किसी भी बात के लिए न्यायालय में जाना अर्थात पश्चात्ताप करना !- पूर्व मुख्य न्यायाधीष रंजन गोगोई का आरोप

भारत की न्याय व्यवस्था जरजर होने का दावा !

  • उच्च पद पर बैठे सरकारी अधिकारी, न्यायमूर्ति आदि निवृत्त होने के बाद इस प्रकार के विधान करते हैं या पुस्तके लिखकर उसके द्वारा विधान करते हैं; लेकिन जब वे पद पर होते हैं, तब मौन रखते हैं, उन लोगों में अब रंजन गोगोई का एक नाम जुड गया है ।

  • गोगोई को ऐसा क्यों लगता है, इसके लिए अब केंद्र सरकार ने चिंतन समिति घोषित कर न्याय व्यवस्था की कमियों को दूर कर सर्वसाधारण जनता को सही न्याय मिले, ऐसी व्यवस्था निर्माण करनी चाहिए !

  • उच्चतम न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायमूर्ति गोगोई को ऐसा लगता है, तो साधारण जनता को न्याय के विषय में क्या लगता होगा, इसकी कल्पना नहीं कर सकते । तब भी वे न्यायालय पर विश्वास रखकर अनेक वर्षों तक मुकदमा लडते रहते हैं !
पूर्व मुख्य न्यायमूर्ति रंजन गोगोई

नई दिल्ली – मुझे यदि पूछा, तो मै किसी भी बात के लिए न्यायालय मे बिल्कुल नहीं जाऊंगा । न्यायालय में जाना पश्चाताप करने के ही समान है । वहां आपको न्याय नहीं मिलता है । भारत की न्याय व्यवस्था जर्जर हो गई है, ऐसा विधान उच्चतम न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायमूर्ति और राज्यसभा के सांसद रंजन गोगोई ने एक चैनल के कार्यक्रम में बोलते हुए किया । पूर्व मुख्य न्यायमूर्ति रंजन गोगोई नवंबर २०१९ में निवृत्त हुए । इसके बाद मार्च २०२० में केंद्र की भाजपा सरकार की ओर से रंजन गोगोई को राज्यसभा में सांसद बनाया गया ।

पूर्व मुख्य न्यायमूर्ति रंजन गोगोई द्वारा रखे गए सूत्र

१. कोरोना के काल में मुकदमों की संख्या में बढोतरी !

हमारे देश को ५ लाख करोड की अर्थव्यवस्था चाहिए; लेकिन हमारी न्याय व्यवस्था जर्जर हो गई है । जब संस्था की कार्यक्षमता न्यून होती है, तब बुरी अवस्था होती है । वर्ष २०२० कोरोना का वर्ष था । उसमें निचली न्यायालय में ६० लाख, उच्च न्यायालय में ३ लाख, उच्चतम न्यायालय में ७ सहस्र मुकदमे बढ गए ।

२. अधिकारियों के रुप में न्यायमूर्तियों की नियुक्ति नहीं की जा सकती !

काम करने के लिए योग्य व्यक्ति मिलना महत्व का है, सरकार में अधिकारियों की नियुक्ति होती है, वैसी न्यायमूर्तियों की नियुक्ति नहीं होती । न्यायाधीश की पूरे समय के लिए वचनबद्धता होती है । काम के घंटे निश्चित नहीं होते हैं । २४ घंटे काम करना पडता है । सुबह २ बजे हमने काम किया है । न्यायाधीश सब एक तरफ रख कर काम करते हैं । कितने लोग इससे अवगत हैं ? जब न्यायाधीश नियुक्त किए जाते हैं, तब उन्हें प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है, उसे इसके विषय में अवगत कराना चाहिए ।

३. न्यायाधीशों को न्याय कैसे लिखना चाहिए, यह नहीं सिखाया जाता !

भोपाल के राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी में क्या सिखाया जाता है ? समुद्री कानून, अन्य कानून सिखाते हैं; लेकिन इसका न्यायिक नैतिकता से कोई संबंध नहीं है । न्याय कैसा लिखें, यह नहीं सिखाया जाता । न्यायालय के कामकाज में कैसे आचरण करना चाहिए, यह नहीं सिखाया जाता ।

४. नए कानून लाने पर भी, काम हमेशा के न्यायाधीश ही करते हैं !

व्यावसायिक न्यायालयों का कुछ उपयोग नहीं । अर्थ व्यवस्था को सुधारना है, तो मजबूत व्यवस्था होनी चाहिए । वह व्यापारिक विवादों को सुलझा सके । वैसी व्यवस्था नहीं होगी, तो निवेश नही होगा । व्यवस्था और तंत्र कहां से आएगा ? वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम ने कुछ व्यावसायिक विवादों को अपने अधिकार क्षेत्र में लाया; लेकिन कानून को कौन लागू करेगा, जज जो सामान्य काम करते हैं!

५. न्यायाधीशों ने प्रधानमंत्री की प्रशंसा नहीं चाहिए !

उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति एम.आर. शहा ने प्रधानमंत्री मोदी की सार्वजनिक प्रशंसा की; लेकिन उन्हें ऐसे विधान नहीं करने चाहिए थे । उन्हें प्रधानमंत्री के विषय में जो कुछ भी लगता होगा ,उसे स्वयं के पास रखना चाहिए था । इसके अतिरिक्त मैं और कुछ नहीं कह सकता; लेकिन इसका अर्थ ऐसा नहीं होता कि, उन्होने किसी बात के बदले मोदी की प्रशंसा की ।

६. राष्ट्रीय नागरिकता पंजीकरण भविष्य में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज होगा

मुझे असम में नागरिकता पंजीकरण की अदालती प्रक्रिया में ऊर्जा और समय बर्बाद करने के बारे में कोई पछतावा नहीं है। सभी दल इसे लेकर उत्साहित नहीं हैं; लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने प्रक्रिया के लिए एक समय सीमा तय की थी । हमने वही किया जो अदालत कर सकती थी। उसका कोई पछतावा नहीं है। राष्ट्रीय नागरिकता पंजीकरण भविष्य में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज होगा । इसका विश्लेषण करने पर पता चलेगा कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है। उस पर कार्रवाई होनी चाहिए। राजनीतिक दल इच्छाशक्ति दिखाए बिना इससे खेल रहे हैं।

७. क्या कोई राज्यसभा सांसद के लिए कोई सौदा करेगा ?

‘क्या अयोध्या और राफेल मामलों में केंद्र सरकार को अनुकूल परिणाम के लिए राज्यसभा में भेजने का सौदा किया था ? ‘ इस सवाल पर, गोगोई ने कहा, मुझे ऐसा नहीं लगता। मैं अपने विवेक के लिए प्रतिबद्ध हूं । यह कहा जाता है कि मैंने यह परिणाम भाजपा सरकार के पक्ष में दिया था; लेकिन उन नतीजों का राज्यसभा सांसद से कोई लेना-देना नहीं है। अगर कोई सौदा होता, तो क्या कोई राज्यसभा सीट से संतुष्ट होता ? मैं राज्यसभा सांसद के लिए एक रुपया भी नहीं लेता हूं। यह मीडिया और आलोचकों द्वारा चर्चा नहीं की जाती है।

८. मेरे ऊपर लगे आरोपों पर न्यायमूर्ति बोबडे ने जांच की थी !

‘गोगोई ने उनके ऊपर लगे यौन उत्पीडन के आरोप पर निर्णय स्वयं दिया था’, ऐसी टिप्पणी तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोईत्रा ने लोकसभा में करने पर उनके ऊपर कानूनी कार्यवाही करेंगे क्या ?’ इस प्रश्न पर गोगोई ने कहा कि, इस महिला सांसद को इस मामले की जानकारी नहीं है । उस समय यह मामला मैने न्यायमूर्ति बोबडे को दिया था, उन्होने जांच समिति बनाई थी ।

गोगोई को अपने करियर की घटनाओं को प्रकाश में लाना चाहिए ! – शिवसेना

पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगई के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए, शिवसेना सांसद संजय राउत ने कहा कि गोगई को अपने करियर की घटनाओं को प्रकाश में लाना चाहिए। जब से रंजन गोगई राज्यसभा सांसद बने हैं, हमने अदालत में विश्वास खो दिया है।

( सौजन्य : TV9 मराठी )