साधना करने के कारण जीवन के कठिनतम प्रसंगों में भी व्यक्ति स्थिर रहकर उसका सामना कर सकता है ! – पू. नीलेश सिंगबाळजी, हिन्दू जनजागृति समिति

सनातन संस्‍था एवं हिन्‍दू जनजागृति समिति द्वारा आयोजित उत्तर व
पूर्वोत्तर भारत का ऑनलाइन सत्‍संग समारोह भावपूर्ण वातावरण में संपन्‍न

पू. नीलेश सिंगबाळजी

     वाराणसी (उ.प्र.) – कोरोना महामारी के प्रादुर्भाव के कारण उत्‍पन्‍न तनाव, निराशा, चिंता की परिस्‍थिति में समाज का आत्‍मबल बढाने की दृष्‍टि से सनातन संस्‍था तथा हिन्‍दू जनजागृति समिति द्वारा ‘ऑनलाइन सत्‍संग’ आरंभ किए गए । गत ८ माह से जुडे इन जिज्ञासुआें को साधना के अगले चरण का मार्गदर्शन मिले इस उद्देश्‍य से दिनांक १२.१२.२०२० को उत्तर एवं पूर्वोत्तर भारत के जिज्ञासुआें के लिए ऑनलाइन सत्‍संग समारोह आयोजित किया गया । इसमें विश्‍वकल्‍याण हेतु कार्यरत, सनातन संस्‍था के संस्‍थापक परात्‍पर गुरु (डॉ.) जयंत बाळाजी आठवलेजी के एकमेवाद्वितीय कार्य से जिज्ञासुओं को अवगत कराया गया । कार्यक्रम में जिज्ञासुओं ने साधना के कारण उनके जीवन में अनुभव हुए अनुभूतियां बताईं । इस कार्यक्रम में झारखंड के संतद्वयी पूज्‍य प्रदीप खेमकाजी तथा पूज्‍य सुनीता खेमकाजी की वंदनीय उपस्‍थिति थी । इसमें उत्तर एवं पूर्वोत्तर भारत के विविध राज्‍य, जैसे झारखंड, बंगाल, असम, बिहार, उत्तर प्रदेश तथा ओडिशा के जिज्ञासु उपस्‍थित थे । संतों की उपस्‍थिति से वातावरण चैतन्‍यमयी बन गया था ।

     अंत में पू. सिंगबाळजी ने बताया कि ‘‘ईश्‍वरप्राप्‍ति ही मनुष्‍य जीवन का ध्‍येय है । नामजप, प्रार्थना से स्‍वभावदोष-निर्मूलन तथा अहं-निर्मूलन कर हम साधना में उन्‍नति की ओर अग्रसर हो सकते हैं । अध्‍यात्‍म में स्‍वभावदोष-निर्मूलन और अहं-निर्मूलन का विशेष महत्त्व है । अहं खेत में उगनेवाले खरपतवार जैसा है, जिसे पूर्णतया नष्‍ट किए बिना ईश्‍वर कृपा की फसल नहीं उगती । इसलिए निरंतर इसकी कटाई करते रहना चाहिए । इसके साथ ही साथ ईश्‍वर के प्रति भाव होना भी अत्‍यंत महत्त्वपूर्ण है ।