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नई दिल्ली : ‘दक्षिण ऐशिया स्टेट ऑफ मायनॉरिटीज’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में असहिष्णुता पिछले दो वर्षों में बढी है और देश मुसलमानों के लिए “खतरनाक और हिंसक” हो गया है । रिपोर्ट में कहा गया है कि, “सरकार का विरोध करने वालों एवं और मुसलमानों के प्रति असहिष्णुता बढी है।” संस्था द्वारा दक्षिण एशियाई देशों, विशेषकर अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और श्रीलंका द्वारा नागरिकों को, विशेष कर अल्पसंख्यकों को, कितनी स्वतंत्रता दी जाती है, इस पर रिपोर्ट दी जाती है ।
रिपोर्ट में दिए गए सूत्र :
१. दक्षिण एशिया के इन सभी देशों में लोकतांत्रिक मूल्यों, जैसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सर्वधर्म समभाव, का गला घोंटा जा रहा है ।
२. हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों के नागरिक, जिन्हें २०१४ के अंत तक, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से भारत भेज दिया गया था, उन्हें नागरिकता पुनरीक्षण अधिनियम के तहत भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने का अधिकार दिया गया था ; किन्तु, मुसलमान बहुल इस देश में मुसलमान शरणार्थी सम्मिलित नहीं किए गए ।
३. पिछले साल अल्पसंख्यकों पर हमले बढे थे । फरवरी में, नागरिकता सुधार अधिनियम के विरोध में एक आंदोलन के दौरान, दिल्ली के शाहीन बाग क्षेत्र में हिन्दू और मुसलमान दंगे भडक उठे । कोरोना अवधि के दौरान, दिल्ली के निज़ामुद्दीन क्षेत्र में मुस्लिम प्रशिक्षण केंद्र में तबलीगी जमात का कार्यक्रम हुआ, जिसके बाद ‘इस्लामोफोबिया’ अनुभव किया गया । उस समय, देश भर में मरकज, कोरोना महामारी का केंद्र बन गया था ।
४. मानवाधिकार के समर्थक, कार्यकर्ता, संगठन, पत्रकार, उदार बुद्धिजीवी, भारत सरकार के एकाधिकार के विरोध में बोलने की कोशिश करने वाले कलाकारों पर आक्रमण हो रहे हैं । भारत में मानवाधिकार कार्यकर्ता, जो भेदभाव को रोकने वाले कानूनों की रक्षा करने की कोशिश करते हैं, उन्हें प्राय: आपराधिक मामलों में हिरासत, हिंसा, गिरफ्तारी और उत्पीड़न के परिणामों का सामना करना पडता है ।
५. दिल्ली के दंगों, दिल्ली पुलिस और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर लगे आरोपों की रिपोर्टिंग करनेवाले केरल के दो न्यूज़ चैनलों पर अस्थायी रूप से प्रतिबंध लगा दिया गया है ।