोषण करनेवाले इन मनुष्यों के पीछे सूक्ष्म की अनिष्ट शक्तियां कार्यरत हो सकती हैं ।
सनातन के धर्मग्रंथों के माध्यम से शुद्ध धर्मबीज अर्थात अगली पीढी को शुद्ध
ज्ञान प्रदान करने हेतु महा, जन और तप लोकों के जीवों का पृथ्वी पर जन्म लेना
इस सूक्ष्म युद्ध तक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी और श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी का अवतारी कार्य केवल इस सूक्ष्म युद्ध तक ही सीमित नहीं है, अपितु जब तक पृथ्वी पर शुद्ध धर्मबीज का अवतरण नहीं होता, तब तक अवतार कार्यरत होते हैं । जैसे ‘श्रीराम और रामायण’, ‘श्रीकृष्ण और गीता-भागवत’, साथ ही ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी और सनातन के ग्रंथ’ हैं । सनातन के ग्रंथ तो ‘धर्मग्रंथ’ ही हैं ! ये ग्रंथ ही आनेवाली पीढियों का मार्गदर्शन कर उन्हें शुद्ध धर्म की ओर ले जाएंगे; परंतु सनातन के ग्रंथों के माध्यम से तीसरी और चौथी पीढी तक शुद्ध ज्ञान ले जाने हेतु उच्च जीवों की आवश्यकता है । आनेवाले काल में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की कृपा से महा, जन और तप लोकों में निहित उच्च जीव पृथ्वी पर विविध स्थानों पर जन्म लेंगे । उनकी संख्या कुछ सहस्र होगी । उच्च लोक के ये जीव अवतार द्वारा दिया गया ज्ञान अगली पीढियों को देंगे और पृथ्वी पर सत्त्वगुणी सनातन धर्मराज्य की स्थापना होगी !
यह चराचर सृष्टि व मनुष्य पंचमहाभूतों से बने हैं । पंचमहाभूत ही ईश्वर द्वारा प्रलय लाने के माध्यम हैं । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी में भी पंचमहाभूतों को आध्यात्मिक दृष्टि से नियंत्रित करने की क्षमता है’, ऐसा महर्षियों ने कहा है । तो अब साधकों को किस बात का भय होगा ?
सनातन के तीनों गुरुओं के लिए ‘यज्ञ-याग’ ही कुरुक्षेत्र की सूक्ष्म युद्धभूमि है । उनके करकमलों से दी जानेवाली एक-एक आहुति का अर्थ एक-एक सूक्ष्म अनिष्ट शक्ति का स्वाहाकार ही है । जिस प्रकार श्रीकृष्ण ने अर्जुन से महाभारत का युद्ध लडवा लिया, उसी प्रकार परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के माध्यम से यज्ञ-याग करवाकर सूक्ष्म युद्ध का अंत कर रहे हैं ।
– श्री. विनायक शानभाग, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (५.५.२०२१)
प्रकृति का प्रकोप और तीसरे विश्वयुद्ध का होना ईश्वरनियोजित है !
इसके अंतर्गत ९० प्रतिशत युद्ध तो सूक्ष्म से ही होनेवाला है, इसका अर्थ ९० प्रतिशत धर्मसंस्थापना का कार्य भी सूक्ष्म से होनेवाला है । आनेवाले समय में प्राकृतिक प्रकोप और तीसरे विश्वयुद्ध के रूप में इस सूक्ष्म युद्ध की घटनाएं दिखाई देनेवाली हैं । यह ईश्वरीय नियोजन है, जिसका हमें केवल साक्षी बनना है । सनातन के सभी साधक, परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी और सद्गुरुद्वयी के अवतारी कार्य के अर्थात धर्मसंस्थापना के साक्षी बननेवाले हैं । जिस प्रकार महाभारत में संजय प्रत्यक्ष युद्धभूमि पर नहीं गए थे; परंतु वे महाभारत युद्ध के साक्षी बने । उसी प्रकार सनातन के सभी साधक आनेवाले समय में होनेवाले तीसरे विश्वयुद्ध के साक्षी होंगे ।
– श्री. विनायक शानभाग
भक्तवत्सल श्रीकृष्ण रूप
जगत्पालक श्री महाविष्णु रूप
कृपालु श्री सत्यनारायण रूप
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी और सद्गुरुद्वयी के अवतारी कार्य
अ. सप्तपाताल में कार्यरत सूक्ष्म में निहित अनिष्ट शक्तियों की शक्ति क्षीण करनेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ! : विगत २० वर्षों में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने सूक्ष्म की अनिष्ट शक्तियों के विरुद्ध जो संघर्ष किया है, वह अवर्णनीय है । उन्होंने सप्तपाताल में बैठकर कार्यरत सभी मायावी शक्तियों को सूक्ष्म से ढूंढकर पराजित ही कर दिया है । इस संपूर्ण युद्ध में सनातन के साधक केवल ईश्वरीय माध्यम थे । गुरुदेवजी ने ९० प्रतिशत सूक्ष्म युद्ध तो पहले ही जीत लिया है । उन्होंने इन मायावी अनिष्ट शक्तियों की शक्ति इतनी क्षीण कर दी है कि इस कलियुग में आनेवाले १ सहस्र वर्ष तक वे पुनः सिर नहीं उठा सकेंगी ।
आ. साधकों को परात्पर गुरु डॉक्टरजी की अवतार महिमा दिखानेवाली श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी ! : गुरुदेवजी ने साधना के संदर्भ में रामनाथी आश्रम के साधकों का मार्गदर्शन करने के उपलक्ष्य में श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी को संपूर्ण विश्व के साधकों का मार्गदर्शन करने के लिए कहा । प्रत्येक बार अवतार साधक-जीवों का उद्धार किए बिना नहीं रहते । श्रीराम ने ॠषि, ॠषिपत्नी, वानर, राक्षस और प्रजा, इन सबका ही उद्धार किया । श्रीकृष्ण ने गोप-गोपिकाओं, पांडव-कौरव और अनेक भक्तों का उद्धार किया । उसी प्रकार अब श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी अपनी मधुर वाणी और आचरण से साधकों को यह दिखा रही हैं कि ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी साधकों के आत्मोद्धार हेतु पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं ।’ साक्षात श्रीविष्णु की शक्ति श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के अतिरिक्त ईश्वरीय सत्य समझ में आना संभव नहीं है । ‘श्रद्धावान साधकों को श्रीविष्णु के चरणों तक पहुंचाए बिना वे शांति से नहीं बैठेंगी’, यही सत्य है !
इ. भगवान ने पृथ्वी पर जिस-जिस स्थान पर अपनी शक्ति रखी है, उन स्थानों पर जाकर देवतातत्त्वों को जागृत करनेवाली श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ! : गुरुदेवजी ने सनातन के इतिहास में ‘सूक्ष्म ज्ञान प्राप्त करनेवाली साधिका के रूप में परिचित श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को आश्रम से आध्यात्मिक यात्राओं के लिए भेजा । विगत ९ वर्षाें की इस यात्रा में श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने सहस्रों तीर्थस्थानों के दर्शन किए हैं ।
रामायण, महाभारत, श्रीमद्भागवत और पुराणों में जिन-जिन मुख्य अवतारी स्थानों का उल्लेख आता है, उनमें से अधिकतर सभी तीर्थस्थानों की यात्रा वे कर चुकी हैं । ‘भगवान अपनी शक्ति कभी भी अपव्यय नहीं करते’, यह उनकी विशेषता है । पिछले अवतारों में भगवान आगे के कार्य हेतु अपनी शक्ति पृथ्वी पर संग्रहित कर रखते हैं । अब परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के माध्यम से उन क्षेत्रों में उनके द्वारा पिछले अवतारों के समय संग्रहित की गई शक्ति को अर्थात देवतातत्त्व को जागृत कर रहे हैं । इस ईश्वरीय शक्ति के कार्यरत होने के उपरांत हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होने ही वाली है । अनिष्ट शक्तियों ने ईश्वरीय स्रोतवाले सभी तीर्थस्थानों पर मानवीय माध्यमों का उपयोग कर वहां कष्टदायक शक्तियों का आवरण बनाया है । साक्षात श्रीविष्णु की शक्ति श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी उन स्थानों को जाकर आती हैं, तब वहां के कष्टदायक स्पंदन दूर हो जाते हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है !
– श्री. विनायक शानभाग, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (५.५.२०२१)
परात्पर गुरु डॉ. आठवले, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळ और श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ ने नहीं कहा कि ‘मैं अवतार हूं ।’ ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी श्रीविष्णु के अवतार हैं, तो ‘श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळ और श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ’ श्री महालक्ष्मीदेवी की अवतार हैं’, ऐसा महर्षि ने नाडीपट्टी में कहा है । साधकों का और सनातन प्रभात के संपादक का महर्षि के प्रति भाव होने से हम महर्षि की आज्ञा मानकर इस विशेषांक में लेखन प्रकाशित कर रहे हैं । – संपादक
सूक्ष्म : व्यक्ति का स्थूल अर्थात प्रत्यक्ष दिखनेवाले अवयव नाक, कान, नेत्र, जीव्हा एवं त्वचा यह पंचज्ञानेंद्रिय है । जो स्थूल पंचज्ञानेंद्रिय, मन एवं बुद्धि के परे है, वह ‘सूक्ष्म’ है । इसके अस्तित्व का ज्ञान साधना करनेवाले को होता है । इस ‘सूक्ष्म’ ज्ञान के विषय में विविध धर्मग्रंथों में उल्लेख है । बुरी शक्ति : वातावरण में अच्छी तथा बुरी (अनिष्ट) शक्तियां कार्यरत रहती हैं । अच्छे कार्य में अच्छी शक्तियां मानव की सहायता करती हैं, जबकि अनिष्ट शक्तियां मानव को कष्ट देती हैं । प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के यज्ञों में राक्षसों ने विघ्न डाले, ऐसी अनेक कथाएं वेद-पुराणों में हैं । ‘अथर्ववेद में अनेक स्थानों पर अनिष्ट शक्तियां, उदा. असुर, राक्षस, पिशाच को प्रतिबंधित करने हेतु मंत्र दिए हैं ।’ अनिष्ट शक्ति के कष्ट के निवारणार्थ विविध आध्यात्मिक उपाय वेदादी धर्मग्रंथों में वर्णित हैं । इस अंक में प्रकाशित अनुभूतियां, ‘जहां भाव, वहां भगवान’ इस उक्ति अनुसार साधकों की व्यक्तिगत अनुभूतियां हैं । वैसी अनूभूतियां सभी को हों, यह आवश्यक नहीं है । – संपादक |