(कहते हैं) ‘धार्मिक कट्टरता और आक्रामक राष्ट्रवाद कोरोना से भी अधिक गंभीर !’

पूर्व उपराष्ट्रपति हमिद अन्सारी के फूफकार !

  • धार्मिक कट्टरता हिन्दुओं ने नहीं, अपितु स्वतंत्रता के पूर्व से धर्मांधों ने ही अपनाई है और वे अभी भी अपना रहे हैं । उनके कारण ही देश का विभाजन हुआ है और कश्मीर से हिन्दुओं का वंशसंहार होकर उन्हें पलायन करना पडा है । आज भी देश में धर्मांधों द्वारा हिन्दुओंपर आक्रमण हो ही रहे हैं । यह वास्तविकता है और उसके विरुद्ध अब हिन्दू जागृत हो रहे हैं, उसे आक्रामक राष्ट्रवाद करना तो रोना है(ये ऐसे ही है या कुछ और है) यह इससे ध्यान में आता है !
  • अन्सारी को इस बात का सदैव ध्यान रखना चाहिए कि इस देश में अभीतक जो कुछ भी धर्मनिरपेक्षता टिकी हुई है, वह हिन्दुओं के कारण है । हिन्दू यदि कट्टरतावादी होते, तो यह देश कब का ‘हिन्दू राष्ट्र’ घोषित हुआ होता और जैसे इस्लामी देश में किया जाता है, वैसे इस देश से अल्पसंख्यकों को कब का सीमापार किया जाता; परंतु हिन्दू वैसे न होने के कारण ही वे आज भी श्रीराम मंदिर, श्रीकृष्णजन्मभूमि और ज्ञानवापी मस्जिद के लिए वैधानिक पद्धति से संघर्ष कर रहे हैं !
पूर्व उपराष्ट्रपति हमिन अन्सारी

नई दिल्ली – पूर्व उपराष्ट्रपति हमिन अन्सारी ने ऐसा प्रतिपादित किया है कि कोरोना महामारी से पूर्व ही भारतीय समाज धार्मिक कट्टरता और आक्रामकराष्ट्रवाद जैसे कोरोना से भी भयंकर बीमारी से ग्रस्त हुआ है । कांग्रेस के नेता शशि थरूर की नई पुस्तक ‘द बॅटल ऑफ बिलौन्गिंग’के डिजिटल लोकार्पण समारोह में वे ऐसा बोल रहे थे ।

अन्सारी ने आगे कहा कि,

१. आज देश ऐसे ‘प्रकट और अप्रकट’ विचारधारा के कारण संकट में दिखाई दे रहा है । ‘हम और वे’ के काल्पनिक सूत्र के आधारपर कुछ लोग इस देश को विभाजित करने का प्रयास कर रहे हैं । (देश को विभाजित करने का पाप हिन्दुओं ने नहीं, अपितु कट्टरतावादी मुसलमानों ने पाकिस्तान बनाकर पहले ही किया है । अन्सारी उसके संदर्भ में अपना मुंह क्यों नहीं खोलते ? – संपादक)

२. धार्मिक कट्टरता और आक्रामक राष्ट्रवाद इन दोनों की तुलना में ‘देशप्रेम’ अधिक सकारात्मक संकल्पना है; क्योंकि सेना और सांस्कृतिक रूप में संरक्षणात्मक है । (यदि ऐसा है, तो कितने देशप्रेमी अल्पसंख्यक लोग जब देशपर आघात होते हैं, तब देश के साथ दृढता के साथ खडे होते हैं ? इसके विपरीत जिहादी आतंकवाद फैलानेवाले कितने अल्पसंख्यक देशद्रोही हैं, यह अन्सारी क्यों नहीं बताते ? – संपादक)

३. ४ वर्षों की अल्प अवधि में भारत ने एक उदार राष्ट्रवाद के दृष्टिकोण से सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के राजनीतिक गृहितक तक(स्पष्ट नही हुआ) यात्रा की है । (विगत ७० वर्षों में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के साथ जो अन्याय हुआ है, उसे अब दूर किया जा रहा है; इसलिए अन्सारी को उदरशूल तो होगा ही ! – संपादक)

(कहते हैं ) ‘वर्ष १९४७ में हम द्विराष्ट्रवाद को अस्वीकार कर पाकिस्तान में नहीं गए !’ – फारुख अब्दुल्ला

द्विराष्ट्रवाद का अस्वीकार करने के लिए नहीं, अपितु नेहरू द्वारा पाकिस्तान को कश्मीर उपहार में दिए जाने से अब्दुल्ला परिवार पाकिस्तान नहीं दिया, यह सत्य है; परंतु स्वयं को भारतीय दिखाने के लिए अब्दुल्ला झूठ बोल रहे हैं, यही ध्यान में आता है !

फारुख अब्दुल्ला

इस कार्यक्रम के समय जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला उपस्थित थे । उन्होंने कहा कि वर्ष १९४७ में हमारे पास पाकिस्तान जाने का अवसर था; परंतु तब मेरे पिता ने यह विचार किया कि २ राष्ट्रों का सिद्धांत हमारे लिए उचित नहीं है । हमें देश की ओर जिस दृष्टि से देखने की इच्छा है, वह वर्तमान सरकार को कभी नहीं स्वीकार्य होगी ।