देश के ९ राज्यों में अल्पसंख्यक हिंदुओं को ‘अल्पसंख्य’ घोषित करने का मामला
भारत के कुछ राज्यों में हिंदू ‘अल्पसंख्य’ हैं । इस कारण भारत में अन्य अल्पसंख्यकों को मिलने वाले लाभ इन राज्यों के हिंदुओं को मिलने चाहिए । वास्तव में केंद्रीय स्तर पर यह ध्यान में आकर सरकार ने इस दृष्टि से कदम उठाना आवश्यक था । इसके लिए याचिका प्रविष्ट करनी पडती है, यह लज्जास्पद है ।
नई दिल्ली – देश के ९ राज्यों में हिंदू अल्पसंख्य होकर उन्हें ‘अल्पसंख्य’ ऐसा दर्जा देने की मांग करने वाली याचिका विविध उच्च न्यायालयों में सुनवाई के लिए प्रलंबित है । इन सभी याचिकाओं को उच्चतम न्यायालय में हस्तांतरित करने के विषय में न्यायालय ने केंद्र सरकार को प्रतिज्ञापत्र प्रस्तुत करने के लिए नोटिस जारी किया है । भाजपा नेता अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने यह याचिका प्रविष्ट की है । उच्चतम न्यायालय ने इससे पहले उपाध्याय की ऐसी मांग करने वाली याचिका को नकारते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय में जाने को कहा था ।
SC issues notice to Centre on transfer plea seeking minority status for Hindus in 6 states and 2 UTshttps://t.co/T8rhas8DyZ pic.twitter.com/GPeUbG1uDp
— Hindustan Times (@htTweets) February 9, 2021
इस याचिका में कहा गया है कि,
१. ‘राष्ट्रीय अल्प संख्यक आयोग अधिनियम १९९२’ में प्रावधान जिसके द्वारा देश में अल्पसंख्यक होने का दर्जा दिया जाता है । यदि इस प्रावधान को कायम रखा जा रहा है, तो जिन ९ राज्यों में हिंदू अल्पसंख्य हैं, उन्हे अल्पसंख्यक घोषित कर उस संदर्भ में मिलने वाले लाभ उन्हें देने चाहिएं ।
२. ‘राष्ट्रीय अल्प संख्यक आयोग अधिनियम १९९२’ इस प्रावधान को आव्हान देने वाली याचिका विविध उच्च न्यायालयों में प्रलंबित है, इन सभी याचिकाओं को उच्चतम न्यायालय में हस्तांतरित किया गया है ।
३. केंद्र सरकार ने अल्प संख्यक अधिनियम की धारा २ (सी) के अन्तर्गत मुसलमान, ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन को अल्पसंख्य घोषित किया है; लेकिन यहूदियों को अल्पसंख्य घोषित नहीं किया है । उसी प्रकार देश के काश्मीर, लद्दाख, पंजाब, मिजोरम, लक्षद्वीप, नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और मणिपूर, इन राज्यों की जन संख्या के आधार पर हिंदू अल्पसंख्य हुए हैं । इस कारण यहां उन्हे अल्पसंख्य घोषित कर उसका लाभ उन्हें मिलना चाहिए ।
४. उच्चतम न्यायालय के ११ न्यायाधीषों की खंडपीठ ने वर्ष २००२ में अल्पसंख्यकों की व्याख्या करते समय भाषा और धर्म के आधार पर अल्पसंख्यकों के रूप में माना जाना चाहिए, ऐसा कहा था । जब सभी राज्यों को भाषा के आधार पर मान्यता दी गई है, तो अल्पसंख्यकों का दर्जा देश के स्तर पर नहीं, यह राज्य की भाषा के अनुसार होना चाहिए ।