निजी अस्पतालों में कोरोना उपचार के लिए फीस को सीमित करने की आवश्यकता ! – उच्चतम न्यायालय

यह न्यायालय को बताना पडता है ? सरकार को स्वयं होकर करना जनता को अपेक्षित है !


नई दिल्ली – कोरोना का उपचार सामान्य व्यक्ति के लिए संभव नही है । कोरोना को रोकने के लिए और उपाय योजना करनी चाहिए । निजी अस्पतालों की ओर से मरीजों पर उपचार हेतु लिए जाने वाले शुल्क पर एक सीमा होनी चाहिए । राज्यों ने अधिक सतर्कता से और केंद्र के साथ समन्वय से कार्य करने की आवश्यकता है । नागरिकों का स्वास्थ्य यह प्राथमिकता होनी चाहिए । दिशानिर्देशों और मानकीकृत प्रक्रियाओं का उल्लंघन करने वालों पर कठोर कार्यवाही करनी चाहिए; क्योंकि उन्होने अन्य लोगों की जान से खेलना बर्दाश्त नही किया जाएगा, ऐसे शब्दों में न्यायालय ने केंद्र सरकार को सुनाया ।

न्यायालय ने आगे कहा कि,

१. आरोग्य मूलभूत अधिकार है और उपचार सस्ते दरों पर होना चाहिए यह भी एक सूत्र है । कोरोना का उपचार खर्चीला है । कोई व्यक्ति कोरोना से ठीक भी हो जाए, तो भी वह व्यक्ति आर्थिक दृष्टि से कमजोर हो जाता है, ऐसी परिस्थिति है । इसलिए राज्य सरकारों और स्थानीय प्रशासन ने अधिक से अधिक उपाय योजना करने की आवश्यकता है । इसे आपदा प्रबंधन अधिनियम के अंतर्गत अपनी शक्तियों का प्रयोग करना चाहिए ।

२. कोरोना के विरोध में विश्व युद्ध छेडा गया था; हलाकि दिशानिर्देशों और नियमों के अनुपालन की कमी के कारण रोग देश में जंगल की आग की तरह फैल गया । यह एक अभूतपूर्व संगत थी । इससे दुनिया को भारी नुकसान हुआ । कोरोना के खिलाफ विश्व युद्ध ही था । इसलिए संकट के इस दौर में सरकार और निजी क्षेत्र के बीच सहयोग होना चाहिए । स्वास्थ्य कर्मचारी, डाक्टर्स, नर्स इन पर मानसिक और शारीरिक तनाव होने पर भी ८ माह बिना आराम किए काम किया है । अब उन्हे बीच-बीच में आराम देने की आवश्यकता है । राज्यों द्वारा केंद्र के साथ सहमति से काम करने की आवश्यकता है ।

३. लॉकडाउन या कर्फ्यू लगाने का निर्णय यदि लेना होगा, तो इसकी पूर्व सूचना बहुत पहले दी जानी चाहिए, जिससे लोग रोजीरोटी का उपाय करके नियमों का पालन कर सकेंगे ।

४. लोगों द्वारा भी कर्तव्य का पालन होना चाहिए । गुजरात में ८० से ९० करोड रुपए का जुर्माना होने पर भी लोग नियमों का पालन करते हुए नही दिखाई देते । इसलिए राज्य के गृह सचिव और मुख्य सचिव को पुलिस अधीक्षक को आदेश देना चाहिए ।