परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्‍वी विचार

अन्‍य हिन्‍दुत्‍वनिष्‍ठ संगठनों के पास लाखों कार्यकर्ता होंगे, परंतु उनसे अपेक्षित धर्मसेवा नहीं होती; क्‍योंकि उनके पास, साधना न करने के कारण, आध्‍यात्मिक बल नहीं होता । – (परात्‍पर गुरु) डॉ. आठवले

‘हमें ईश्‍वर की सहायता क्‍यों नहीं मिलती है ?’, इसका हिन्‍दू विचार करें तथा सहायता पाने के लिए साधना आरंभ करें ।’

‘कीर्तनकार और प्रवचनकार सैद्धांतिक जानकारी देते हैं; परंतु वास्‍तविक गुरु प्रायोगिक कृत्‍य करवाकर शिष्‍य की प्रगति करवाते हैं ।’

‘साधना से सूक्ष्म ज्ञान होने पर यज्ञ का महत्त्व समझ में आता है । महत्त्व न समझने के कारण ‘अधिक समझदार बुद्धिजीवी’, ‘यज्ञ में वस्‍तुएं जलाने की अपेक्षा गरीबों को दें’ का राग आलापते हैं !’
‘पृथ्‍वी के काम भी बिना किसी के परिचय के नहीं होते; तब प्रारब्‍ध, अनिष्‍ट शक्‍तिजनित पीडा इत्‍यादि समस्‍याएं बिना ईश्‍वर से परिचय हुए बिना, क्‍या ईश्‍वर दूर करेंगे ?’

‘धर्मांतरण कराने के लिए ईसाईयों को प्रलोभन देना पडता है, मुसलमानों को धमकाना पडता है, जबकि हिन्‍दू धर्म के ज्ञान के कारण अन्‍य पंथीय हिन्‍दू धर्म की ओर आकर्षित होते हैं !’

कहां कुछ ही वर्षों में भूल जानेवाले माया के विषय,
तो कहां युगों-युगों तक पढे जानेवाले अध्‍यात्‍म के ग्रंथ !

‘माया के विषय लोग शीघ्र भूल जाते हैं । इसलिए पहला और दूसरा विश्‍वयुद्ध ही नहीं, नोबल पुरस्‍कार प्राप्‍त करनेवाले शास्‍त्रों के नाम भी २५ से ५० वर्ष तक लोगों के स्‍मरण में नहीं रहते । इसके विपरीत, अध्‍यात्‍म का इतिहास और उसके ग्रंथ युगों तक मनुष्‍य के स्‍मरण में रहते हैं; क्‍योंकि वे मानव का मार्गदर्शन करते हैं !’

‘रोगों से बचाव हेतु टीकाकरण होता है; उसी प्रकार तीसरे विश्‍वयुद्ध के समय प्राणरक्षा हेतु साधना ही टीका है ।’
– (परात्‍पर गुरु) डॉ. आठवले