‘कोरोना महामारी के कारण हुई यातायात बंदी की कालावधि में प्रथम ‘ऑनलाईन’ भावसत्संग में (दि.२६.३.२०२० को) श्रीसत्शक्ति (सौ.) बिंदा सिंगबाळजी ने कहा, ‘‘घर पर रहकर साधना करें, घर को आश्रम बनाना है; अर्थात आश्रम में रह कर जैसे साधनावृद्धि के लिए प्रयास करते हैं, वैसे ही घर पर रहते हुए करना है । आश्रम में जैसा सात्त्विक वातावरण होता है, घर में वैसा वातावरण रखने का प्रयास करेंगे । इसके अनुसार उनका संकल्प कार्यरत हो रहा था ।’’
१. घर को आश्रम बनाने हेतु किए गए साधना के प्रयास
१ अ. प्रतिदिन किए जानेवाले साधना के प्रयास का नियोजन करना : श्रीसत्शक्ति (सौ.) बिंदा सिंगबाळजी द्वारा बताए गए सूत्रों के से प्रेरणा लेकर हम दोनों ने वैसे प्रयास आरंभ किए । हमने प्रतिदिन किए जानेवाले साधना के प्रयासों का नियोजन किया । सुबह उठने के पश्चात देवीकवच लगाकर हम साधना आरंभ करते थे ।
१ आ. पूरे घर की स्वच्छता करने पर हलकापन प्रतीत होना : हम प्रतिदिन घर की स्वच्छता करते थे । घर की स्वच्छता के विषय में लिखित नियोजन कर हम दोनों ने प्रतिदिन की सेवाएं आपस में बांट लीं । पूरे घर की स्वच्छता होने के पश्चात हमें घर में हलकापन प्रतीत होने लगा ।
१ इ. हम घर में प्रतिदिन धूप जलाते थे, इससे हमें अच्छा लगा एवं हमारा उत्साह बढा ।
१ ई. नामजपादि उपाय करना : सुबह के नित्य काम उदा. व्यायाम, योगासन, स्नान तथा देवपूजा कर हम नामजपादि उपाय करते थे । सुबह में ३-४ घंटे मेरा नामजप पूरा होता था । बताए गए मंत्रजप हम नियम से पूर्ण करते थे ।
१ उ. स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन के प्रयास करना
१. प्रतिदिन दोपहर ३ बजे व्यष्टि साधना का ‘ऑनलाईन’ ब्यौरा लिया जाता था । वृषालीताई (कु. वृषाली कुंभार ) हमसे हुई चूकें, वे कौन से स्वभावदोष के कारण हुईं ? स्वभावदोष के मूल में कैसे जाएं ? कृति के स्तर पर प्रयास कैसे बढाएं ? इस विषय में बताकर हमें दृष्टिकोण देती थीं । इसलिए हमसे नियमित प्रयास होते थे ।
२. प्रतिदिन हमारे मन में आनेवाले अयोग्य विचार एवं प्रतिक्रिया एक-दूसरे को बता कर हम क्षमायाचना करते थे ।
२. गुरुदेवजी की कृपा से पूरा दिन सत में रहना संभव होना
२ अ. भावसत्संग में बताए गए सूत्र एक-दूसरे को बताना : इससे पहले हुए भावसत्संग में बताए गए सूत्र हमने लिख कर लिए थे । इस कालावधि में हमें उनका उपयोग हुआ । हम वे सूत्र पढ कर एक दूसरे को विस्तार से बताते थे । इसमें हमारा १ से डेढ घंटे का समय निकल जाता था ।
२ आ. कुछ दिन पश्चात हमें घर पर ही सेवा उपलब्ध हुई । पूरे दिन में २ घंटे हमारी सत्सेवा होती थी ।
२ इ. ‘यू टयूब’ वाहिनी पर ‘ऑनलाईन’ सत्संग का लाभ होना : इसी कालावधि में हमें यू टयूब पर ऑनलाईन नामसत्संग, भावसत्संग एवं ग्रंथों के वाचन इत्यादि बातों का लाभ हुआ । गुरुदेवजी की कृपा से दोपहर में १ घंटा विश्राम कर अन्य समय हम सत में रहते थे ।
पहली यातायात बंदी के समय हमारे परिजन अपने घर पर ही थे । वे हमें भ्रमणभाष कर, ‘समय नहीं कटता’, ऐसा कहते थे, परंतु गुरुदेवजी की कृपा से हम सत में कैसे रहते हैं ? यह उन्हें समझ में नहीं आता था । गुरुदेवजी ने इस माध्यम से हम पर कितनी बडी कृपा की है’, यह ध्यान में आया ।
२ ई. आश्रम में आना-जाना कर सेवा करने की अनुमति मिलना : पहली यातायात बंदी उठाई जाने के पश्चात हमें कुछ बंधनों का पालन कर आश्रम में आने की अनुमति मिली । उस समय गोवा राज्य ‘ग्रीन जोन’ में था । उस कालावधि में हमने आपात्काल में ३ से ४ महीने के लिए आवश्यक किराना सामग्री घर पर लाकर रखा था । तत्पश्चात ३०-४० दिन आश्रम में आना-जाना कर हम सेवा करते थे ।
२ उ. पुनः यातायात बंदी आरंभ होना एवं ३ महीने घर पर रहना : तत्पश्चात देशांतर्गत यातायात आरंभ हुई । गोवा राज्य में भी कोरोना के रुग्ण बढने लगे, इस कारण हम ३ महीने घर पर थे । हम जहां रहते थे, वहां भवन के निचले तले पर रहनेवाले एक परिवार में कोरोना के ३ रुग्ण मिले । वे गृहअलगीकरण (होमक्वारंटाइन)में थे । उस समय हमारे लिए बाहर निकलना भी कठिन हो गया था ।
३. इस कालावधि में ईश्वर द्वारा की गई सहायता
अ. ‘ईश्वर ने २ महीने पूर्व हमें किराना सामग्री खरीदकर रखने की बुद्धि क्यों दी ?’, यह ध्यान में आया । हम तीन महीने तक उस किराना सामग्री का उपयोग कर पाए ।
आ. मन पर आया तनाव दूर हो, इस हेतु श्रीसत्शक्ति सौ. बिंदा सिंगबाळजी ने दैनिक ‘सनातन प्रभात’ में कुछ स्वसूचना सत्र प्रकाशित किए थे । मुझे उनका भी लाभ हुआ ।
४. अनुभूति
अ. भावसत्संग आरंभ करने से पूर्व मेरी पत्नी भावार्चना कर प्रार्थना करती थी । उस समय सुखासन के पास की कुर्सी पर परात्पर गुरु डॉक्टरजी बैठे हैं, हमें ऐसा भान होता था ।
आ. कोरोना की इस जानलेवा महामारी में हमारे कुछ परिजन एवं मित्रों की मृत्यु हुई । कुछ लोगों को कोरोना हुआ’, ऐसे समाचार आते थे । तब भी ईश्वर ने हमें स्थिर एवं आनंद में रखा था ।
इ. रामनाथी आश्रम से हमारा घर ३ किमी की दूरी पर है । घर में भी रामनाथी आश्रम का चैतन्य मिल रहा है’, हमें ऐसा भान होता था । यदि हम कहीं बाहर रहने जाते, तो हम पर रज-तम का आवरण आया होता, परंतु गुरुकृपा से इस कालावधि में हमें वैसा कुछ प्रतीत नहीं हुआ । हम आनंदी थे ।
५. कृतज्ञता
ईश्वर ने इस घोर आपात्काल में भी हमसे व्यष्टि साधना के कुछ प्रयास करवाए, यह सब अनुभव करने पर ‘गुरुदेवजी ने हमारे लिए कितना किया है’, इसका मुझे भान हुआ एवं अंतःकरण से कृतज्ञता व्यक्त हुई तथा मेरा मन भर आया ।
६. प्रार्थना
‘हे गुरुदेव, आपने ही इस आपात्काल में हमें स्थिर रख कर हमसे व्यष्टि साधना के प्रयास करवाए, इसलिए हम आपके चरणों में कोटि कोटि कृतज्ञ हैं !’
-श्री. दिलीप नलावडे, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.