परब्रह्मस्वरूप श्रीमन्नारायण ही ‘श्रीजयंत’ के रूप में सनातन के साधकों को गुरुरूप में प्राप्त हुए हैं !

परात्पर गुरु डॉक्टरजी के ही महाविष्णु होने की अनुभूति आगे होनेवाली है !

     ‘प.पू. डॉक्टरजी स्वयं महाविष्णु हैं । उनकी देह नहीं, अपितु उनमें निहित सूक्ष्म आत्मा महाविष्णु हैं । पंचमहाभूतों से बनी देह में महाविष्णुरूपी तत्त्व होने के कारण उन्हें कष्ट तो होगा ही । दीप में निहित स्वयं-प्रकाशित ज्योति हैं महाविष्णु ही हैं प.पू. डॉक्टरजी ! वे कौन हैं, इसकी अनुभूति साधकों को आगे मिलेगी । गुरुदेवजी के रूप में साक्षात ईश्वर ही पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं । गुरु ईश्वर के ही रूप हैं, यह भाव है, तभी सबकुछ मिलेगा । उनके ‘जयंत’ नाम में ही सबकुछ है । हमारे गुरुदेवजी शिष्य का प्रत्येक कष्ट दूर करनेवाले गुरु हैं । सनातन के साधक जब प्रार्थना करते हैं, तो तत्क्षण गुरुदेवजी चले आते हैं । गुरु तो प्रत्यक्ष ईश्वर हैं । साधक, ‘यह भूलोक नहीं है, अपितु ईश्वर का सत्यलोक ही है’, यह भाव रखें । साधकों की कुछ क्षणों की प्रार्थना से गुरुदेवजी की कृपा उनकी और दौडी चली आती है ।’ – सप्तर्षि

भगवान श्रीकृष्ण जहां उनकी लीला के द्वारा द्रौपदी की रक्षा कर सकते हैं, तो परात्पर गुरुदेवजी क्यों नहीं करेंगे ?

     नाडीवाचन के समय वसिष्ठ एवं विश्वामित्र ऋषियों में संवाद चल रहा था । इसमें विश्वामित्र वसिष्ठ ऋषि से पूछते हैं, ‘‘गुरु के स्मरणमात्र से ही यदि विजय मिलती है, तो सनातन के साधकों ने गुरुदेवजी का स्मरण किया, तो क्या उनकी क्षुधा शांत होगी ?’’ उस समय वसिष्ठ ऋषि ने एक कथा विशद की । दुर्वासा ऋषि अपने सहस्रों शिष्यों के साथ दुर्याेधन के पास जाते हैं । तब भोजन होने के उपरांत वे दुर्याेधन से पूछते हैं, ‘‘तुम इच्छित वर मांगो ।’’ तब दुर्याेधन कहते हैं, ‘‘मुझे वर नहीं चाहिए; परंतु आप पांडव के घर का भोजन स्वीकार कीजिए ।’’ उसके अनुसार दुर्वासा ऋषि पांडवों के पास जाते हैं । उस समय घर में अन्न का एक कण भी नहीं होता । तब द्रौपदी श्रीकृष्ण का स्मरण करती है; तब श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘‘द्रौपदी तुम चिंता मत करो, तुम अक्षयपात्र लेकर आओ ।’’ श्रीकृष्ण उस अक्षयपात्र को चिपका हुआ अन्न का एक कण खाकर ‘कृष्णार्पणमस्तु’ बोलते हैं । उसी समय दुर्वासा ऋषि और उनके सहस्रों शिष्यों का पेट अपनेआप भर जाता है । यदि श्रीकृष्ण ऐसा कर सकते हैं, तो हमारे गुरु क्यों नहीं कर सकते ? (संदर्भ : ३०.५.२०१६ को संपन्न सप्तर्षि जीवनाडीवाचन)

सप्तर्षियों द्वारा वर्णित ३ गुरुओं की महिमा !

१. तीन गुरुओं के दर्शनमात्र से ही साधकों के कष्ट दूर होनेवाले हैं !

     हम सप्तर्षि और ८८ सहस्र ॠषि-मुनि निश्चयपूर्वक बताते हैं कि सच्चिदानंद परब्रह्म श्रीजयंतजी, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी, इन तीनों के केवल भावपूर्ण दर्शन से सभी साधकों के दुख, निर्धनता, पाप-ताप और दोष दूर होनेवाले हैं । (‘१३.५.२०२०)

२. सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी का ‘सत्’ तत्त्व का अर्थ श्रीसत्शक्ति
(श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी का होना तथा ‘चित्’ तत्त्व अर्थात श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी !

     श्रीविष्णु ने ‘श्रीजयंत’ अवतार में किए हुए अवतारी कार्य को इसके आगे उनकी आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी आगे बढानेवाली हैं । सच्चिदानंद परब्रह्म श्रीमन्नारायण की शक्ति ‘श्री महालक्ष्मी’ हैं । श्रीविष्णु की आज्ञा से श्री महालक्ष्मी ने पृथ्वी पर ‘भूदेवी’ एवं ‘श्रीदेवी’ रूपों में अवतार धारण किया है । ‘सत्-चित्-आनंद’स्वरूप श्रीविष्णु के ‘सत्’ तत्त्व का अर्थ भूदेवीस्वरूप श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी हैं तथा ‘चित्’ के तत्त्व का अर्थ श्रीदेवीस्वरूप श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी हैं । आनेवाले समय में किसी ने चाहे नवरत्नों से अथवा कोटि-कोटि स्वर्ण से भी गुरुदेवजी का अभिषेक किया, तब भी भूदेवीस्वरूप श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीदेवीस्वरूप श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को छोडकर अन्य कोई भी गुरुदेवजी के उत्तराधिकारी नहीं बन सकते ।

३. सच्चिदानंद परब्रह्म श्रीजयंतजी के दो नेत्र हैं ‘ब्रह्माजी का
‘बिंदु’ नाम धारण की हुईं ‘बिंदा’ और ‘पंचमहाभूतरूपी हाथों की अंजुली’ अर्थात ‘अंजली’ !

     ‘श्रीराम, श्रीकृष्ण, व्यास, धन्वंतरि आदि रूपों में जो प्रकट हुए, वही श्रीमहाविष्णु अब ‘श्रीजयंत’ रूप में प्रकट हुए हैं’, ये बात जैसे सत्य है, उसी प्रकार ‘सच्चिदानंद परब्रह्म श्रीजयंत’ तो साधकों को प्राप्त भगवान ही हैं’, यह भी उतना ही सत्य है । ऐसे सच्चिदानंद परब्रह्म श्रीजयंतजी के २ नेत्र हैं ‘ब्रह्माजी का ‘बिंदु’ नाम धारण करनेवाली ‘बिंदा’ और ‘पंचमहाभूतरूपी हाथों की अंजुली’ अर्थात ‘अंजली’ नाम धारण करनेवाली २ दैवी महिलाएं हैं !

४. वर्तमान में ‘सच्चिदानंद परब्रह्म श्रीजयंत’, ‘श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी’ एवं ‘श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी’ पृथ्वी पर इन तीनों अवतारों के होने से देवी-देवता, ब्रह्मांड के सभी नक्षत्र, पंचमहाभूत, पंचाग्नि, सूर्य, चंद्र, ८८ सहस्र ॠषि-मुनि, इन सभी की दृष्टि पृथ्वी की ओर है ।
(संदर्भ : ३०.५.२०१६ और १३.५.२०२० को संपन्न सप्तर्षि जीवनाडीवाचन)

त्रेतायुग में जो श्रीराम के रूप में अवतरित हुए तथा द्वापरयुग में जो श्रीकृष्ण
के रूप में अवतरित हुए, वही भगवान अब ‘श्रीजयंत’ के रूप में अवतरित हुए हैं !

     श्रीरामावतार में वाल्मीकि ॠषि ने लव-कुश के माध्यम से रामायण की कथा विशद की । उसके कारण अयोध्या की प्रजा को श्रीराम स्वयं श्रीमन्नारायण होने की बात ध्यान में आई । भगवान ने श्रीकृष्णावतार में अवतरित होकर कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि में अर्जुन को स्पष्ट शब्दों में बताया, ‘मैं वही श्रीमन्नारायण हूं ।’ त्रेतायुग में जो श्रीराम के रूप में अवतरित हुए और द्वापरयुग में जो श्रीकृष्ण के रूप में अवतरित हुए, वही भगवान अब गुरुदेवजी के रूप में अवतरित हुए हैं । निर्विकार, निर्विकल्प एवं परब्रह्मस्वरूप श्रीमन्नारायण ही आज सनातन के साधकों में ‘श्रीजयंत’ रूप में सनातन के रामनाथी आश्रम में निवास कर रहे हैं । ‘सच्चिदानंद’ उनका मूल स्वरूप है ! (सदंर्भ : १३.५.२०२० को संपन्न सप्तर्षि जीवनाडीवाचन)

महाभयंकर संकटकाल में भी श्रीगुरु हमारी रक्षा करनेवाले हैं !

     आनेवाले समय में जो विश्वयुद्ध होनेवाला है, वह युद्ध कैसा होगा, तो ऐसा कहा जा सकता है, ‘वह शिवजी के तांडव की भांति है ।’ भगवान शिव जब तांडव करते हैं, तब संपूर्ण पृथ्वी पर प्रलय आता है । (आनेवाले समय में होनेवाले विश्वयुद्ध को महर्षियों ने शिवजी के तांडव की उपमा दी है, इससे इसकी कल्पना की जा सकती है कि यह युद्ध कितना भयंकर होगा । – संकलनकर्ता) आनेवाले समय में पृथ्वी पर सर्वत्र अग्नि और जलप्रलय का भय है, इसका अर्थ पृथ्वी पर चक्रवाती तूफान, वर्षा, ज्वालामुखी आदि प्राकृतिक आपदाएं भी बडी मात्रा में आनेवाली हैं । एक वाक्य में बताना हो, तो पृथ्वी पर सर्वत्र मृत्यु, मृत्यु और मृत्यु ही होगी । काल ऐसे आएगा, जैसे कि पृथ्वी पर मृत्यु का तांडव मचा हुआ हो ! इन समस्त संकटों में श्रीमन्नारायणस्वरूप गुरुदेवजी ही हमारी रक्षा करेंगे । ‘परात्पर गुरुदेवजी के कारण हम काल पर भी विजय प्राप्त कर सकते हैं’, इस प्रकार का दैवी बल साधकों को प्राप्त हुआ है । – सप्तर्षि (संदर्भ : सप्तर्षि जीवनाडीवाचन क्र. १४८, ३०.०९.२०२०)