केवल साधक ही नहीं, अपितु प्राणी,पशु और पक्षियों पर भी प्रीति की वर्षा कर उन्‍हें अपना बनानेवाले परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

       ‘सनातन संस्‍था के अनेक साधक, बालसाधक और युवासाधक पूर्णकालीन साधना करने आश्रम आते हैं, वह केवल परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी के निरपेक्ष प्रेम के कारण ! उन्‍होंने साधकों से निरपेक्ष प्रेम किया है, उसी प्रकार वे प्राणियों से भी निरपेक्ष प्रेम करते हैं । इस प्रकार केवल भगवान ही निरपेक्ष प्रेम कर सकते हैं । प्राणियों से प्रेम दर्शानेवाले उनके कुछ उदाहरण आगे दिए गए हैं ।

परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी ने जब अश्‍व को प्रेमपूर्वक स्‍पर्श किया, तब अश्‍व की आंखों में भी भाव दिखाई दिया !

१. परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी के
स्नेहमयी स्‍पर्श से अश्‍व की आंखों में आंसू आए

      बार्शी (जनपद सोलापुर, महाराष्‍ट्र) के प.पू. नारायण (नाना) काळे गुरुजी द्वारा संपन्‍न किए गए अश्‍वमेध यज्ञ की संकल्‍पविधि रामनाथी आश्रम में हुई । पूरे एक वर्ष तक चलनेवाले इस यज्ञ के लिए वे अपने साथ एक यज्ञीय अश्‍व को लेकर आए थे । कालांतर में इस अश्‍व को अगली विधियों के लिए बार्शी (जि. सोलापुर) ले जाया गया । एक वर्ष उपरांत उस अश्‍व को एक अन्‍य साधक को देना सुनिश्‍चित किया गया । ‘उस अश्‍व को परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी से मिलवाकर उसके पश्‍चात उसे साधक को सौंपेंगे’, यह विचार कर प.पू. नाना काळे गुरुजी ने उसे रामनाथी आश्रम भेजा । उसे वापस ले जाते समय परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी उससे मिलने गए । उन्‍होंने उसके सिर पर हाथ फेरा, उस समय उस अश्‍व की आंखों से आंसू आ गए ।’

२. तितली ने ३ दिन तक कुछ नहीं खाया; इसलिए
चम्‍मच में शहद-पानी डालकर उसे उस तितली के
पास रखनेवाले चराचर विश्‍व के परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी !

     एक दिन परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी के कक्ष में स्‍थित हस्‍तप्रक्षालन पात्र के (बेसिन के) पास एक तितली बैठी थी । वह तितली ३ दिन तक वहीं बैठी रही । चौथे दिन वह कक्ष से बाहर आई और परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी जिस कक्ष में ग्रंथलेखन की सेवा करते हैं, उस कक्ष में उनके आसन के नीचे आकर बैठ गई । कुछ समय पश्‍चात उन्‍होंने एक चम्‍मच में थोडा शहद-पानी डालकर उस चम्‍मच को तितली के सामने रखा और मुझे कहने लगे, ‘‘बेचारी इस तितली ने ३ दिन से कुछ नहीं खाया है ।’’ कुछ समय पश्‍चात वह तितली उडकर निकट की एक चारपाई के नीचे जाकर बैठ गई । कुछ समय पश्‍चात परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने वह तितली जहां जाकर बैठी थी, वहां पुनः शहद-पानी का चम्‍मच लाकर रख दिया । उस समय मुझे घी लेकर कुत्ते के पीछे भागनेवाले संत एकनाथ महाराज का स्‍मरण हुआ । दोपहर तक उस तितली ने कुछ नहीं खाया और अंततः दोपहर उपरांत उसने परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी के आसन के नीचे अपने प्राण त्‍याग दिए । ‘वह तितली कदाचित अपने प्राण त्‍यागने के लिए ही गुरुदेवजी के कक्ष में आई होगी’, ऐसा लगने से मेरा मन उमड आया ।

३. आश्रम के सामने की सडक से जा रहे गाय के बछडे का रंभाना सुनकर उस बछडे के उसकी मां से बिछडने की बात परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ध्‍यान में आना और उसका रंभाना बंद हो जाने पर उन्‍होंने कहा कि ‘ऐसा लगता है कि अब उस बछडे को उसकी मां मिल गई है’ ।

– कु. प्रियांका लोटलीकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. 

विपरीत दिशा में मछली के तैरने की मीमांसा करना तथा उसकी चिकित्‍सा करने के लिए कहना

      ‘रामनाथी आश्रम में स्‍थित कमलपुष्‍प के कुण्‍ड में लाई गई मछली देखकर परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी बहुत आनंदित हुए । किसी छोटे बच्‍चे के प्रति हममें उत्‍सुकता होती है, उसी प्रकार उस मछली के प्रति भी वे बहुत उत्‍सुक थे । उस समय वह मछली सामान्‍य दिशा में न तैरकर विपरीत दिशा में तैर रही थी । परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी ने साधकों को इसका ध्‍यान दिलाया और रामनाथी आश्रम के साधक डॉ. अजय जोशी को वह मछली और उसका तैरना देखने के लिए कहा । डॉ. अजय जोशी ने मछली देखकर उसके गलमुच्‍छों में ‘फंगस’ (एक प्रकार का फफूंद) आने की बात बताई । उसके कारण वह आगे की दिशा में न तैरकर पीछे की दिशा में जा रही थी । उन्‍होंने मछली के गलमुच्‍छों पर स्‍थित फफूंद निकाल दिया, तब वह सामान्‍य पद्धति से तैरने लगी । गुरुदेवजी की कृपा के कारण मछली को आ रही समस्‍या का समाधान मिला ।’

– श्रीमती रंजना गौतम गडेकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (६.३.२०१९)