परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का जन्मोत्सव सत्य सनातन धर्म का ही उत्सव है !

     ‘वर्ष २०१५ से सनातन संस्था में सप्तर्षि जीवनाडी-पट्टिका में ॠषि-मुनियों ने जिस प्रकार लिखकर रखा है, उसके अनुसार परात्पर गुरु डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी का जन्मोत्सव मनाया जा रहा है । यह जन्मोत्सव आरंभ में एक ही दिन मनाया जाता था । वर्ष २०१९ में वह ६ – ७ दिन मनाया गया । अब प्रत्यक्ष धार्मिक विधि करने पर मर्यादाएं आई हैं, तब भी प्रत्येक साधक, चाहे वह जहां भी है, वहां अपने अंतर्मन में गुरुदेवजी का जन्मोत्सव निश्चित ही मनाएगा !

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की आरती करती हुईं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी एवं श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी (वर्ष २०१९)

१. श्री गुरु का जन्मोत्सव क्यों मनाना चाहिए ?

     ‘गुरु’ शरीर नहीं, अपितु ‘तत्त्व’ है । श्री गुरु का न आदि है न अंत ! तो ‘उनका जन्मोत्सव क्यों मनाएं ?’ परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने कभी भी स्वयं का जन्मोत्सव मनाने के लिए नहीं कहा, तब भी हम समाज के संत, ज्योतिषी एवं नाडीवाचकों के कथनानुसार उनका जन्मोत्सव मनाते हैं ! ऐसे प्रश्न किसी के भी मन में आ सकते हैं । मेरे ध्यान में इन प्रश्नों के आए उत्तर यहां दिए हैं ।

१ अ. श्री गुरु शिष्य के लिए सब कुछ करते हैं । इसलिए ‘श्री गुरु का जन्मोत्सव मनाना’ उनके प्रति अंशतः कृतज्ञता व्यक्त करने का एक अवसर होना : ‘श्री गुरु भाव तथा भावना दोनों के परे हैं । इसलिए उन्हें ऐसा कभी प्रतीत नहीं होता कि शिष्य उनका जन्मोत्सव मनाएं, परंतु जिन श्री गुरु ने शिष्य के लिए सब कुछ किया तथा दिया है, उनके प्रति अंशतः कृतज्ञता व्यक्त करने का यह एक अवसर है; इसलिए वास्तव में श्री गुरु का जन्मोत्सव शिष्यों के लिए ही रहता है । श्री गुरु का जन्मोत्सव केवल शिष्यों को आनंद देने के लिए ही होता है; इसीलिए श्री गुरु ने उनका जन्मोत्सव मनाने की अनुमति दी ।

१ आ. प्रत्यक्ष रूप से दृश्य देखते समय मनुष्य का भाव जागृत होता है, उसी प्रकार श्री गुरु का जन्मोत्सव प्रत्यक्ष देखते समय शिष्यों का भाव जागृत होना : ‘रामायण’, ‘महाभारत’, श्रीकृष्ण की बाललीलाएं तथा भागवत में हुए प्रसंग सभी प्रत्यक्ष में दृश्य रूप में हुए । उन दृश्यों को देखते समय मनुष्य का भाव जागृत होता है एवं उसके मन में ईश्वर के प्रति प्रेम उत्पन्न होता है । श्री गुरु का जन्मोत्सव भी हमने प्रत्यक्ष अपनी आंखों से देखा । ऐसा दृश्य देखते समय सहस्रों जीवों में भावस्थिति उत्पन्न होकर उनमें कल्याणकारी परिवर्तन होते हैं । इस विश्व में गुरुदर्शन से उच्चतर कोई सात्त्विक दृश्य हो सकता है क्या ?

१ इ. श्री गुरु के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में सेवा-साधना करते समय शिष्य का भाव अनेक गुना होना : भगवान भाव ही चाहते हैं । गुरु एवं ईश्वर एक ही हैं । इसलिए जहां भाव होता है, वहां गुरुतत्त्व आकर्षित होता है । इसलिए शिष्य को श्री गुरु के प्रति भाव व्यक्त करने के लिए प्राप्त हुआ एक भी अवसर नहीं छोडना चाहिए । ‘श्री गुरु का जन्मोत्सव’ ऐसा ही एक अवसर है । पूरे वर्ष में शिष्य का श्री गुरु के प्रति जितना भाव जागृत होता है, उससे भी अनेक गुना जन्मोत्सव के अवसर पर जागृत होता है । उसे लगता है कि ‘श्री गुरु के लिए क्या करूं और क्या नहीं ?’ इसलिए श्री गुरु का जन्मोत्सव शिष्य के आध्यात्मिक उत्कर्ष के लिए ईश्वर-नियोजित दैवी अवसर है ।

२. श्री गुरु का जन्मोत्सव कैसे मनाएं ?

     श्री गुरु के ‘जन्मोत्सव’ को ‘उत्सव’ कहा गया है । ‘उत्सव’ कहा तो ‘उत्साह’ आता ही है ! ‘उत्सव’ मन की उत्साहवर्धक स्थिति है । इसलिए जन्मोत्सव सर्वप्रथम मन में मनाया जाना चाहिए ।

२ अ. श्री गुरु का जन्मोत्सव प्रथमतः शिष्य के मन में मनाया जाना : श्री गुरु का जन्मोत्सव स्थूल से मनाए जाने से पूर्व शिष्य के मन में मनाया जाता है । शिष्य का मन उस आनंद में डूब जाता है । किसी भी प्रकार से उसे ‘अपना यह आनंद व्यक्त करने की इच्छा होती है । मन में भरा यह आनंद ही आगे ‘उत्सव’ का रूप धारण करता है ।

२ आ. प्रत्येक शिष्य द्वारा उसकी प्रकृति के अनुसार जन्मोत्सव की सेवा कर अपना आनंद व्यक्त करना : ‘जितने व्यक्ति उतनी प्रकृतियां !’ इस सिद्धांत के अनुसार श्री गुरु के शिष्य भी भिन्न-भिन्न प्रकृति के हैं । सभी के आनंद व्यक्त करने का स्वरूप भी भिन्न-भिन्न होता है । ‘सभी प्रकार के शिष्यों को उनकी प्रकृति के अनुसार श्री गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर आनंद लेना संभव हो’, इसलिए जन्मोत्सव मनाया जाता है । इसलिए जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में श्री गुरु की प्रतिमा को अर्पित करने हेतु कोई पुष्पहार तैयार करता है, तो कोई श्री गुरु की महानता का वर्णन करता है । कोई ‘श्री गुरु की शिक्षा सभी को समझ में आने हेतु उन पर लेखन करता है, तो कोई श्री गुरु के धर्मप्रसार का कार्य सभी तक पहुंचाता है । इस प्रकार से सभी शिष्यों को आनंद मिलता है ।

३. कृतज्ञता

     ‘गुरुदेवजी, उपरोक्त सभी लेखन, मेरे मन एवं बुद्धि से परे है । यह सब श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी एवं श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी की मुझ पर हुई कृपा से हुआ लेखन है । श्रीगुरुचरणार्पणमस्तु !’

– श्री. विनायक शानभाग, चेन्नई (११.४.२०२१)

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के कारण धर्म का इतिहास बनेगा ।
इसलिए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का जन्मोत्सव सनातन धर्म का ही उत्सव है ।

     जब तक घटना प्रत्यक्ष हुए नहीं होती, तब तक इतिहास नहीं बनता । ईश्वर के अवतार धारण किए बिना उनकी लीलाएं नहीं होतीं । अनंत कालचक्र में भी परिवर्तन होता है । उसी प्रकार नित्य नूतन सनातन संस्था में ‘गुरु का जन्मोत्सव’ कालचक्र के समान ‘ईश्वर-नियोजित परिवर्तन’ ही है । इसलिए यह ‘व्यक्ति, समाज तथा धर्म से संबंधित इतिहास को जन्म देगा, अत: परात्पर गुरुदेवजी का जन्मोत्सव सनातन धर्म का ही उत्सव है’, इसमें कोई संदेह नहीं ! – श्री. विनायक शानभाग