आपातकाल की दृष्टि से घर का निर्माण करते समय ध्यान रखने योग्य कुछ महत्त्वपूर्ण सूत्र

श्री. मधुसूदन कुलकर्णी

      १ अप्रैल से १५ अप्रैल २०२१ के अंक में हमने खेत की भूमि पर घर का निर्माण करते समय ग्रामपंचायत के साथ ‘नगररचना कार्यालय’ (सिटी प्लानिंग कार्यालय) की अनुमति लेने, खेत की भूमि खरीदने तथा सभी के अधिकारों के संदर्भ में अधिवक्ताआें का मार्गदर्शन लेने से संबंधित लेख पढा । साथ ही, नई भूमि खरीदते समय तथा उस पर वास्तु का निर्माण करते समय वास्तुशास्त्र की दृष्टि से ध्यान रखने योग्य कुछ सूत्र, अल्पावधि में एवं अल्पतम व्यय में गांव में घर का निर्माण करना हो तो क्या करना चाहिए ? इस संबंध में भी जानकारी पढी । आज लेख का शेष भाग यहां दे रहे हैं ।

 

६. अन्य

अ. घर के अंदर ‘ड्राई डिस्टेंपर’ एवं बाहर की ओर ‘कलर सीमेंट’ लगाएं ।

आ. नीचे की भूमि को लाल रंग के सीमेंट अथवा १ × १ फुट की ‘सिरेमिक’ फर्श तथा अंदर की दीवार के नीचे ४ इंच ऊंची सिरेमिक फर्श का ‘स्कर्टिंग’ करें ।

इ. घर में आवश्यकता के अनुसार भारतीय अथवा विदेशी पद्धति का (कमोड) शौचालय बिठाएं ।

ई. घर का विद्युत जोडना ‘कंसील्ड वाइरिंग’ (दीवार के अंदर से विद्युत तारों को जोडना) पद्धति से न करके ‘केसिंग कैपिंग’ सेे करें । (विद्युत जोडने की यह पद्धति सबसे सरल है । ‘पीवीसी इंसुलेटेड तार’ ‘प्लास्टिक के केसिंग’ में रखे जाते हैं तथा कैप से ढंके जाते हैं । इसे ‘केसिंग कैपिंग’ कहते हैं ।)

उ. साधारणतः एक व्यक्ति को प्रतिदिन प्रयुक्त करने तथा पीने के लिए कुल मिलाकर १०० लिटर पानी की आवश्कता होती है । इस अनुमान से यदि घर में ५ व्यक्ति हों, तो ७५० लिटर की प्लास्टिक की गोल टंकी स्लैब पर बिठाएं । किसी दिन यदि पानी की आपूर्ति नहीं की गई, तो अडचन न आने हेतु कुल उपयोग मेें आनेवाले पानी से डेढ गुना क्षमतावाली टंकी बिठाएं ।

ऊ. आपातकाल में ‘सरकारी संस्थाआें को बिजली एवं पानी की आपूर्ति करने में अडचन आ सकती है’, ऐसा विचार कर उनकी अलग व्यवस्था करें । आपातकाल में जिस स्थान पर रहने का नियोजन करें, वहां बिजली उत्पन्न करने की व्यवस्था करें, अर्थात ‘सोलर पावर सिस्टम’ बिठाएं । पानी के लिए अपने स्थान पर कुआं खोदें अथवा कूपनलिका (बोरवेल) पर हाथपंप बिठाकर पानी ऊपर लाने की व्यवस्था करें ।

७. घरों का निर्माण करने हेतु अनुमानतः लगनेवाला व्यय तथा कालावधि

     ८०० वर्ग फुट क्षेत्र में उपरोक्त रचना के घर (हॉल, भोजनगृह तथा २ कक्ष) का निर्माण करने हेतु अनुमानतः आवश्यक व्यय १२ से १४ लाख है । घर के लिए भूमि खरीदने के लिए अलग व्यय होगा । गांव के अनुसार यह व्यय अल्प-अधिक हो सकता है ।
ऐसे घर अल्पावधि में भी बनाना संभव होता है । घर का निर्माण करने हेतु आवश्यक कालावधि अधिकाधिक ४ महीने है।
साधको, आपातकाल दिनोदिन निकट आ रहा है । काल की विभीषिका को ध्यान में रखते हुए भगवान श्रीकृष्ण पर अनन्य निष्ठा रखकर उपरोक्त पूरी प्रक्रिया (नया स्थान ढूंढना, वहां घर खरीदना अथवा बनाना आदि) अगले ५ महीने में अति तीव्र गति से पूर्ण करें ! गांव में यदि निवास की व्यवस्था की हो, तब भी वर्तमान में वहां स्थानांतरित न हों ।

८. ‘निर्माण किस प्रकार का करें’, इसके लिए कुछ दिशादर्शक सूत्र

आर.सी.सी. फ्रेम स्ट्रक्चर इस प्रकार के मजबूत पद्धति के घर

८ अ. टिकाऊ पद्धति का तथा प्राकृतिक आपदा से रक्षा करनेवाला ‘आर-सी-सी फ्रेम स्ट्रक्चर’ ! : आर-सी-सी फ्रेम स्ट्रक्चर प्रकार का निर्माण दृढ (मजबूत), टिकाऊ तथा सुरक्षित होता है । इस पर भूकंप का परिणाम अल्पतम होता है । उसी प्रकार आग एवं बिजली के झटके से भी वह सुरक्षित होता है । इसलिए इस प्रकार का निर्माण करना अच्छा है ! एक तल्ले (मंजिल) का निर्माण करने हेतु ४ महीने का समय लग सकता है; परंतु उसके लिए भूमि समतल तथा कडी कंकडीवाली हो, तो इससे अल्प समय में निर्माण हो सकता है ।
पहाडी क्षेत्र में निर्माण करना हो, तो अधिक समय लगता है । वह ६ महीने तक भी बढ सकता है; परंतु इस प्रकार के निर्माण में कुल मिलाकर भीषण वर्षा अथवा भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाआें से सुरक्षा होती है ।

८ आ. ‘लोड बीयरिंग स्ट्रक्चर’

लोड बेअरिंग स्ट्रक्चर पद्धति से अल्प व्यय में निर्मित घर

८ आ १. लोड बीयरिंग पद्धति से घर सुलभ, अल्प व्यय तथा समय में बनाना संभव : इस निर्माण में दीवार पर ‘स्लैब’ अथवा शीट पट्टी का भार दिया जाता है । इसमें बाहर की दीवारें चौडी बनाई जाती हैं । इसलिए ‘बिल्ट-अप एरिया’ बढ जाता है । घर बनाने के स्थान के आसपास अच्छी ईंटें तैयार करनेवाली ईंटों की भट्टियां हों तथा ये ईंटें सस्ती हों, तो लोड बीयरिंग स्ट्रक्चर के अनुसार घर बनाना और अच्छा होता है ! जहां ऊपर का तल्ला न बनाना हो, ऐसे स्थानों पर भी ये घर सुलभ, अल्प व्यय तथा अल्प समय में बनते हैं । एक तल्ले का निर्माण करने के लिए ३ सेे ५ महीने का समय लग सकता है; परंतु वह भूमि समतल एवं कडी कंकडीवाली हो । नींव का मुरुम कडा न हो, तो आरसीसी फ्रेम का विचार अवश्य करें ।

८ आ २. लोड बीयरिंग स्ट्रक्चर के घरों पर गर्मी अथवा ठंड का परिणाम होने की संभावना : लोड बीयरिंग अथवा आरसीसी फ्रेम स्ट्रक्चर में छत के लिए शीट अथवा मंगलोरी खपडे भी डाल सकते हैं । यदि इन घरों की ऊंचाई न्यूनतम १० फुट रखी गई, तो घर में हवा व्यवस्थित रूप से आती रहती है तथा तापमान नियंत्रित रहता है । ऐसे घर वर्षा ऋतु में योग्य हों, तो भी उन पर गर्मी अथवा ठंडी का परिणाम हो सकता है ।

८ आ ३. मिट्टी के घर (लोड बीयरिंग स्ट्रक्चर इन मड मॉर्टर) : कभी-कभी घर बनाने के स्थान के आसपास निर्माण करने हेतु आवश्यक श्‍वेत (सफेद) मिट्टी विपुल एवं अल्प मूल्य में उपलब्ध होती है । उस समय पक्की ईंटों का निर्माण करते समय इस मिट्टी का उपयोग ईंटों का स्तर (मॉर्टर) भरने के लिए करना संभव है; परंतु इसके लिए अपेक्षाकृत दीवारें मोटी बनानी पडती हैं । यहां छप्पर के लिए शीट अथवा मंगलोरी खपडे भी डाल सकते हैं । इसके लिए होनेवाला व्यय भी सीमेंट तथा रेत का उपयोग कर किए जानेवाले निर्माण की अपेक्षा २५ से ३० प्रतिशत तक अल्प हो सकता है ।

८ इ. उपयोग में आनेवाली भूमि का विचार किया, तो दोनों प्रकार के निर्माण का व्यय समान ही रहता है : आरसीसी फ्रेम स्ट्रक्चर तथा लोड बीयरिंग स्ट्रक्चर के निर्माण में समान ही व्यय होता है ।

१. ८०० वर्ग फुट भूमि पर आरसीसी फ्रेम स्ट्रक्चर के अनुसार निर्माण किया, तो ७०० वर्ग फुट ‘कार्पेट एरिया’ (‘घर में प्रयुक्त करने हेतु मिलनेवाला चटाईक्षेत्र) मिलता है ।

२. ८०० वर्ग फुट भूमि पर लोड बीयरिंग स्ट्रक्चर के अनुसार निर्माण करने पर ६४० वर्ग फुट कार्पेट एरिया मिल सकता है । (क्योंकि इसकी दीवारों की चौडाई अधिक होती है ।)
इससे समझ में आता है कि दोनों प्रकार के घरों के निर्माण के व्यय में अधिक अंतर नहीं रहता, इसलिए दृढ, टिकाऊ तथा अल्पतम व्यय होेने हेतु आरसीसी फ्रेम स्ट्रक्चर के अनुसार निर्माण करना कहीं अधिक उपयोगी है !

८ ई. ‘कंटेनर’ (प्री-फैब्रिकेटेड हाउस)

कंटेनर का उपयोग कर तैयार किया घर (प्री-फैब्रिकेटेड हाउस)

८ ई १. घर के लिए कंटेनर का उपयोग करना : कंटेनर खरीदकर उसमें घर तैयार करने के लिए नौका पर प्रयुक्त किए जानेवाले कंटेनर उपयोग में लाए जाते हैं । इस कंटेनर में अपनी आवश्यकता के अनुसार घर का मानचित्र बनाया जाता है तथा वह घर तैयार कर उपयोग में लाया जाता है । ऐसे घरों को खडा करने में एक से डेढ महीने का समय लगने की संभावना है । सभी दृष्टिकोण से घर का विचार करने पर आगे दिए सूत्र समझ में आते हैं ।

अ. ये घर लोहे की शीट से बनाए जाते हैं, इसलिए आग से इन घरों की सुरक्षा नहीं होती ।

आ. घर को बिजली का झटका (शॉक) लग सकता है तथा इससे लोगों की मृत्यु भी हो सकती है ।

इ. अधिक वर्षा होने पर इस प्रकार के घरों को जंग लग सकती है । इससे पानी रिसना भी हो सकता है । जंग हटाने के लिए निरंतर ‘मेंटेनेंस’ करना पडता है ।

ई. इन घरों के बाहर की ओर की शीट की चौडाई तथा कुल भार अल्प रहता है । इसलिए भारी वर्षा में इन घरों को अपना मूल स्थान छोडने की संभावना होती है ।

उ. गरम अथवा ठंंडे क्षेत्रों में इस प्रकार के घर उस परिस्थिति के अनुकूल नहीं होते । इसलिए इस घर में रहनेवाले व्यक्तियों के स्वास्थ्य की हानि होती है ।

८ ई २. सदैव रहने की दृष्टि से ये घर बहुत उपयोगी न रहना तथा उनके निर्माण का व्यय भी अल्प न रहना : कुछ लोगों के मतानुसार इन घरों को ‘इंसुलेशन’ होे, तो कष्ट नहीं होगा; परंतु इंसुलेशन होने पर भी मनुष्य का स्वास्थ्य ठीक रहने हेतु आवश्यक चौडाई की दीवारें न होने से ऐसे घर बहुत उपयोगी हैं, ऐसा प्रतीत नहीं होता । अतः साधकों को ऐसे घर खरीदते समय अथवा बनाते समय इन सभी बातों का विचार कर निर्णय लेना चाहिए । इस घर को बनाने के लिए प्रति वर्ग फुट होनेवाला व्यय बहुत अल्प है, ऐसा भी नहीं है । लोअर मिडल क्लास अथवा कामगारों के लिए छावनी हेतु इस प्रकार के घर बनाए जाते हैं, सर्वेक्षण करने पर ऐसा समझ में आया ।

८ उ. दीवार तथा स्लैब पूर्व में ही तैयार कर बनाए गए प्री-कास्ट घर : ‘कांक्रीट’ में पूर्व में ही बनाई दीवारें तथा स्लैब प्रयुक्त कर ऐसे घर बनाए जाते हैं । ‘क्रेन’ की सहायता से ये सामग्री स्थान पर लाकर बिठाई जाती है ।

१. इसकी दीवारें बहुत मोटी नहीं रहतीं । यदि वे गुणात्मक न हों, तो भारी वर्षा में दीवारें गीली होने की संभावना रहती है ।

२. एक अथवा दोे घर बनाते समय उसमें अधिक व्यय होता है; परंतु अधिक घर बनाने हों, तो व्यय अल्प होता है ।

३. घर एक-दूसरे से सटे हों, तो ऐसे घरों को बनाने से लाभ होता है; क्योंकि दो घरों में दीवारें ‘कॉमन वॉल’ के रूप में बनाई जाती हैं । इसलिए अल्प क्षेत्र में घर का निर्माण होता है; परंतु इसके लिए अधिक संख्या में घर रहना आवश्यक है ।
ऐसे घरों के लिए भी नगररचना कार्यालय से अनुमति लेनी पडती है । ये घर बनाने हेतु ३ महीने का समय लगता है । ये घर साधारणत: ५ वर्ष तक टिकते हैं । इस प्रकार हमने अलग-अलग घरों का अध्ययन किया । साधकों को केवल आपातकाल में ही नहीं, उसके पश्‍चात भी घर उपयोग में आएं, ऐसा विचार कर पक्के, टिकाऊ तथा वर्षा व तूफान से सुरक्षित घर बनाना चाहिए ।
आपातकाल के संबंध में यह सब लिखना परात्पर गुरु डॉक्टरजी की कृपा से संभव हुआ । इसलिए उनके चरणों में कोटिशः कृतज्ञता !’
– श्री. मधुसूदन कुलकर्णी, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (१०.२.२०२१)                                                                     (समाप्त)