उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, योगी आदित्यनाथ को ‘लव जिहाद’ अधिनियम के विरोध में १०४ सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारियों का पत्र !

(कहते हैं) ‘संविधान का पुनः अध्ययन करें !’

कट्टर राजनीतिक दल तो लव जिहाद का विरोध कर ही रहे थे, अब सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी भी इसमें उतर गए हैं । हिन्दुओं को लगता है कि योगी आदित्यनाथ की सरकार को इस बात की जांच करनी चाहिए कि उनके कार्यकाल में इन अधिकारियों ने कितने हिन्दू विरोधी फैसले लिए हैं और देश की जनता को इसके बारे में जानकारी दें !

लखनऊ (उत्तर प्रदेश) – एक समय उत्तर प्रदेश, ‘गंगा-यमुना संस्कृति’ (गंगा और यमुना के किनारे पर रहने वाले हिन्दू और मुसलमानों की संस्कृति) और सभ्यता का स्रोत था, किंतु अब वह घृणा, भेदभाव और कट्टरता की राजनीति का केंद्र बन गया है । (तथाकथित गंगा-यमुना संस्कृति धर्म निरपेक्षता के नाम पर हिन्दुओं पर कट्टरपंथियों द्वारा किया जानेवाले अत्याचार हैं ! योगी आदित्यनाथ को ऐसे पत्रों को कचरे की एक टोकरी में डाल देना चाहिए, हिन्दुओं की यही अपेक्षा है ! – संपादक) राज्य के सरकारी संगठन सामाजिक भेदभाव में कंठ तक डूबे हुए हैं । (यदि कोई हिन्दुओं के हित में काम करता है, तो इससे सामाजिक भेदभाव होता है ; इन अधिकारियों ने यह एक नई खोज की है ! – संपादक) मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने संविधान के प्रावधानों की शपथ ली है, उनका अध्ययन और पुन:निरीक्षण करने का समय आ गया है ; इस आशय का पत्र उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को १०४ सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा लिखा गया है । (यदि सरकार किसी समाज की युवतियों की सुरक्षा के लिए एक कानून लागू करती है, कारण उनके साथ धर्म के आधार पर गलत व्यवहार किया जा रहा है, तो इन अधिकारियों को कष्ट क्यों होता है ? क्या ऐसा करना असंवैधानिक है ? – संपादक) उन्होंने हाल ही में लागू किए गए ‘लव जिहाद’ कानून पर चिंता व्यक्त की है । कानून में जबरन धर्म परिवर्तन किए जाने पर कारावास के साथ-साथ दंड का भी प्रावधान है ।

इन अधिकारियों ने अपने पत्र में मुरादाबाद की घटना का उल्लेख किया है । पुलिस ने हिन्दू युवती से विवाह करने के कारण मुरादाबाद में दो मुसलमान भाइयों को गिरफ्तार किया था । पत्र में यह उल्लेख किया गया था कि युवती ने अपनी सहमति से एक मुसलमान व्यक्ति से विवाह की थी, जबकि बजरंग दल ने ‘लव जिहाद’ का आरोप लगाया था । (यदि किसी को कोई संदेह है, तो संविधान ने उसे शिकायत करने का अधिकार दिया है । यदि कोई भी उसका उपयोग कर रहा है, तो उसे रोकना संविधान का अपमान होगा ! – संपादक)