‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ द्वारा ‘यूनिवर्सल ऑरा
स्कैनर (यूएएस)’ उपकरण के माध्यम से किया वैज्ञानिक परीक्षण
‘समाज के अनेक लोगों को अनिष्ट शक्तियों का (आध्यात्मिक) कष्ट होता है । अनिष्ट शक्तियों के कारण व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक कष्ट होते हैं तथा जीवन में अन्य बाधाएं भी आती हैं । अनिष्ट शक्तियों के कष्ट के कारण साधकों की साधना में भी बाधाएं आती हैं; परंतु दुर्भाग्य से अनेक लोग इस कष्ट से अनभिज्ञ होते हैं । आध्यात्मिक कष्ट के निवारण हेतु नामजप-साधना ही प्रभावी उपाय है । आध्यात्मिक कष्ट का निवारण करनेवाले उच्च देवताओं में से एक हैं भगवान दत्तात्रेय । वर्तमान में लगभग कोई भी श्राद्ध-पक्ष इत्यादि धार्मिक कृत्य नहीं करता तथा साधना भी नहीं करता । इसलिए लगभग सभी को पूर्वजों की अतृप्त लिंगदेह के कारण आध्यात्मिक कष्ट होते हैं । भगवान दत्तात्रेय के नामजप से निर्माण होनेवाली शक्ति से नामजप करनेवाले के चारों ओर सुरक्षा-कवच निर्माण होता है । भगवान दत्तात्रेय के नामजप से अतृप्त पूर्वजों को गति मिलती है । इसलिए उनसे व्यक्ति को होनेवाले कष्ट घट जाते हैं ।
कोई भी बात कालानुसार करते हैं, तो उसका अधिक लाभ होता है ‘वर्तमान में कालानुसार देवताओं का तारक और मारक तत्त्व किस प्रकार के नामजप से अधिक मिल सकता है’, इसका अध्यात्मशास्त्र की दृष्टि से अध्ययन कर देवताओं का नामजप ध्वनिमुद्रित किया है । उसके लिए सनातन की ६२ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर की साधिका कु. तेजल पात्रीकर (संगीत समन्वयक, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय) ने परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी के मार्गदर्शन में अनेक प्रयोग किए । उससे ये नामजप बने हैं । भगवान दत्तात्रेय के ‘तारक’ और ‘मारक’ नामजप से व्यक्ति पर होनेवाले परिणाम का विज्ञान के माध्यम से अध्ययन करने के लिए ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ की ओर से एक परीक्षण किया गया । इस परीक्षण के लिए ‘यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर (यूएएस)’ उपकरण का उपयोग किया गया । इस परीक्षण का स्वरूप, की गई गणनाओं की प्रविष्टियां और उनका विवरण आगे दिया है ।
१. परीक्षण का स्वरूप
इस परीक्षण में तीव्र आध्यात्मिक कष्ट (टिप्पणी) से पीडित १ साधिका और तीव्र आध्यात्मिक कष्ट से पीडित १ साधक सम्मिलित थे । इस परीक्षण में आगे दिए अनुसार कुल ६ प्रयोग किए गए ।
टिप्पणी – आध्यात्मिक कष्ट : आध्यात्मिक कष्ट होना आर्थात व्यक्ति में नकारात्मक स्पंदन होना । व्यक्ति में नकारात्मक स्पंदन ५० प्रतिशत अथवा उससे अधिक होना, तीव्र कष्ट का; नकारात्मक स्पंदन ३० से ४९ प्रतिशत होना, मध्यम कष्ट का; तथा ३० प्रतिशत से कम होना, मंद आध्यात्मिक कष्ट का सूचक है । आध्यात्मिक कष्ट प्रारब्ध, पूर्वजों का कष्ट (पितृदोष) इत्यादि आध्यात्मिक स्तर के कारणों से होता है । आध्यात्मिक कष्ट का निदान संत अथवा सूक्ष्म स्पंदन के जानकार साधक कर सकते हैं ।
१ अ. तारक नामजप के ३ प्रयोग : परीक्षण में सम्मिलित साधकों को भगवान दत्तात्रेय का तारक नामजप मंद, मध्यम और ऊंची आवाज में १-१ घंटा सुनाया गया ।
१ आ. मारक नामजप के ३ प्रयोग : परीक्षण में सम्मिलित साधकों को भगवान दत्तात्रेय का मारक नामजप मंद, मध्यम और ऊंची आवाज में १-१ घंटा सुनाया गया ।
प्रत्येक प्रयोग के पूर्व और प्रयोग के पश्चात साधकों की ‘यूएएस’ उपकरण द्वारा की गई गणनाओं की प्रविष्टियां की गई । इन गणनाओं की सभी प्रविष्टियों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया ।
पाठकों को सूचना : स्थान के अभाव में इस लेख में ‘यूएएस’ (‘यूटीएस’) उपकरण का परिचय’, ‘उपकरण द्वारा किए जानेवाले परीक्षण के घटक और उनका विवरण’, ‘घटक का प्रभामंडल नापना’, ‘परीक्षण की पद्धति’ और ‘परीक्षण में समानता लाने के लिए आवश्यक सावधानी’ ये नियमित बिंदु सनातन संस्था के www.sanatan.org/hindi/universal-scanner इस लिंक पर दिए हैं । इस लिंक में कुछ अक्षर कैपिटल (Capital) हैं । |
२. गणनाओं की प्रविष्टियां और उनका विवेचन
२ अ. नकारात्मक ऊर्जा संबंधी गणनाओं की प्रविष्टियों का विवेचन –
भगवान दत्तात्रेय का तारक और मारक नामजप मंद, मध्यम और ऊंची आवाज में सुनने के पश्चात तीव्र आध्यात्मिक कष्ट से पीडित साधकों में नकारात्मक ऊर्जा अत्यधिक घट जाना अथवा नष्ट हो जाना : प्रयोग के पूर्व दोनों साधकों में ‘इन्फ्रारेड’ और ‘अल्ट्रावॉयलेट’ नकारात्मक ऊर्जा बडी मात्रा में थी । उनका प्रभामंडल लगभग ६ से ८ मीटर था । प्रयोग के पश्चात ये ‘इन्फ्रारेड’ नकारात्मक ऊर्जा अत्यधिक घट गई अथवा नष्ट हो गई (टिप्पणी १ से ३ देखें) और ‘अल्ट्रावायोलेट’ नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो गई ।
टिप्पणी १ – मध्यम आवाज में किए तारक नामजप के प्रयोग के पश्चात साधिका में थोडी मात्रा में ‘इन्फ्रारेड’ नकारात्मक ऊर्जा थी; परंतु उसका प्रभामंडल नहीं था । उस समय स्कैनर ने ९० अंश का कोण बनाया । स्कैनर १८० अंश का कोण बनाए, तो ही प्रभामंडल नाप सकते हैं ।
टिप्पणी २ – मंद आवाज में किए मारक नामजप के प्रयोग के पश्चात साधक की ‘इन्फ्रारेड’ नकारात्मक ऊर्जा अत्यधिक घट गर्ई । उसका प्रभामंडल ०.९१ मीटर था ।
टिप्पणी ३ – ऊंची आवाज में किए मारक नामजप के प्रयोग के पश्चात साधक में कुछ मात्रा में ‘इन्फ्रारेड’ नकारात्मक ऊर्जा थी; परंतु उसका प्रभामंडल नहीं था । उस समय स्कैनर ने ९० अंश का कोण बनाया ।
२ आ. सकारात्मक ऊर्जा संबंधी गणनाओं की प्रविष्टियों का विवेचन : सभी व्यक्ति, वास्तु अथवा वस्तुओं में सकारात्मक ऊर्जा नहीं पाई जाती ।
२ आ १. भगवान दत्तात्रेय का तारक नामजप सुनने के पश्चात तीव्र आध्यात्मिक कष्ट से पीडित साधकों की सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि होना
उपर्युक्त सारणी से निम्नांकित सूत्र ध्यान में आते हैं ।
१. साधिका को मध्यम आवाज में किया तारक नामजप सुनने पर सर्वाधिक लाभ हुआ ।
२. साधक को मंद आवाज में किया तारक नामजप सुनने पर सर्वाधिक लाभ हुआ ।
२ आ २. भगवान दत्तात्रेय का मारक नामजप सुनने के पश्चात तीव्र आध्यात्मिक कष्ट से पीडित साधकों की सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि होना
उपर्युक्त सारणी से ध्यान में आता है कि दोनों साधकों को मंद, मध्यम और ऊंची आवाज में किए नामजप से उत्तरोत्तर अधिक लाभ हुआ ।
उपर्युक्त सभी सूत्रों के तुलनात्मक अध्ययन से ध्यान में आता है कि दोनों साधकों को मारक नामजप की तुलना में तारक नामजप से अधिक लाभ हुआ ।
२ इ. कुल प्रभामंडल (टिप्पणी) संबंधी गणनाओं की प्रविष्टियों का विवेचन : सामान्य व्यक्ति अथवा वस्तु का कुल प्रभामंडल लगभग १ मीटर होता है ।
टिप्पणी – कुल प्रभामंडल (ऑरा) : व्यक्ति के संदर्भ में उसकी लार, तथा वस्तु के संदर्भ में उसपर लगे धूलीकण अथवा उसके थोडे से भाग को ‘नमूने’ के रूप में उपयोग कर उस व्यक्ति अथवा वस्तु का ‘कुल प्रभामंडल’ नापते हैं ।
२ इ १. भगवान दत्तात्रेय का तारक नामजप सुनने के पश्चात तीव्र आध्यात्मिक कष्ट से पीडित साधकों का कुल प्रभामंडल घट जाना
२ इ २. भगवान दत्तात्रेय का मारक नामजप सुनने के पश्चात तीव्र आध्यात्मिक कष्ट से पीडित साधकों का कुल प्रभामंडल घट जाना
२ इ ३. भगवान दत्तात्रेय का तारक और मारक नामजप सुनने के पश्चात तीव्र आध्यात्मिक कष्ट से पीडित साधकों का कुल प्रभामंडल यद्यपि कुछ मात्रा में घटा,तब भी वह गुणात्मक दृष्टि से सकारात्मक होना : आरंभ में (तारक और मारक नामजप सुनने के पूर्व) दोनों साधकों के कुल प्रभामंडल में सकारात्मक स्पंदनों की अपेक्षा नकारात्मक स्पंदनों की मात्रा अधिक होती है । तारक और मारक नामजप सुनने के पश्चात दोनों साधकों के कुल प्रभामंडल में नकारात्मक स्पंदन नगण्य होकर सकारात्मक स्पंदन बढ गए । इससे उनका कुल प्रभामंडल पहले की तुलना में यद्यपि थोडा घट गया, तब भी उससे बहुत सकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित होने के कारण वह गुणात्मक दृष्टि से सकारात्मक है ।
उपर्युक्त सभी सूत्रों के संदर्भ में अध्यात्मशास्त्रीय विश्लेषण ‘सूत्र ३’ में दिया है ।
३. गणनाओं की प्रविष्टियों का अध्यात्मशास्त्रीय विश्लेषण
३ अ. देवता के ‘तारक’ और ‘मारक’ नामजप का महत्त्व : देवता के दो रूप होते हैं – तारक और मारक । भक्त को आशीर्वाद देनेवाला देवता का रूप देवता का तारक रूप होता है, उदा. आशीर्वाद की मुद्रा में श्रीकृष्ण । असुरों का संहार करनेवाला देवता का रूप अर्थात देवता का मारक रूप, उदा. शिशुपाल पर सुदर्शनचक्र चलानेवाले श्रीकृष्ण । देवता के तारक अथवा मारक रूप से संबंधित नामजप ही देवता का तारक अथवा मारक नामजप है । देवता के प्रति सात्त्विक भाव उत्पन्न होने के लिए, तथा चैतन्य, आनंद और शांति की अनुभूति शीघ्र होने के लिए और अनिष्ट शक्तियों से रक्षा होने के लिए देवता के तारक रूप का नामजप आवश्यक होता है । देवता से शक्ति और चैतन्य ग्रहण होने के लिए और अनिष्ट शक्तियों का नाश करने के लिए देवता के मारक रूप का नामजप आवश्यक होता है ।
३ आ. भगवान दत्तात्रेय के तारक और मारक नामजप से प्रक्षेपित चैतन्य के कारण परीक्षण में सम्मिलित दोनों साधकों को आध्यात्मिक लाभ होना : परीक्षण में सम्मिलित दोनों साधकों को अनिष्ट शक्तियों का कष्ट और अतृप्त पूर्वजों का कष्ट अर्थात पितृदोष है । प्रयोगों के आरंभ में दोनों साधकों में ‘इन्फ्रारेड’ और ‘अल्ट्रावॉयलेट’, दोनों प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा बडी मात्रा में पाई गई । (‘इन्फ्रारेड’ नकारात्मक ऊर्जा व्यक्ति के चारों ओर छाया काला आवरण दर्शाती है, तथा ‘अल्ट्रावॉयलेट’ नकारात्मक ऊर्जा व्यक्ति के शरीर में अनिष्ट शक्तियों द्वारा संग्रहित कष्टदायक शक्ति दर्शाती है ।) साधकों में सकारात्मक ऊर्जा भी थी । भगवान दत्तात्रेय के तारक और मारक नामजप से प्रक्षेपित चैतन्य, साधकों ने उनकी क्षमतानुसार ग्रहण किया । इस कारण उनकी नकारात्मक ऊर्जा अत्यधिक घट गई अथवा नष्ट हो गई और उनकी सकारात्मक ऊर्जा में बहुत वृद्धि हुई ।
३ इ. भगवान दत्तात्रेय के मारक नामजप की तुलना में तारक नामजप का दोनों साधकों पर अधिक सकारात्मक परिणाम होना : व्यक्ति अपनी प्रकृति अनुसार देवता का तारक या मारक नामजप करे, तो उसे देवता के तत्त्व का अधिक लाभ होता है । ‘तारक’ या ‘मारक’ प्रकृति के साधकों में उनकी प्रकृति के अनुरूप लक्षण पाए जाते हैं । उदा. तारक प्रकृति के साधक में भावपूर्ण व धीमी आवाज में नामजप करना, दी गई सेवा एकमार्ग से भावपूर्ण करते रहना आदि लक्षण पाए जाते हैं । इसके विपरीत मारक प्रकृति के साधक में आवेश (क्षात्रभाव) से नामजप करना, समष्टि में (सभी के सामने) क्षात्रवृत्ति से बोलना या मार्गदर्शन करना आदि लक्षण पाए जाते हैं । परीक्षण में सम्मिलित साधकों को भगवान दत्तात्रेय के मारक नामजप की तुलना में तारक नामजप से अधिक लाभ होना, यह इस बात का सूचक है कि उन्हें उनकी प्रकृतिनुसार लाभ हो रहा है ।
३ ई. साधिका को मध्यम आवाज में किया तारक नामजप सुनने पर सर्वाधिक लाभ होना, तथा साधक को मंद आवाज में किया तारक नामजप सुनने पर सर्वाधिक लाभ होना : मंद आवाज में किया नामजप सत्त्वप्रधान, मध्यम आवाज में किया नामजप सत्त्व-रजप्रधान, तथा ऊंची आवाज में किया नामजप रज-सत्त्वप्रधान है । परीक्षण में सम्मिलित दोनों साधकों को उनकी प्रकृति और उनकी आवश्यकता के अनुसार उस उस आवाज में किए नामजप से अधिक लाभ हुआ ।
३ उ. मारक नामजप के प्रयोग में परीक्षण में सम्मिलित दोनों साधकों को ऊंची आवाज में किए नामजप से अधिक लाभ होना : देवता के मारक नामजप से देवता के शक्ति के स्पंदन मिलते हैं । अनिष्ट शक्तियों की पीडा के निवारण हेतु मारक नामजप ऊंची आवाज में करना लाभदायी होता है । ऊंची आवाज में नामजप करने से देवता के शक्ति के स्पंदन व्यक्ति को मिलते हैं, जिससे उसके नकारात्मक स्पंदन अल्पावधि में घट जाते हैं अथवा नष्ट हो जाते हैं, तथा उसके सकारात्मक स्पंदनों में वृद्धि होती है । इसी का प्रत्यय परीक्षण में सम्मिलित साधकों को सुनाए गए भगवान दत्तात्रेय के मारक नामजप के प्रयोगों के समय हुआ उन्हें मंद, मध्यम व ऊंची आवाज में किए मारक नामजप सुनने से उत्तरोत्तर अधिक लाभ हुआ; परंतु ऊंची आवाज में किए नामजप से सर्वाधिक हुआ ।
३ ऊ. तारक और मारक नामजप सुनने के पश्चात परीक्षण में सम्मिलित दोनों साधकों का कुल प्रभामंडल यद्यपि थोडा घट गया, तब भी गुणात्मक दृष्टि से वह सकारात्मक होना : प्रयोगों के पूर्व दोनों साधकों का कुल प्रभामंडल लगभग ९ से १० मीटर था; अर्थात सामान्य व्यक्ति की तुलना में बहुत अधिक था ।
उनके कुल प्रभामंडल में सकारात्मक स्पंदनों की अपेक्षा नकारात्मक स्पंदन अधिक होने के कारण उनसे वातावरण में अधिक नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित हो रहे थे । प्रयोगों के पश्चात उनका कुल प्रभामंडल लगभग ७ से ८ मीटर हुआ; अर्थात लगभग २ मीटर घट गया । इसका कारण यह है कि प्रयोगों के पश्चात उनके नकारात्मक स्पंदन अत्यल्प अथवा नष्ट होकर उनके सकारात्मक स्पंदनों में वृद्धि हुई । इससे उनके कुल प्रभामंडल से वातावरण में बहुत सकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित हुए इससे प्रयोग के पश्चात उनका कुल प्रभामंडल भले ही २ मीटर घट गया, तो भी वह गुणात्मक दृष्टि से सकारात्मक है ।
४. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का नामजप संबंधी संकल्प
विश्व के साधकों के आध्यात्मिक कष्ट शीघ्र दूर हों, तथा उन्हें देवताओं के तत्त्व का अधिकाधिक लाभ हो, इस हेतु परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने कालानुसार नामजपों की निर्मिति करवा ली है । इसमें उनका अप्रत्यक्ष संकल्प ही कार्यरत होने से इन नामजपों के अनुसार साधक नामजप करें तो उनके कष्ट दूर होने में, तथा उन्हें देवताओं के तत्त्वों का लाभ होने में निश्चित ही सहायता होगी ।’
– श्रीमती मधुरा धनंजय कर्वे, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (६.९.२०२०)
इ-मेल : [email protected]