शरीर को उबटन लगाने की पद्धति

स्‍वयं को उबटन लगाना

१. माथा (भालप्रदेश) : माथे पर स्‍वयं लगाते समय बीचवाली तीन उंगलियों का उपयोग कर बाईं ओर से दायीं ओर लगाते जाएं ।

२. माथे के दोनों छोर में भौंहों के निकट : यहां लगाते समय उंगलियों के अग्रभागों से बाईं ओर से दायीं ओर (नीचे से ऊपर की दिशा में) तथा दायीं ओर से बाईं ओर (ऊपर से नीचे की दिशा में) हलके हाथ से लगाएं ।

३. नाक : इसमें लगाते समय दाएं हाथ के अंगूठे और तर्जनी से नाक के दोनों ओर से नीचे की दिशा में उतरते आएं और नीचे आने पर उबटन की सुगंध लें । उबटन से प्रक्षेपित तेज संबंधी सुगंध फेफडों के वायुकोष में जाने से वहां का काला आवरण नष्‍ट होने में सहायता मिलती है ।

४. मुख का ऊपरी भाग : इस भाग से अर्थात नाक के नीचे से बीच की तीन उंगलियां रखकर आरंभ कर घडी के कांटों की दिशा में मुख के सर्व ओर गोल, अर्थात ठुड्डी के निचले भाग से अपनी ओर जाकर मुख के सर्व ओर का गोल पूर्ण करें ।

५. दोनों कान : कानों को हाथ से पकडकर, कानों के पीछे केवल अंगूठा रखकर नीचे से ऊपर की दिशा में घुमाएं ।

६. गरदन : गरदन के पीछे से मध्‍यभाग से दोनों हाथों की उंगलियां आगे विशुद्ध चक्र की ओर लाएं ।

७. छाती और पेट का मध्‍यभाग : दाईं हथेली से छाती की मध्‍यरेखा पर नीचे की दिशा में नाभि की ओर हाथ घुमाते हुए लाएं ।

८. कांख से कटि (कमर) तक : कांख से पितृतीर्थ समान हाथ, अर्थात अंगूठा एक ओर और चार उंगलियां दूसरी ओर रखकर शरीर के दोनों छोर की रेखा पर ऊपर से नीचे, इस पद्धति से घुमाएं ।

९. हाथ और पैर : हाथ की उंगलियां घुमाते हुए पैरों और हाथों पर ऊपर से नीचे की दिशा में उबटन लगाएं ।

१०. सिर के मध्‍यभाग पर : मध्‍यभाग पर तेल लगाकर वह हाथ से घडी के कांटे समान घुमाएं ।

– श्रीचित्‌शक्‍ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी