दिल्ली में किसानों के ट्रैक्टर मोर्चे में बडे पैमाने पर हिंसा ! दो लोगों की मृत्यु

  • पुलिसवालों पर तलवारें चलाई

  • पुलिसवालों से बंदूकें छीनने का प्रयास !

  • कुछ पुलिसवाले घायल !

  • बस और पुलिस गाडी की तोडफोड !

  • पुलिसवालों पर ट्रैक्टर चढाने का प्रयास !

  • लाल किले पर खालसा पंथ का झंडा फहराया !

  • देश की राजधानी में आंदोलनकारी किसानों द्वारा हिंसाचार करने तक पुलिस और गुप्तचर विभाग सोया था क्या ? किसानों को न रोक सकने वाले पुलिस आतंकवादियों और नक्सलवादियों को कभी रोक सकते हैं क्या ?
  • इस प्रकार हिंसा कर सार्वजनिक संपत्ति की हानि करने के मामलें में और हिंसा करने वालों पर नियंत्रण न करने के मामले में किसान और पुलिस दोनों से हानि भरपाई करवानी चाहिए !


नई दिल्ली – २६ जनवरी को गणतंत्रदिवस के दिन दिल्ली में आंदोलन करने वाले किसानों ने कृषि कानून निरस्त करने के लिए सिंघू, टिकरी और गाजीपुर की सीमाओं से टैक्टर मार्च निकाला था; लेकिन इसमें उनकी ओर से बडे पैमाने पर हिंसा की गई । आई.टी.ओ., लाल किला, नांगलोई, सिंघू, टिकरी सीमा और अन्य स्थानों पर इस समय हिंसा की घटना हुई । इसमें दो किसानों की मृत्यु हो गई, और १८ पुलिस वाले घायल हुए । इस समय इन किसानों की ओर से पुलिस पर तलवारों से हमला किया गया । पुलिसवालों से बंदूकें छीनने का प्रयास किया गया । पुलिसवालों पर पत्थर फेंके गए । बस और पुलिस की गाडियों की तोडफोड कर उसे पलट दिया गया । कुछ स्थानों पर पुलिसवालों पर किसानों की ओर से ट्रैक्टर चढाने का प्रयास किया गया। ( ये किसान हो सकते हैं क्या ? ऐसे समाज विरोधी घटकों पर कार्यवाही करना आवश्यक ! – संपादक) इस समय हिंसारत किसानों को रोकने के लिए पुलिस ने लाठी चार्ज किया, आंसू गैस के गोले छोडे गए । यह हिंसक किसान ट्रैक्टर लेकर लाल किला परिसर में घुसे और जिस स्थान पर राष्ट्र ध्वज फहराया जाता है, वहां जाकर खालसा पंथ का झंडा फहराया । बाद में पुलिस ने उसे निकाल दिया । इस घटना के समय पुलिस मूकदर्शक बनी रही । (ऐसी पुलिसको सेवा से निष्कासित करें ! – संपादक) इस घटना के बाद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के नेतृत्व में गृह मंत्रालय की आवश्यक बैठक ली गई ।

१. पुलिस ने किसानों को अनुमति देते हुए बताया था कि, गणतंत्र दिवस परेड समाप्त होने के बाद १२ बजे ट्रैक्टर मार्च निकालें; लेकिन किसानों ने परेड समाप्त होने के पहले ही मार्च निकाला । बैरिकेट तोड कर किसान आगे बढे और वे पुलिस द्वारा बताए गए मार्ग से भी नहीं गए ।

२. मुकरबा चौक पर पुलिस और आंदोलनकारी किसानों के बीच हिंसक झडपें हुई । पुलिस द्वारा लगाए गए बेरीकेट तोडकर अंदर घुसने वाले किसानों को रोकने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोडे ।

३. किसान मजदूर संघर्ष समिति के किसान मुकरबा चौक पहुंचे थे । वहां से उनका कांजवाला जाना अपेक्षित था; लेकिन बेरिकेट्स तोडकर ये किसान रिंग रोड की ओर गए ।

४. दिल्ली के आई.टी.ओ. क्षेत्र में हिंसा करने वाले किसानों पर आंदोलनकारियों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया । किसानों की पत्थरबाजी में कुछ पुलिसवाले घायल हो गए ।

५. अक्षरधाम मंदिर के पास से व्यवधान हटाकर अंदर घुसने का प्रयास करने वाले किसानों को रोकने का प्रयास करने पर किसानों ने पुलिसवालों पर तलवार चलाई ।

६. किसानों की इस हिंसा के कारण जीटीके रोड, आउटर रिंग रोड, बादली रोड, केएन काटजू मार्ग, मधुबन चौक, कंजावाला रोड, पल्ला रोड, नरेला आदि अनेक स्थानों पर गाडियों का जाम लग गया ।

७. इस हिंसा के कारण पुलिस ने शहर की इंटरनेट व्यवस्था कुछ समय के लिए बंद कर दी ।

८. दिल्ली के डीडीयू मार्ग पर ट्रैक्टर ट्राली के पलटने से एक किसान की मृत्यु हो गई । दिल्ली-हरियाणा सीमा पर एक किसान की दिल का दौरा पडने से मृत्यु हो गई । इस घटना की जांच की जाने की जानकारी पुलिस ने दी है ।

९. दिल्ली में ट्रैक्टर लेकर घुसे किसान लाल किला परिसर में घुसे । वहां उन्होने स्वतंत्रता दिवस के दिन फहराये जाने वाले राष्ट्रध्वज के स्तंभ पर खालसा पंथ का झंडा फहराया । यहां किसानों द्वारा किए आक्रमण में कुछ पुलिसवाले घायल हो गए । बाद में पुलिस ने हिंसा करने वाले किसानों को वहां से खदेड दिया ।

१०. उच्चतम न्यायालय द्वारा मध्यस्थता करने से मना करने पर दिल्ली पुलिस ने राजपथ पर परेड समाप्त हो जाने पर मार्च निकालने की अनुमति दी थी । कानून और व्यवस्था की दृष्टि से दिल्ली की सीमा पर बडे पैमाने पर पुलिस व्यवस्था की गई थी । ३ अलग अलग मार्गों से निकलने वाले मोर्चे में ५ सहस्र ट्रैक्टर और उतनी की संख्या में किसान आंदोलनकारियों के सहभागी होने की अनुमति पुलिस ने दी थी।

(कहते हैं) ‘हिंसा करने वाले घूसखोर थे !’ – ४० किसान संघठनों के संयुक्त किसान मोर्चा का दावा

  • ऐसा कहना अर्थात हुई हिंसा से स्वयं के हाथ खींचने के समान है ! पुलिस ने इन किसान संघठनों के प्रमुखों पर गुनाह दाखिलकर उन्हें कारागृह में डालना अपेक्षित है !
  • यदि इतने बडे पैमाने पर मोर्चा निकाला जाना था, तो इस संबंध में सतर्कता क्यों नहीं बरती गई ? इसके लिए पुलिस की सहायता क्यों नहीं ली गई ?

किसान आंदोलनकारियों के हिंसा करने के पश्चात् संयुक्त किसान मोर्चा ने अधिकृत भूमिका घोषित की है । इसमें कहा है कि, आंदोलन में हुई हिंसक घटना का विरोध कर रहे हैं । इस घटना के लिए जो लोग उत्तरदायी हैं उनका संयुक्त किसान मोर्चा से कुछ संबंध नही है । हमारे सभी प्रयासों के बाद भी कुछ संघठनों और व्यक्तियों ने नियोजित मार्ग और नियमों का उल्लंघन किया और उन्होने निंदनीय कृत्य किए । समाजद्राहियों ने शांतिपूर्ण आंदोलन में घूसखोरी की । हमने हमेशा ही यह आंदोलन शांति के मार्ग से करने का तय किया है । शांति हमारी सबसे बडी शक्ति है । किसी भी प्रकार से नियमों का उल्लंघन कर आंदोलन को हानि नहीं होने देंगे, ऐसा हमारा हेतु है । आज क्या क्या हुआ इस संदर्भ में हम जानकारी ले रहे हैं । इस संबंध में जल्द ही संपूर्ण चित्र स्पष्ट हो जाएगा ।

संसद पर १ फरवरी को मार्च

कृषि कानून रद्द करने के लिए १ फरवरी के दिन संसद पर बडा मार्च करने की जानकारी संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्य और क्रांतिकारी किसान यूनियन के अध्यक्ष दर्शनपाल ने दी । संसद का बजट सत्र २९ जनवरी से शुरू होकर १ फरवरी को बजट प्रस्तुत किया जाने वाला है ।