१. भौतिक दुष्परिणाम : बाण समान पटाखों के कारण घासफूस की झोपडी, घांस का ढेर जल जाना ।
२. प्रदूषण : ध्वनि एवं वायु का प्रदूषण तथा प्रदूषण से होनेवाले विविध रोग ।
३. शारीरिक हानि : ध्वनि प्रदूषण से बहरापन, पटाखे जलाते समय जलना, पटाखे बनाने के कारखानों में विस्फोट से अनेक लोगों का जलकर मरना इत्यादि । इसी प्रकार, पटाखों के कारखानों में काम करनेवाले श्रमिकों का रासायनिक द्रव्यों के कारण स्वास्थ्य बिगडना ।
४. आर्थिक दुष्परिणाम : देश के दिवालिया होते हुए भी प्रतिवर्ष करोडों रुपए (के पटाखे) जलाना पाप ही है ।
५. आध्यात्मिक दुष्परिणाम : भजन, आरती अथवा सात्त्विक नाद से अच्छी शक्ति एवं देवताओं का आगमन होता है, अपितु पटाखे और तामसिक आधुनिक संगीत के कारण आसुरी शक्तियां आकर्षित होती हैं । मनुष्य पर आसुरी शक्तियों के तमोगुण का परिणाम होता है और उसकी वृत्ति भी तामसिक बनती है ।
६. भारत की भयानक वर्तमान स्थिति : जब २० प्रतिशत जनता को दो जून का भोजन नहीं मिलता, पीने का पानी नहीं मिलता, खेती के लिए पानी कम पड रहा हो, कुपोषण की समस्या हो, २४-३० प्रतिशत निरक्षर हो, औषधोपचार सुविधा का अभाव हो, तब क्या पटाखे जलाना उचित है ?
इतने हानिकारक पटाखे जलाकर करोडों रुपए नष्ट करने में कौन-सी बुद्धिमानी है ?