सरकारी प्रतिष्ठानों का निजीकरण होते हुए मंदिरों का निजीकरण क्यों ? – सद्गुरू जग्गी वासुदेव

  • हिन्दू बहुल भारत में, मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण हटाने के लिए हिन्दू संतों को हस्तक्षेप करना पडता है, यह हिन्दुओं के लिए लज्जास्पद है ! 
  • देश में सरकार द्वारा संचालित मंदिरों को भक्तों के नियंत्रण में लाने के लिए, सभी संप्रदायों और हिन्दू संगठनों को एक साथ आने की आवश्यकता है । यदि कुछ हजार किसान दिल्ली में एक साथ आ सकते हैं और सरकार को रोक सकते हैं, तो देश के करोडों हिन्दू, मंदिरों के लिए ऐसा क्यों नहीं कर सकते ?

नई दिल्ली : हाल के दिनों में, सरकार ने विमानन प्रतिष्ठानों, हवाई अड्डों, कारखानों, खानों, उद्योगों, आदि से अपना नियंत्रण हटाने की इच्छा जताई है, किंतु, यह समझ से परे है कि सरकार हिन्दुओं के पवित्र मंदिरों को नियंत्रित करना चाहती है । इसके पीछे क्या कारण हो सकता है ? सी.एन.एन. के आनंद नरसिम्हन को दिए एक साक्षात्कार में सद्गुरु जग्गी वासुदेव, जो एक आध्यात्मिक उपदेशक हैं एवं जिनको ‘सद्गुरू’ के रूप में जाना जाता है, ने कहा कि यह साक्षात्कार यू ट्यूब पर उपलब्ध है ।

(सौजन्य : सद्गुरु)

सद्गुरू जग्गी वासुदेव द्वारा एक साक्षात्कार में प्रस्तुत किए गए सूत्र :

१. १८१७ में ईस्ट इंडिया कंपनी ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए मद्रास विनियमन – १११ लागू किया ; हालांकि, इसे १८४० में वापस ले लिया गया था । फिर १८६३ में, धार्मिक बंदोबस्ती अधिनियम प्रस्तुत किया गया । मंदिर को ब्रिटिश ट्रस्टियों को सौंप दिया गया । यह ट्रस्टी मंदिर चलाते थे ; किन्तु सरकारी हस्तक्षेप कम से कम था । मंदिर के पैसे का उपयोग केवल मंदिर के काम के लिए किया जाता था । सैकडों मंदिर इन कानूनों के अनुसार चल रहे थे ।

२. ब्रिटिश सरकार ने उस समय मद्रास धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम १९२५ लागू किया । इसमें हिन्दू, मुस्लिम और ईसाईयों के धार्मिक स्थान भी उनके नियंत्रण में आ गए । जब ईसाईयों और मुसलमानों ने इस पर आपत्ति दर्शार्ई, तो सरकार ने उन्हें कानून से बाहर कर दिया और एक नया कानून बनाया गया, जिसका शीर्षक था ‘मद्रास हिन्दू रिलिजियस ऐंड एंडोवमेंट ऐक्ट-१९२७.’ । (यह एक तथ्य है कि हिन्दू उतना विरोध नहीं करते जितना उन्हें करना चाहिए इसलिए हिन्दू शासन कर्ता देश में हिन्दुओं के विरोध की तरफ कोई ध्यान नहीं देते ! – संपादक)  इसके उपरांत वर्ष १९३५ में इसमें बडे परिवर्तन किए गए ।

३. स्वतंत्रता के बाद, तमिलनाड सरकार ने वर्ष १९५१ में ‘हिन्दु रिलिजियस एंड एंडोवमेंट ॲक्ट’ नामक नया कानून पारित किया । इस कानून को मठों और मंदिरों ने मद्रास उच्च न्यायालय और बाद में उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी । फलस्वरूप, सरकार को इनमें से कई प्रावधानों को हटाना पडा । फिर वर्ष १९५९ में, तत्कालीन कांग्रेस राज्य सरकार ने ‘हिन्दू धार्मिक और धर्मार्थ अधिनियम’ पारित किया । इसके अनुसार, ट्रस्ट के प्रमुख आयुक्त थे एवं मंदिर के लगभग ६० से ७० प्रतिशत प्राप्त दान अकेले प्रशासनिक कार्यों पर खर्च किए जाते थे ।

४. आज, सरकार देश के ३७,००० मंदिरों को नियंत्रित करती है । सरकार केवल एक धर्म के ही मंदिरों को नियंत्रित करती है । आपने कभी किसी दूसरे देश में ऐसी बात नहीं सुनी होगी । हिन्दू मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण होने के कारण हमेशा कह जाता है कि, ‘चर्चों, गुरुद्वारों और मस्जिदों को भी सरकारी नियंत्रण में होना चाहिए । मैं कहता हूं, सरकार को धर्मनिरपेक्ष देश में किसी भी धार्मिक स्थान पर हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए ।’

५. ऐसे स्थान, जहां लाखों लोग हमेशा अपने श्रद्धा व विश्वास के कारण जाते हैं, स्वतंत्र होना चाहिए । यह उनके मानवाधिकारों के लिए किया जाना चाहिए । कुछ लोग तर्क देते हैं, ‘अतीत में मंदिर राजाओं के नियंत्रण में थे । अब वे सरकार के हाथों में हैं ।’ यह सत्य नहीं है । राजा धर्मनिष्ठ थे । कई राज्यों में, देवताओं को राजा माना जाता था । राजा देवता के मंत्री के रूप में कार्य करते थे, किन्तु, हमारे मंत्री केवल देवता के प्रतिनिधियों के रूप में शासन करते हैं ।

६. सरकार द्वारा नियंत्रित मंदिर अत्यंत दुरवस्था में हैं । यह विशेष रूप से दक्षिण भारत की स्थिति है । तमिलनाडु के मंदिर बहुत सुंदर थे । कुछ मंदिरों के सामान अब चोरी हो गए हैं । मंदिरों में प्राचीन पत्थरों पर सुंदर कलाकृतियां थीं, उन पर रंग पोत दिया गया है । सब कुछ नष्ट होता जा रहा है ; क्योंकि, लोगों की भावनाएं इतनी प्रबल नहीं हैं । अत:, तमिलनाडु के मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करना चाहिए ।

७. यदि आप तमिलनाडु में मंदिर बनाने का प्रयास करते हैं और फिर यह सार्वजनिक हो जाता है, तो सरकार तुरंत इसे नियंत्रित करने के लिए नोटिस भेज देगी । इस धर्मनिरपेक्ष देश में ऐसा कैसे हो सकता है ?

८. मंदिर के निर्माण का विज्ञान नष्ट हो गया है । क्या यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं है ? अब मंदिरों को स्वतंत्र करने का समय आ गया है । लोग कहते हैं कि, ‘इससे भ्रष्टाचार को बढावा मिलेगा ।’ मुझे यह अपमानजनक लगता है । क्या हम अपने श्रद्धा स्थानों का योग्य नियंत्रण नहीं कर सकते हैं ?

गणमान्य लोगों द्वारा किया गया समर्थन

१. लेखक और वैज्ञानिक, सुभाष काक ने सद्गुरु जग्गी वासुदेव की मांग का समर्थन किया है । उन्होंने कहा है कि, सद्गुरू ने सही सवाल खडा किया है । मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण के पीछे कोई तर्क नहीं है । यह सूत्र देश की राजनीति को नुकसान पहुंचा रहा है और प्रशासनिक सेवाओं को दूषित कर रहा है ।

२. अभिनेत्री कंगना रानौत ने भी इसका समर्थन किया है । “यदि आपके पास समय है, तो आपको यह साक्षात्कार देखना चाहिए,” उन्होंने कहा । यह बहुत महत्वपूर्ण है ।

सोशल मीडिया के माध्यम से किए गए कुछ लोगों के ट्वीट्स :

मंदिर को लेकर सद्गुरू जग्गी वासुदेव के विचारों का सोशल मीडिया पर भी समर्थन किया जा रहा है । ट्विटर की कुछ प्रतिक्रियाएं हम दे रहे हैं :

१. एक ट्विटर उपयोगकर्ता ने योगी आदित्यनाथ, प्रधानमंत्री कार्यालय, केंद्रीय गृह मंत्रालय, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को टैग करते हुए कहा, कृपया सद्गुरू की बात सुनें । पूरे देश में हिन्दू मंदिरों को मुक्त करने के लिए, सरकार ‘गुरु द्वारा प्रबंधक समिति अधिनियम १९३५’ जैसा एक कानून बनाए । प्रधानमंत्री मोदी के लिए श्री राम मंदिर की आधारशिला रखना पर्याप्त नहीं है, मंदिरों को भी मुक्त करने की नितांत आवश्यकता है ।

२. जिन राज्यों में धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों की सरकार है, वहां मंदिर के धन का दुरुपयोग करने का उन्हें अवसर दिया जा रहा है । महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और केरल की सरकारें इसके उदाहरण हैं । न्यायालय भी इन प्रकरणों में सदा सहायता नहीं कर सकते ।

३. संपूर्ण भारतीय लोकतंत्र हिन्दू संस्कृति को नष्ट करने का प्रयत्न कर रहे हैं । तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, उत्तरी कर्नाटक और तमिलनाडु में ईसाई मिशनरी गतिविधियां बढी हैं । वे उन गांवों में चर्च बना रहे हैं जहां कोई ईसाई नहीं है । यह सभी सरकार के समर्थन से चल रहा है ।

४. सरकार या तो मंदिरों को मुक्त करे, अथवा सभी धर्मों के धार्मिक स्थलों पर नियंत्रण करे ! केवल एक धर्म के विरुद्ध भेदभाव स्वीकार्य नहीं है ।

५. हम ऐसे समय में रहते हैं जिसमें धर्म से दूर हो चुके हिन्दू सोचते हैं कि वे देश और बडे व्यवसाय तो चला सकते हैं; किंतु अपने मंदिर नहीं चला सकते ।