आपराधिक पृष्‍ठभूमि के नेताआें के विरुद्ध कार्रवाई न होना, लोकतंत्र की शोकांतिका है !

पू.अधिवक्‍ता सुरेश कुलकर्णी

     ‘भारतवर्ष में प्रभु श्रीराम, विक्रमादित्‍य, चंद्रगुप्‍त, समुद्रगुप्‍त, हरिहर एवं बुक्‍क जैसे अनेक तेजस्‍वी एवं धर्माधिष्‍ठित राजा हुए । महाराष्‍ट्र को तो छत्रपति शिवाजी महाराज, छत्रपति संभाजी महाराज और पेशवा के रूप में धर्माधिष्‍ठित राजा मिले, जिन्‍होंने वास्‍तव में श्रीविष्‍णु की भांति अपनी प्रजा का रक्षण और पालन-पोषण किया; परंतु वर्तमान लोकतंत्र में इसका ठीक उलटा अनुभव हो रहा है । देश के अनेक नेताआें पर सर्वोच्‍च न्‍यायालय में आपराधिक अभियोग (फौजदारी मुकदमे) चल रहे हैं और वे अत्‍यंत महत्त्वपूर्ण पदों पर भी हैं ।
     महाराष्‍ट्र की महिला एवं बालविकास मंत्री तथा अमरावती जिले की पालकमंत्री यशोमति ठाकुर को हाल ही में जिला और सत्र न्‍यायाधीश उर्मिला जोशी ने ३ मास के सश्रम कारावास दिया और १५ सहस्र ५०० रुपए का आर्थिक दंड भी दिया । भुगतान न करने पर अतिरिक्‍त १ मास कारावास का प्रावधान है ।

 

१. एक दिशा मार्ग पर (वन-वे पर) बिना अनुमति के वाहन चलाकर पुलिसकर्मी को पीटने का यशोमति ठाकुर पर आरोप

वर्ष २०१२ में अमरावती शहर के अंबामाता मंदिर के एक दिशा मार्ग पर (वन-वे पर) बिना अनुमति के यशोमति ठाकुर ने गाडी चलाई । पुलिस ने उन्‍हें रोका । इस समय यातायात पुलिसकर्मी उल्‍हास रुरळे को ठाकुर के चालक और अन्‍य दो ने पीटा । इस प्रकरण में यशोमति ठाकुर के विरोध में राजापेठ पुलिस थाने में अपराध प्रविष्‍ट किया गया । इसमें यह आरोप लगाया गया कि ‘यशोमति ठाकुर ने भी पुलिसकर्मी को पीटा ।’

२. नेता के विरुद्ध दृढता से संघर्ष करनेवाले पुलिस कर्मचारी तथा न्‍यायालय का नि:स्‍वार्थ निर्णय

वास्‍तव में नेताआें अथवा जनप्रतिनिधियों का शासकीय कर्मचारियों को पीटना तथा गुंडागर्दी करना, जनसामान्‍य के लिए कोई नई बात नहीं । परंतु उनके विरोध में अपराध प्रविष्‍ट करने का साहस कोई नहीं करता; क्‍योंकि उनके हाथ में सत्ता, प्रचंड पैसा, विशेषाधिकार हनन के अंतर्गत कार्रवाई करना, ऐसे अनेक अस्‍त्र होते हैं । इस पूरे दबावतंत्र से सामान्‍य जनता डरती है । इस पृष्‍ठभूमि पर पुलिसकर्मी द्वारा अपराध प्रविष्‍ट करना तथा दृढता से अभियोग में सम्‍मिलित होकर मंत्री को दंड मिलने तक संघर्ष करना अवश्‍य ही प्रशंसनीय है । इस प्रकरण के अभियोग में साक्षी-प्रमाणों (गवाह-सबूतों) के आधार पर अमरावती जिले के सत्र न्‍यायाधीश ने ठाकुर को यह दंड दिया । न्‍यायव्‍यवस्‍था में जो नि:स्‍वार्थ न्‍यायाधीश हैं, उनकी निष्‍पक्षता पर १३० करोड जनता को विश्‍वास  है । उसे सार्थक करते हुए सत्र न्‍यायाधीश ने दंड दिया । यह भी प्रशंसनीय है । इसलिए ‘कानून के सामने सर्व समान हैं’, यह प्रमाणित करनेवाली न्‍यायपालिका का मैं आभार व्‍यक्‍त करता हूं ।

३. न्‍यायालय द्वारा दंड देने पर भी ठाकुर का मंत्रीपद न छोडना

हाल ही में मुंबई उच्‍च न्‍यायालय की नागपुर खंडपीठ ने यशोमति ठाकुर की अपील पर उपरोक्‍त दंड को स्‍थगित कर उनकी अपील प्रविष्‍ट कर ली । (इन दो बातों में संयोग देखिए, गुरुवार को ही दंड मिला और उच्‍च न्‍यायालय ने स्‍थगित भी गुरुवार को ही किया । सत्र न्‍यायाधीश और उच्‍च न्‍यायालय के न्‍यायमूर्ति दोनों जोशी ही हैं ।) न्‍यायालय द्वारा दंड देने पर ठाकुर द्वारा तत्‍काल मंत्रीपद से त्‍यागपत्र देना अपेक्षित था । विपक्ष की मांग पर भी उन्‍होंने त्‍यागपत्र नहीं दिया । इसके विपरीत उन्‍होंने कहा, ‘भाजपा ने मेरे विरुद्ध यह षड्‍यंत्र किया है और ऐसी प्रवृत्तियों से मैं आगे भी लडती रहूंगी ।’

४. आपराधिक कृत्‍यों में नेताआें की भागीदारी के कुछ उदाहरण !

४ अ. ‘बनावटी मुद्रांक घोटाले’ में नेताआें का सहभाग : कुछ वर्ष पूर्व महाराष्‍ट्र में अब्‍दुल करीम तेलगी द्वारा किया सहस्रों करोड रुपयों का ‘बनावटी मुद्रांक (स्‍टैंप पेपर) घोटाला’ बहुत चर्चित हुआ । इस प्रकरण में तेलगी की ‘नार्को’ जांच हुई । उस समय तेलगी ने केंद्र सरकार के तत्‍कालीन कृषिमंत्री शरद पवार और महाराष्‍ट्र के तत्‍कालीन गृहमंत्री छगन भुजबळ का नाम लिया; परंतु धारा १६४ फौजदारी निगरानी नियमानुसार उसने न्‍यायाधीश के सामने ये दोनों नाम नहीं लिए । इस कारण इन नेताआें के विरोध में अभियोग नहीं चला । इस प्रकरण में विधायक अनिल गोटे मात्र कुछ वर्ष कारागृह में थे । तेलगी प्रकरण और ‘बनावटी मुद्रांक घोटाला’ महाराष्‍ट्र और कर्नाटक के अतिरिक्‍त अन्‍य राज्‍यों से भी संबंधित था ।

४ आ. फौजदारी अभियोग चलते समय भी मंत्रीपद पर बने रहनेवाले नेता : ‘वर्ष २०१४ में और २०१९ में भारत के कुछ मुख्‍यमंत्रियों के विरुद्ध लंबित आपराधिक प्रकरणों का ब्‍योरा लिया गया । इस समय देवेंद्र फडणवीस, महबूबा मुफ्‍ती, अमरिंदर सिंह, योगी आदित्‍यनाथ, के.सी. राव, चंद्राबाबू नायडू के विरोध में, साथ ही येडीयुरप्‍पा, मायावती, शशिकला, लालू यादव, मुलायम सिंह यादव, मधु कोडा, सुरेश कलमाडी, इन नेताआें के विरुद्ध फौजदारी अभियोग लंबित थे । महत्त्वपूर्ण बात यह है कि दुर्भाग्‍य से ‘ये सर्व नेता पूरा समय सत्ता में थे ।’ वे लोकतंत्र के एक राज्‍य के मुख्‍यमंत्री के रूप में भी पदभार संभाल रहे थे, ऐसा ब्‍योरा ‘एसोशिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म’ ने दिया है । इतना ही क्‍यों वर्ष २०१९ में जब नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्रीपद का पदभार स्‍वीकारा, उस समय उनके मंत्रीमंडल के ५८ में से २१ मंत्रियों के विरुद्ध फौजदारी अभियोग लंबित थे । महाराष्‍ट्र के अनेक मंत्रियों के विरुद्ध अभियोग लंबित हैं । इसलिए अमरावती के सत्र न्‍यायालय का निर्णय महत्त्वपूर्ण है ।

४ इ. अभियंता से मारपीट करनेवाले मंत्री जितेंद्र आव्‍हाड ! : कुछ मास पूर्व महाराष्‍ट्र के मंत्री जितेंद्र आव्‍हाड के निवासस्‍थान पर धर्माभिमानी अनंत करमुसे ने युवा अभियंता को क्रूरतापूर्वक पीटा । इस प्रकरण में कुछ कर्मचारियों के विरोध में अपराध प्रविष्‍ट कर उनका निलंबन करने के अतिरिक्‍त आगे कुछ नहीं हुआ । आव्‍हाड आज भी मंत्रीपद पर कार्यरत हैं । अमरावती के पुलिसकर्मी और हिन्‍दुत्‍वनिष्‍ठ करमुसे ने विशेषाधिकार हनन से घबराए बिना मंत्रियों के विरोध में फौजदारी अभियोग प्रविष्‍ट किया, इसलिए यह भी प्रशंसनीय है ।

४ ई. केंद्रीय राज्‍यमंत्री दिलीप रे को हाल ही में कोयला खदान घोटाला प्रकरण में न्‍यायालय ने ३ वर्ष का कारावास दिया है । दिलीप रे ने अभी तक अनेक दल बदले हैं और सत्ता के लिए वे भाजपा में भी गए ।

४ उ. हाल ही में बिहार के चुनाव हुए । प्रत्‍येक दल ने आपराधिक पृष्‍ठभूमि के व्‍यक्‍तियों को प्रत्‍याशी बनाया । इनमें तेजस्‍वी यादव सहित ३१ प्रतिशत प्रत्‍याशियों के विरोध में गंभीर अपराध प्रविष्‍ट हैं । बिहार विधानसभा के चुनाव में विजयी हुए २४१ में से ६८ प्रतिशत प्रत्‍याशियों पर फौजदारी अभियोग चल रहे हैं, ऐसी जानकारी सामने आई है । पिछले चुनाव की तुलना में यह संख्‍या १० प्रतिशत अधिक है । ‘एसोसिएट ऑफ डेमोक्रैटिक रिफॉर्म्‍स’ ने इस विषय में जानकारी प्रकाशित की है । २४३ में से २४१ विजयी प्रत्‍याशियों द्वारा घोषित किए प्रतिज्ञापत्रों के आधार पर यह जानकारी दी गई है ।

४ ऊ. हाल ही में बिहार की नवनिर्वाचित सरकार की शपथविधि हुई । इसमें भ्रष्‍टाचार के आरोपों से घिरे मेवालाल चौधरी भी सम्‍मिलित थे । उन्‍होंने शिक्षामंत्री के रूप में पदभार स्‍वीकारने के तीसरे ही दिन ५ वर्षपूर्व हुए शिक्षक और तंत्रज्ञ भरती घोटाले के प्रकरण में उन्‍हें अपना त्‍यागपत्र देना पडा ।

५. राजनीति को अपराधमुक्‍त करें, ऐसा किसी सरकार को नहीं लगता !

भारत की राजनीति सर्वोच्‍च न्‍यायालय के अनुसार कलंकित हो चुकी है । अनेक नेताआें पर भ्रष्‍टाचार अथवा फौजदारी स्‍वरूप के विविध अभियोग सर्वोच्‍च न्‍यायालय में चल रहे हैं और इनकी संख्‍या दिन-प्रतिदिन बढती ही जा रही है । एक बार सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने सरकार और राजनीतिक दलों से पूछा, ‘राजनीतिक दलों की मान्‍यता को क्‍या उनके द्वारा प्रदत्त अथवा घोषित गुंडे प्रवृत्ति के प्रत्‍याशियों से जोड दिया जाए ?’ उस समय सरकार ने संविधान पीठ को बताया, ‘न्‍यायपालिका को इसका अधिकार नहीं; संसद को इसका अधिकार है और न्‍यायालय इसमें हस्‍तक्षेप न करे ।’ इससे यह ध्‍यान में आता है कि ‘राजनीति को अपराधमुक्‍त किया जाए’, ऐसा किसी भी राजनीतिक दल अथवा सरकार को नहीं लगता । सर्वोच्‍च न्‍यायालय कहता है कि गुंडागर्दी अथवा भ्रष्‍टाचारी वृत्ति लोकतंत्र का उलटा सिरा है; इसलिए इसे स्‍थान न दें । ‘इस पूरी स्‍थिति को देखते हुए हिन्‍दू राष्‍ट्र अर्थात रामराज्‍य स्‍थापित हो तथा धर्माधिष्‍ठित राज्‍यव्‍यवस्‍था बने’, ऐसी जनता की प्रबल इच्‍छा है । त्रिकालज्ञानी संतों के सुवचनों के अनुसार, वह दिन दूर नहीं, यही हमारी श्रद्धा और यही हमारा ध्‍येय है ।’ ॐ श्रीकृष्‍णार्पणमस्‍तु !’
– (पू.) अधिवक्‍ता सुरेश कुलकर्णी, संस्‍थापक सदस्‍य, हिन्‍दू विधिज्ञ परिषद तथा अधिवक्‍ता, मुंबई उच्‍च न्‍यायालय. (२३.१०.२०२०)