उत्तराखंड राज्य के हरद्वार (हरिद्वार) कुंभपर्वक्षेत्र एवं उसकी महिमा

     हरद्वार (हरिद्वार) उत्तराखंड राज्‍य के गंगातट पर बसा प्राचीन तीर्थक्षेत्र है । हिमालय की अनेक कंदराओं एवं शिलाओं से तीव्र वेग से नीचे आनेवाली गंगा का प्रवाह, यहां के समतल क्षेत्र में आने पर मंद पड जाता है । इस स्‍थान को ‘गंगाद्वार’ भी कहते हैं ।

१. उत्‍पत्ति

अ. शैव संप्रदायानुसार : भगीरथ ने गंगा को स्‍वर्ग से पृथ्‍वी पर लाया; किंतु उसकी जलधारा के तीव्र आघात से पृथ्‍वी फट न जाए, इस हेतु उन्‍होंने शिवजी से उसे धारण करने की प्रार्थना की । शिवजी ने उसे अपनी जटाओं में धारण कर पृथ्‍वी पर जहां छोडा, वह स्‍थान ‘हरद्वार’ है । इसलिए शिवभक्‍त इस क्षेत्र को ‘शैव क्षेत्र’ मानते हैं ।

आ. वैष्‍णव संप्रदायानुसार : गंगाद्वार के निकट ही एक शिला पर विष्‍णुपद की आकृति दिखाई देती है । इसलिए, यह स्‍थान ‘हरि की पौडी’ नाम से विख्‍यात हुआ । हिमालय से गंगा हरि के चरणों के समीप अवतरित हुई । इसलिए, विष्‍णुभक्‍त इस क्षेत्र को वैष्‍णव क्षेत्र मानकर ‘हरिद्वार’ कहते हैं ।

२. क्षेत्र की महिमा

अ. स्‍वर्गलोक प्राप्‍त करवानेवाला क्षेत्र : हरद्वार (हरिद्वार) स्‍थित विविध क्षेत्रों की महिमा का वर्णन करनेवाला श्‍लोक निम्‍नानुसार है ।

      गङ्‍गाद्वारे कुशावर्ते बिल्‍वके नीलपर्वते ।
तथा कनखले स्नात्‍वा धूतपाप्‍मा दिवं व्रजेत् ॥
– महाभारत, पर्व १३, अध्‍याय ६४, श्‍लोक १३

अर्थ : गंगाद्वार, कुशावर्त, बिल्‍वक, नीलपर्वत एवं कनखल तीर्थ में स्नान करनेवाले व्‍यक्‍ति के पाप धुल जाते हैं तथा उसे स्‍वर्गलोक में स्‍थान प्राप्‍त होता है ।

आ. हिमालय की यात्रा आरंभ करने का क्षेत्र : हरद्वार (हरिद्वार) क्षेत्र से ही हिमालय की यात्रा आरंभ की जाती है । यहां श्राद्ध एवं पिंडदान किए बिना केदारनाथ, बद्रीनाथ आदि तीर्थस्‍थानों की यात्रा नहीं की जा सकती ।

३. स्‍थानदर्शन

अ. ब्रह्मकुंड : यहां ब्रह्मकुंड है । राजा भगीरथ द्वारा गंगा को पृथ्‍वी पर लाने के पश्‍चात यहां एक राजा ने अपने तप से ब्रह्मदेवजी को प्रसन्‍न कर वर मांगा, ‘हे ब्रह्मदेव, कृपया आप यहां नित्‍य निवास करें’ । ब्रह्मदेव ने ‘तथास्‍तु’ कहा । तत्‍पश्‍चात उस राजा ने उस स्‍थान को ‘ब्रह्मकुंड’ नाम दिया । इस बडे आकार के कुंड से गंगा की एक अविरल धारा सदैव बहती रहती है ।

आ. हरि की पौडी : ब्रह्मकुंड के ही समीप हरि की पौडी है । इस घाट पर ही गंगाजी का छोटा-सा मंदिर है । यहां सायंकाल गंगा की आरती होती है । उस समय श्रद्धालुगण द्रोण पर दीये जलाकर गंगा की धारा में प्रवाहित करते हैं । यह दृश्‍य बडा मनोहारी होता है ।

इ. कुशावर्त : ब्रह्मकुंड के समीप ही यह तीर्थ है । यहां श्राद्ध एवं क्रियाकर्म किया जाता है । मेष संक्राति के दिन यहां श्रद्धालुओं की बहुत भीड होती है ।

ई. मायापुरी

     १. पुराणों में कहा है, ‘अयोध्‍या, मथुरा, माया, काशी, कांची, उज्‍जैन (अवंतिका) एवं द्वारकापुरी, ये सात मोक्षदायी नगरियां हैं’। इनमें ‘मायापुरी’ अर्थात यह मायाक्षेत्र है ।

     २. हरि की पौडी घाट से अनुमानतः एक मील दूर मायादेवी का एक मंदिर है । राजा दक्ष ने सती का अपमान किया । इसलिए भगवान शंकर ने उनके यज्ञ का विध्‍वंस किया । तब दक्ष शंकरजी की शरण गए । यह पूरी घटना परमेश्‍वर की माया से हुई, इसलिए यह यज्ञभूमि ‘मायाक्षेत्र’ के नाम से जानी जाएगी, ऐसा शंकरजी ने दक्ष को वरदान देते समय कहा । इसका उल्‍लेख स्‍कंदपुराण के दारखंड में मिलता है ।

उ. कनखल : इस पुण्‍यस्‍थल का उल्‍लेख हरिवंश पुराण में मिलता है । दक्षप्रजापति ने भगवान शिव का अपमान किया, जिससे क्रुद्ध सती ने यहां आत्‍मदाह किया । तत्‍पश्‍चात शरणागत दक्ष की प्रार्थना पर भगवान शिव ने इस क्षेत्र में निरंतर निवास करने के लिए एक शिवलिंग स्‍थापित किया । यह शिवलिंग स्‍वयंभू है, इसे ‘दक्षेश्‍वर’ कहा जाता है । जहां सती ने आत्‍मदाह किया, वहां ‘सतीकुंड’ है ।

ऊ. बिल्‍वकेश्‍वर : कुशावर्त से कुछ दूर बेलवृक्षों के वन में बिल्‍वकेश्‍वर शिव का स्‍वयंभू लिंग है । स्‍कंदपुराण के अनुसार, ‘इस शिवलिंग पर बेलपत्र चढाना अत्‍यंत पुण्‍यदायी है ।’

ए. अन्‍य धार्मिक क्षेत्र : हरद्वार में (हरिद्वार में) नीलपर्वत, कपिलस्‍थान, भीमगोडा, सप्‍तऋषि मंदिर, श्रवणनाथ आदि धार्मिक क्षेत्र भी हैं ।

      (संदर्भ : सनातन का ग्रंथ – कुंभपर्वकी महिमा)

हरिद्वार कुंभमेला

     मेष राशि में सूर्य एवं कुंभ राशि में गुरु होने पर हरिद्वार में कुंभ मेला होता है । इसमें १. महाशिवरात्रि, २. चैत्र अमावस्‍या तथा ३. चैत्र पूर्णिमा अथवा वैशाख की प्रतिपदा (जिस दिन मेष राशि में सूर्य एवं कुंभ राशि में गुरु, ऐसी ग्रहस्थिति हो) पर्वकाल होता है और उस दिन राजयोगी (शाही) स्नान किया जाता है ।

     वर्ष १८३७ में पहली बार हरिद्वार में अर्धकुंभ मेला आयोजित किया गया । तब से १२ वर्ष में आनेवाले कुंभमेले के उपरांत ६ वर्ष पश्चात हरिद्वार में अर्धकुंभ मेला आयोजित किया जाता है ।