मणिपुर शासन के पाठ्यक्रम में संस्कृत भाषा को अंतर्भूत करने के लिए छात्र संगठन ने दर्शाया विरोध

इससे देवभाषा संस्कृत का महत्त्व जाने बिना उसका विरोध करनेवाले छात्र संगठन का हिन्दूद्वेष ही दिखाई देता है !

गौहत्ती – मणिपुर के एक छात्र संगठन ने मणिपुर की भाजपा सरकार द्वारा राज्य के कुछ चुनिंदा विद्यालय-महाविद्यालयों के पाठ्यक्रम में संस्कृत का परिचय कराने के लिए गए निर्णय का विरोध किया है । १९ नवंबर को कंगपोकपी जनपद में स्थित सनातन संस्कृत विद्यालय के अवलोकन के समय मणिपुर राज्य के शिक्षामंत्री एस्. राजेन ने सरकार की योजना के संदर्भ में पत्रकारों को बताया कि मणिपुर विश्वविद्यालय इस विभाग के लिए अलग विभाग आरंभ करनेपर विचार कर रही है ।

‘मणिपुर स्टूडेंट्स एसोसिएशन देहली ’ (एम्.एस्.ए.डी.) नाम के छात्र संगठन ने इस निर्णय को ‘संघप्रणित मणिपुर सरकार की वृत्ति’ कहा है । संगठन द्वारा प्रसारित एक ज्ञापन में कहा गया है कि ‘स्थानीय लोगों की मातृभाषा में मणिपुर के छात्रों को सिखाए जानेवाले संस्कृत ग्रंथों में निहित एक शब्द भी नहीं मिलता। द्वेष, अस्पृश्यता, लैंगिकता, वर्चस्वपर आधारित संस्कृत भाषा थोपने का प्रयास कर सरकार अपनी मूर्खता का प्रदर्शन कर रही है । (इससे देवभाषा संस्कृत का विरोध करनेवालों का अज्ञान और मूर्खता ही ध्यान में आती है ! – संपादक) मणिपुर के विरुद्ध भारतीय उपनिवेशवाद की प्रक्रिया को आगे बढाने के लिए मणिपुर के लोगों को शैक्षिक और भाषिक दृष्टि से गुलाम बनाने का यह प्रयास है । आदिवासियोंपर विदेशी भाषा थोपना पूरी तरह से उपनिवेशवाद का लक्षण है । (स्वयं को भारत से अलग माननेवाले, अपितु अपने ज्ञापन से लोगों को उस प्रकार संदेश देनेवाले इस संगठनपर वास्तव में प्रतिबंध लगाने की ही आवश्यकता है ! – संपादक)