संतों में ‘प्रीति’ अर्थात निरपेक्ष प्रेम रहता है । आकाश से होनेवाली वर्षा जिस प्रकार पृथ्वी को शीतल जल से स्नान कराती है, उसी प्रकार संत सब पर समान मात्रा में प्रीति की वर्षा करते हैं । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी प्रीति के सागर हैं । ज्योतिषशास्त्रानुसार ‘प्रीति’ गुण से संबंधित ग्रहयोग और परात्पर गुरु डॉक्टरजी की जन्मकुंडली के ‘प्रीति’ गुण दर्शानेवाले ग्रहयोग का विश्लेषण नीचे दिया है ।
१. ज्योतिषशास्त्रानुसार ‘प्रीति’ दैवी गुण से संबंधित ग्रहयोग
प्रीति दैवी गुण ‘गुरु’ और ‘शुक्र’, इन दो ग्रहों से संबंधित है । गुरु ग्रह आकाशतत्त्व से और शुक्र ग्रह जलतत्त्व से संबंधित है । प्रेम के कारक शुक्र ग्रह को जब गुरु ग्रह का साथ मिलता है, तब प्रेम का रूपांतर प्रीति में होता है; क्योंकि ‘व्यापकता’ और ‘सब को समाहित करना’ ही गुरु ग्रह की विशेषताएं हैं । गुरु एवं शुक्र ग्रह कुंडली में शुभ स्थिति में हैं और उनमें जब शुभयोग बनता है एवं कुंडली अध्यात्म के लिए पोषक होती है, तब व्यक्ति में प्रीति गुण के दर्शन होते हैं । प्रीति आध्यात्मिक गुण होने के कारण वह संतों में अधिक मात्रा में दिखाई देता है ।
२. परात्पर गुरु डॉक्टरजी की जन्मकुंडली में गुरु एवं शुक्र ग्रहों
का शुभयोग है और वह प्रीति गुण की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है !
परात्पर गुरु डॉक्टरजी की कुंडली में गुरु और शुक्र ग्रहों का ‘अनोन्य’ नामक शुभयोग है । अनोन्य योग में दो ग्रह एक-दूसरे की राशि में रहते हैं । परात्पर गुरु डॉक्टरजी की कुंडली में गुरु ग्रह ‘वृषभ’ नामक शुक्र ग्रह की राशि में और शुक्र ग्रह ‘मीन’ नामक गुरु ग्रह की राशि में है । उनकी कुंडली का यह अनोन्य योग प्रीति गुण की दृष्टि से अत्यंत पूरक और शुभफलदायक है । परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने प्रीति के बल पर सर्व साधकों को जोडकर रखा है । साधक में चाहे कितने भी दोष क्यों न हों, तो भी वे साधक पर निरपेक्ष प्रीति की वर्षा करते हैं और दोष दूर करने के लिए उनका मार्गदर्शन करते हैं । इस कारण परात्पर गुरु डॉक्टरजी और साधकों में अटूट संबंध है ।
३. परात्पर गुरु डॉक्टरजी की कुंडली में शुक्र, चंद्र और नेपच्यून
ग्रहों में शुभयोग होने के कारण उनकी प्रीति असाधारण और अलौकिक
परात्पर गुरु डॉक्टरजी की कुंडली में शुक्र ग्रह मीन राशि में है । मीन राशि व्यापकता दर्शानेवाली है । इस कारण परात्पर गुरु डॉक्टरजी में समाहित प्रेमभाव में व्यापकता है । शुक्र ग्रह का चंद्र और नेपच्यून ग्रहों से शुभयोग है । शुक्र ग्रह को चंद्र और नेपच्यून दोनों जलतत्त्व के ग्रहों का बल (आधार) मिलने से परात्पर गुरु डॉक्टरजी की प्रीति असाधारण और अलौकिक है ।
४. परात्पर गुरु डॉक्टरजी की कुंडली में गुरु ग्रह व्यय स्थान पर होने से संपूर्ण समाज के प्रति उनकी प्रीति
परात्पर गुरु डॉक्टरजी की कुंडली में गुरु ग्रह व्यय (बारहवें) स्थान पर वृषभ राशि में स्थित है । व्यय स्थान समाज से संबंधित है । इस कारण संपूर्ण समाज के प्रति परात्पर गुरु डॉक्टरजी की प्रीति है । इसलिए उन्होंने ‘जिज्ञासुओं को शास्त्रीय परिभाषा में अध्यात्म का परिचय कराने’ और ‘साधकों को साधना के संदर्भ में मार्गदर्शन एवं ईश्वरप्राप्ति का मार्ग बताने’ के उद्देश्य से ‘सनातन संस्था’ की स्थापना की । सनातन संस्था सत्संग, बालसंस्कार वर्ग, नियतकालिक, ग्रंथ, जालस्थल, दृश्यश्रव्य (audio-video) आदि विविध माध्यमों द्वारा अध्यात्मप्रसार का कार्य कर रही है । सनातन संस्था के मार्गदर्शन में साधना कर अब तक एक सहस्र से अधिक साधक जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हुए हैं !
– श्री. राज कर्वे, ज्योतिष विशारद, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (४.५.२०२०)