पूर्व उपराष्ट्रपति हमिद अन्सारी के फूफकार !
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नई दिल्ली – पूर्व उपराष्ट्रपति हमिन अन्सारी ने ऐसा प्रतिपादित किया है कि कोरोना महामारी से पूर्व ही भारतीय समाज धार्मिक कट्टरता और आक्रामकराष्ट्रवाद जैसे कोरोना से भी भयंकर बीमारी से ग्रस्त हुआ है । कांग्रेस के नेता शशि थरूर की नई पुस्तक ‘द बॅटल ऑफ बिलौन्गिंग’के डिजिटल लोकार्पण समारोह में वे ऐसा बोल रहे थे ।
अन्सारी ने आगे कहा कि,
१. आज देश ऐसे ‘प्रकट और अप्रकट’ विचारधारा के कारण संकट में दिखाई दे रहा है । ‘हम और वे’ के काल्पनिक सूत्र के आधारपर कुछ लोग इस देश को विभाजित करने का प्रयास कर रहे हैं । (देश को विभाजित करने का पाप हिन्दुओं ने नहीं, अपितु कट्टरतावादी मुसलमानों ने पाकिस्तान बनाकर पहले ही किया है । अन्सारी उसके संदर्भ में अपना मुंह क्यों नहीं खोलते ? – संपादक)
हामिद अंसारी ने कहा, "कोरोना से पहले ही ‘धार्मिक कट्टरता’ और ‘आक्रामक राष्ट्रवाद’ की महामारी का शिकार हुआ देश"https://t.co/9eWuON2PPv
— NDTV India (@ndtvindia) November 21, 2020
२. धार्मिक कट्टरता और आक्रामक राष्ट्रवाद इन दोनों की तुलना में ‘देशप्रेम’ अधिक सकारात्मक संकल्पना है; क्योंकि सेना और सांस्कृतिक रूप में संरक्षणात्मक है । (यदि ऐसा है, तो कितने देशप्रेमी अल्पसंख्यक लोग जब देशपर आघात होते हैं, तब देश के साथ दृढता के साथ खडे होते हैं ? इसके विपरीत जिहादी आतंकवाद फैलानेवाले कितने अल्पसंख्यक देशद्रोही हैं, यह अन्सारी क्यों नहीं बताते ? – संपादक)
३. ४ वर्षों की अल्प अवधि में भारत ने एक उदार राष्ट्रवाद के दृष्टिकोण से सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के राजनीतिक गृहितक तक(स्पष्ट नही हुआ) यात्रा की है । (विगत ७० वर्षों में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के साथ जो अन्याय हुआ है, उसे अब दूर किया जा रहा है; इसलिए अन्सारी को उदरशूल तो होगा ही ! – संपादक)
हामिद अंसारी ने फिर टांग उपर की है. इस आधुनिक जिन्ना का असल स्वरुप हमने देश को तब ही बता दिया था जब ये उपराष्ट्रपति जैसे गौरवशाली पद की गरिमा गिरा रहा था.
ये इस्लामिक कट्टरवाद से नहीं बल्कि राष्ट्रवाद से डरता है. इसके पूरे कार्यकाल की जाँच हो.. #HamidAnsari #HamidAnsariJawabdo
— Suresh Chavhanke “Sudarshan News” (@SureshChavhanke) November 21, 2020
(कहते हैं ) ‘वर्ष १९४७ में हम द्विराष्ट्रवाद को अस्वीकार कर पाकिस्तान में नहीं गए !’ – फारुख अब्दुल्लाद्विराष्ट्रवाद का अस्वीकार करने के लिए नहीं, अपितु नेहरू द्वारा पाकिस्तान को कश्मीर उपहार में दिए जाने से अब्दुल्ला परिवार पाकिस्तान नहीं दिया, यह सत्य है; परंतु स्वयं को भारतीय दिखाने के लिए अब्दुल्ला झूठ बोल रहे हैं, यही ध्यान में आता है ! इस कार्यक्रम के समय जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला उपस्थित थे । उन्होंने कहा कि वर्ष १९४७ में हमारे पास पाकिस्तान जाने का अवसर था; परंतु तब मेरे पिता ने यह विचार किया कि २ राष्ट्रों का सिद्धांत हमारे लिए उचित नहीं है । हमें देश की ओर जिस दृष्टि से देखने की इच्छा है, वह वर्तमान सरकार को कभी नहीं स्वीकार्य होगी । |