१. संत भक्तराज महाराजजी के पहले दर्शन
१ अ. अभ्यासवर्ग में संत भक्तराज महाराजजी के दर्शन कराकर परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा ‘संत’ एवं ‘गुरु’ के संदर्भ में सैद्धांतिक भाग सिखाना : ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी हमें अभ्यासवर्ग में अध्यात्म का सैद्धांतिक ज्ञान देते थे और उसका प्रत्यक्ष क्रियान्वयन करने के लिए बताकर साधना करवाते थे । उसके प्रायोगिक भाग के रूप में वे हमें संतों का सत्संग कराते थे, साथ ही हमसे राष्ट्र एवं धर्म के संदर्भ में सेवा भी करवाते थे । वर्ष १९९१ में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के गुरु संत भक्तराज महाराज (इसके आगे धारिका में उनका उल्लेख ‘प.पू. बाबा’ किया गया है ।) का गुरुपूर्णिमा महोत्सव अंबरनाथ (ठाणे, महाराष्ट्र) में था । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की कृपा से हमें पहली बार प.पू. बाबा के दर्शन हुए । तब परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने हमसे पूछा, ‘‘उनके आगमन के उपरांत क्या अनुभव हुआ ? कितने लोगों को अच्छा लगा ? कितने लोगों को कष्ट हुआ ? किसी को अनुभूतियां हुईं ?’’ तत्पश्चात उन्होंने हमें ‘संत’ एवं ‘गुरु’ के संदर्भ में सैद्धांतिक जानकारी दी ।
२. प.पू. बाबा का नित्य नियोजन तथा उसमें होनेवाले परिवर्तन
२ अ. प.पू. बाबा के नित्य कार्यक्रमों से, अभी तक सीखने को न मिले ‘आधुनिक व्यवस्थापन’ के तत्त्व सीखना संभव होना : प.पू. बाबा के नित्य कार्यक्रम तथा उनके रहन-सहन में ‘आधुनिक व्यवस्थापन’ के (‘मॉडर्न मैनेजमेंट’ के) सभी तत्त्व अंतर्भूत होने की बात मेरे ध्यान में आई, उदा. लक्ष्य सुनिश्चित करना, उत्कृष्ट नियोजन करना, अर्थसंकल्प, प्रशासन, समीक्षा करना इत्यादि । मैं अभियांत्रिकी का स्नातक हूं और उसके आगे मैंने व्यवस्थापन की (‘मैनेजमेंट’ की) शिक्षा ली है । मैं एक बडे प्रतिष्ठान में नौकरी भी करता था; परंतु मुझे वहां भी जो सीखने को नहीं मिला, वह सब मुझे प.पू. बाबा के सहज कृत्यों से सीखने को मिला ।
३. मोरटक्का में प.पू. बाबा का भंडारा और वहां प्राप्त अनुभूतियां अर्थात
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा सिखाए गए प्रायोगिक तथा कृतिशील अंग का प्रदर्शन !
साधना के ‘प्रायोगिक एवं कृतिशील’ अंग के रूप में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी अभ्यासवर्ग में आनेवाले साधकों को २५,२६ और २७.१२.१९९१ की अवधि में मोरटक्का, मध्य प्रदेश में आयोजित प.पू. बाबा के भंडारे में लेकर गए ।
३ अ. पहले ही भंडारे में आनंद और चैतन्य की अनुभूति होना : भंडारे में जाने के लिए घर के लोगों का बहुत विरोध होते हुए भी मैं गुरुदेवजी के प्रति श्रद्धा रखकर मोरटक्का गया । ‘प.पू. बाबा का भंडारा तो आनंद और चैतन्य का भंडार है और हमने उसे प्रचुरता से लूटा’, यह अनुभूति हमें पहले ही भंडारे में हुई ।
प.पू. बाबा के भंडारे में देवी-देवता और नर्मदा माता सूक्ष्म से उपस्थित होती थीं ।
भंडारे में परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने स्वयं शारीरिक सेवा की और ‘सेवा कैसे करनी होती है ?’, यह हमें प्रत्यक्ष रूप से दिखाया । ‘ऐसा करते समय स्वयं की आध्यात्मिक उन्नति कैसे करनी है ?’, उन्होंने यह भी बताया ।
३ आ. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा प.पू. बाबा की बातों में निहित आध्यात्मिक अर्थ समझाना : मोरटक्का जाने पर परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने प.पू. बाबा के दर्शन करते हुए उनसे मेरा परिचय करवाया । उस समय प.पू. बाबा कहने लगे, ‘‘आप परीक्षा में उत्तीर्ण हुए ! मैं मुंबई आकर भाषण दूंगा । मुंबई के लोगों को यह समझ में आएगा कि गुरुपूर्णिमा में केवल भोजन का कार्यक्रम नहीं होता । आश्रम एवं गुरुपूर्णिमा सफल होने हेतु मैं वहां आऊंगा । आवश्यक हुआ, तो मैं ईश्वर के साथ झगडा कर आपको सफल बनाऊंगा । आप किसी भिखारी को भी उतना ही महत्त्व दें; क्योंकि वह स्वयं का अहंकार भूलकर भीख मांगता है । कभी-कभी मैं जेब से पैसे निकालकर भिखारी को देना चाहता हूं; किंतु उतने में वह भिखारी अदृश्य हो जाता है । इस प्रकार से संग्रहित पैसे बांटने हैं और उचित समय पर उनका त्याग करना है ।’’
३ इ. प.पू. बाबा का भजन सुनने की इच्छा होना और इसे ध्यान में रखकर परात्पर गुरु डॉक्टरजी द्वारा स्वयं रात के अंधेरे में भजन सुनने के लिए बुलाने के लिए आना : मुझे प.पू. बाबा का भजन सुनने की बहुत इच्छा थी । मैं भजन सुनने के लिए बहुत आतुर था । उस समय मेरे व्यावहारिक जीवन में बहुत समस्याएं आ रही थीं । मुझे इसका भान हुआ कि ‘प.पू. बाबा का भजन ही सभी समस्याओं का एकमात्र उपाय है ।’ भंडारे के दिन रात ९ बजे भजन आरंभ हुआ । आरंभ में उनके भक्त सभागार में भजन गा रहे थे । प.पू. बाबा तब अंदर के कक्ष में कुछ भक्तों के साथ बैठे हुए थे । वे सभागार में भजन गाने के लिए कब आएंगे ?, सभी भक्त इसकी प्रतीक्षा में थे; किंतु रात के १२ बजे तक वे नहीं आए; इसलिए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के बताए अनुसार मैं प.पू. बाबा के आश्रम के निकट स्थित प.पू. श्यामसाईजी के आश्रम में सोने के लिए गया । वहां अनेक साधकों के सोने का प्रबंध था । उस समय कडाके की ठंड थी । मैं एक भारी ओढना लेकर सो गया । उसके लगभग १५ मिनट पश्चात परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी वहां आए और धीरे से मुझे पुकारकर भजन सुनने के लिए ले गए । वे वहां टॉर्च लेकर आए थे और वहां सोए साधकों में अचूकता से उन्होंने मुझे ढूंढकर जगाया । उन पर सभी साधक और प.पू. बाबा की व्यवस्था का दायित्व होते हुए भी ‘मुझे भजन सुनना है’, इसे ध्यान में रखकर वे मुझे स्मरणपूर्वक बुलाने आए थे ।
३ ई. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के कारण ही बहुत निकटता से प.पू. बाबा का भजन सुनने का अवसर मिलना, साथ ही उन्हें निकटता से देखना भी संभव होना : यह प्रसंग मैं जीवन में कभी नहीं भूल पाऊंगा । उस समय मैंने परात्पर गुरु डॉक्टरजी के चरणों में बहुत कृतज्ञता व्यक्त की । हम दोनों के वापस आने तक प.पू. बाबा का भजन सुनने के लिए वह सभागार भक्तों से पूरा भर गया था । तब हमारे सामने अंदर जाने का प्रश्न था । उतने में प.पू. बाबा के एक भक्त ने बताया, ‘‘प.पू. बाबा डॉक्टरजी को (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को) बुला रहे हैं । आप सभागार में शीघ्र जाएं ।’’ उसके कारण हम प.पू. बाबा के पास जा सके । सौभाग्यवश प.पू. बाबा के चरणों के पास थोडी जगह खाली थी । मैंने वहां बैठकर उनका भजन सुना । मुझे प्रत्यक्ष गुरुचरणों में बैठकर भजन सुनना संभव हुआ, साथ ही प्रत्यक्ष भजन गाते समय प.पू. बाबा को निकटता से देखना भी संभव हुआ ।
४. प.पू. बाबा की सहज बातों से भी संकल्प होना
एक बार नासिक जाते समय मैं गाडी चला रहा था और बगल में प.पू. बाबा बैठे थे । गाडी में उनके भजन की कैसेट चलाई जा रही थी जिससे ठीक आवाज नहीं आ रही थी । तब प.पू. बाबा कहने लगे, ‘‘मेरी आवाज ठीक होने पर मैं मुंबई आऊंगा । वहां हम स्टुडियो में भजन का ध्वनिमुद्रण (रेकॉर्डिंग) करेंगे ।’’
उसके उपरांत परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने प.पू. बाबा और प.पू. रामानंद महाराजजी के स्वर में अनेक श्रव्य-चक्रिकाएं और दृश्यश्रव्य-चक्रिकाएं तैयार कीं । उनसे आकाशतत्त्व तथा नादब्रह्म की अनुभूति होती है । इन भजनों से प्रक्षेपित चैतन्य के कारण साधकों को आध्यात्मिक लाभ मिलता है ।
४ अ. पत्नी का विरोध दूर करने के लिए प.पू. बाबा द्वारा दी गई अनुभूति : उस समय मेरे बच्चे शिक्षा ले रहे थे; इसलिए ‘मुझे सबसे पहले बच्चों का और घर का सब देखना चाहिए और इसे ही प्रधानता देनी चाहिए’, यह मेरी पत्नी की इच्छा थी । इसलिए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के अभ्यासवर्ग में जाने तथा उनके साथ अध्यात्मप्रसार के लिए जाने के लिए उनका विरोध था । मेरी पत्नी प.पू. बाबा पर इतना विश्वास नहीं करती थीं । एक दिन सवेरे प.पू. बाबा के दर्शन करने मैं परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के घर गया । मेरी पात्रता न होते हुए भी ‘इतने बडे संतों को घर कैसे बुलाया जा सकता है ?’, ऐसा लगने से मैं उन्हें घर नहीं बुलाता था; परंतु मेरी पत्नी ने प.पू. बाबा को हमारे घर आने का अनुरोध किया । उसके उपरांत सवेरे ८ बजे प.पू. बाबा मुंबई से ठाणे जाने के लिए निकले । जाते समय उन्होंने हमें चेंबूर छोडा और कहा, ‘‘मैं दोपहर तक आपके घर आऊंगा ।’’ तब हमने घर जाकर घर की स्वछता कर उसे व्यवस्थित किया और हम प.पू. बाबा की प्रतीक्षा करने लगे । मेरी पत्नी ने सुनिश्चित किया था, ‘यदि वे सचमुच शिरडी के साईबाबा हैं, तो वे हमारे घर आएंगे ।’
४ आ. प.पू. बाबा द्वारा घर आकर पत्नी की श्रद्धा बढाना : हमने दोपहर २ बजे तक प.पू. बाबा के आने की प्रतीक्षा की । अंत में ‘प.पू. बाबा क्यों नहीं आए ?’, यह पूछने के लिए हमने प.पू. बाबा के ठाणे स्थित भक्त श्री. वणगे से दूरभाष कर पूछा, ‘‘क्या प.पू. बाबा आपके घर आए थे ?; क्योंकि आपके यहां आने के उपरांत वे हमारे घर आनेवाले थे; परंतु वे अभी तक नहीं आए हैं ।’’
उस पर उन्होंने कहा, ‘‘प.पू. बाबा ठाणे से नृसिंहवाडी गए हैं ।’’ मैंने कहा, ‘‘तो अब मैं वहां जाकर देखता हूं ।’’ उन्होंने कहा, ‘‘महाशय, नृसिंहवाडी तो कोल्हापुर के पास यहां से बहुत दूर है । अब आप कहीं भी मत जाईए, इससे कुछ लाभ नहीं होगा ।’’ यह सुनने पर हम दोनों ने भोजन नहीं किया । हमने इसे ‘ईश्वरेच्छा’ मानकर ‘अब प.पू. बाबा घर आएंगे’, यह विचार ही छोड दिया । दोपहर ३ बजे अकस्मात ही घर के बाहर गाडी रुकने की आवाज आई और तब प.पू. बाबा अपने २० – २५ भक्तों के साथ हमारे घर पधारे । वे हमारे लिए पुरणपोळी का महाप्रसाद लेकर आए थे । उन्होंने हमें खाना खिलाया । हम बहुत आनंदित थे । प.पू. बाबा के पुराने भक्तों ने ‘प.पू. बाबा सामान्यतः किसी के घर नहीं जाते और आप नए हैं; इसलिए वे आपके घर नहीं आएंगे ।’’, ऐसा हमें बताया था; परंतु तब भी मेरी पत्नी ने यह सुनिश्चित किया था कि ‘वे यदि साईबाबा हैं, तो हमारे घर अवश्य आएंगे ।’ उसके अनुसार (अंतर्मन से जानकर) गुरु ने हमें इसकी अनुभूति दी ।
५. शरीर से प्रेम न कर तत्त्व से प्रेम करने के लिए बताना
एक बार हम प.पू. बाबा के एक भक्त के घर गए थे । वहां से निकलते समय हम उनके भवन से नीचे उतरे । गाडी में बैठने के लिए प.पू. बाबा सडक पर खडे थे । उस समय उस भक्त ने सडक पर ही प.पू. बाबा को साष्टांग नमस्कार किया । तब बाबा ने उनसे कहा, ‘‘आप नाटक क्यों करते हैं ? शरीर से प्रेम न कर मेरे तत्त्व से प्रेम कीजिए ।’’
६. मन अस्वस्थ होने पर प.पू. बाबा ने भजन गाकर और समझाकर आश्वस्त किया
एक बार नाशिक जाते समय मेरा मन अस्वस्थ था । तब मैं पारिवारिक समस्याओं से बहुत ही ग्रसित था, तभी प.पू. बाबा ने मुझसे पूछा, ‘‘क्या हुआ ?’’ मैंने उन्हें अपनी समस्या बताई । तब उन्होंने निम्नांकित भजनपंक्ति गाई,
मोहब्बत के सासों को दिल दे दिया । मैंने दिल दे दिया ।
इन रिश्तों को मैंने जो तय कर लिया ॥
इस भजन के माध्यम से प.पू. बाबा ने बताया, ‘मैं आपके साथ हूं और इसके आगे भी रहूंगा । आप चिंता मत कीजिए ।’
उसके उपरांत मेरे जीवन में अनेक संकट और दुखद प्रसंग आए; परंतु प.पू. बाबा ने अपने आशीर्वाद के अनुसार मुझे कठिन प्रारब्ध का दंश झेलने नहीं दिया । मैं अपने जीवन में आनेवाली सभी समस्याएं परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को बताता था । उनके आशीर्वचन से परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने मुझ पर आए अनेक शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक संकट दूर किए हैं और उन्होंने अपनी छत्रछाया में मुझे अब तक आनंद में रखा है ।
– (पू.) श्री. शिवाजी वटकर, सनातन आश्रम, देवद. (२३.७.२०१७)