१. अध्यात्मशास्त्र की दृष्टि से देवता के नामजप का उच्चारण योग्य होना क्यों आवश्यक है ?
देवता की विविध उपासना-पद्धतियों में कलियुग की सबसे सरल उपासना है ‘देवता का नामजप करना’ । देवता के प्रति मन में बहुत भाव उत्पन्न होने के उपरांत देवता का नाम कैसे भी लिया गया, तो चलता है; परंतु सामान्य साधक में इतना भाव नहीं होता । इसके लिए देवता के नामजप से तत्त्व का अधिक लाभ मिलने हेतु अध्यात्मशास्त्र की दृष्टि से नामजप का उच्चारण उचित होना आवश्यक है ।
२. देवता के ‘तारक’ एवं ‘मारक’ नामजप का महत्त्व
देवता के २ रूप होते हैं – तारक एवं मारक । भक्त को आशीर्वाद देनेवाला देवता का रूप है तारक रूप, उदा. आशीर्वाद की मुद्रा में श्रीकृष्ण ! असुरों का संहार करनेवाले देवता का रूप है मारक रूप, उदा. शिशुपाल पर सुदर्शनचक्र छोडनेवाले श्रीकृष्ण । देवता के तारक अथवा मारक रूप से संबंधित नामजप होता है तारक अथवा मारक नामजप ! देवता के प्रति सात्त्विक भाव उत्पन्न होने, साथ ही चैतन्य, आनंद एवं शांति की शीघ्र अनुभूति होने तथा अनिष्ट शक्तियों से रक्षा होने हेतु देवता के तारक रूप का नामजप आवश्यक होता है । देवता की ओर से शक्ति एवं चैतन्य ग्रहण होने तथा अनिष्ट शक्तियों के निर्दालन हेतु देवता के मारक रूप का नामजप आवश्यक होता है ।
भावपूर्ण एवं लगन से किए गए नामजप के कारण अनिष्ट शक्तियों के कष्ट का निवारण हो सकता है । अनेक लोगों को यह ज्ञात न होने से वे अनिष्ट शक्तियों के कष्ट के निवारण हेतु भगत अथवा तांत्रिक के पास जाते हैं । तांत्रिक द्वारा किए जानेवाले उपाय तात्कालिक होते हैं; इसके कारण अनिष्ट शक्तियां कुछ समय पश्चात व्यक्ति को पुनः कष्ट पहुंचाना आरंभ करती हैं । साथ ही तांत्रिक के द्वारा धोखाधडी भी किए जाने की संभावना होती है । इसलिए अनिष्ट शक्तियों के कष्ट दूर होने हेतु नामजप उपयुक्त है ।
३. साधक की ‘तारक’, ‘मारक’ एवं ‘तारक-मारक’ प्रकृति
३ अ. ‘तारक’ प्रकृतिवाले साधक के कुछ लक्षण
३ अ १. तारक साधना करनेवाला : भावपूर्ण एवं धीमी आवाज में नामजप करना, दी गई सेवा एकमार्ग से भावपूर्ण पद्धति से करते रहना इत्यादि
३ अ २. व्यष्टि साधना करनेवाला (व्यक्तिगत साधना करनेवाला) : वयस्क साधक, बीमार साधक अथवा सेवा के लिए बाहर न जा सकनेवाला साधक घर अथवा आश्रम में रहकर नामजप करना अथवा यथासंभव सेवा करना इत्यादि ।
३ आ. ‘मारक’ प्रकृतिवाले साधक के कुछ लक्षण
३ आ १. मारक साधना करनेवाला : आवेश के साथ नामजप करना, समष्टि में (सभी के सामने) स्पष्टता से बोलना अथवा मार्गदर्शन करना, साधकों को उनकी चूकें बताकर उनमें सुधार लाना, साधकों द्वारा होनेवाली चूकों के लिए उन्हें प्रायश्चित करने को कहना, स्वयं को अनिष्ट शक्तियों का कष्ट होते हुए भी उसके साथ लडकर सेवा अथवा साधना करना इत्यादि ।
३ आ २. समष्टि साधना करनेवाला (समाज की आध्यात्मिक उन्नति हेतु कार्य करनेवाला) : प्रधानता लेकर सेवा करना, अनेक साधकों से सेवा करवाना, समाज में अध्यात्मप्रसार करना, धर्मसभाएं करना, स्वभावदोष एवं अहं-निर्मूलन प्रक्रिया करनेेवाले साधकों के सत्संग लेकर उनका मार्गदर्शन करना इत्यादि ।
३ इ. ‘तारक-मारक’ प्रकृतिवाले साधक के लक्षण : तारक एवं मारक, इन दोनों प्रकृति का मिश्रण है ‘तारक-मारक’ प्रकृति ! ऐसी प्रकृति से युक्त साधक में सूत्र ‘३ अ’ एवं ‘३ आ’ में दिए गए लक्षणों में से थोडे-थोडे लक्षण दिखाई देते हैं ।
४. साधक को स्वयं की प्रकृति के अनुसार देवता का ‘तारक’ अथवा ‘मारक’ नामजप करना महत्त्वपूर्ण
साधक ने स्वयं की प्रकृति के अनुसार देवता का तारक अथवा मारक नामजप किया, तो उसे उस देवता के तत्त्व का अधिक लाभ मिलता है । ऊपर दिए गए ‘तारक’ एवं ‘मारक’ प्रकृतिवाले साधकों में विद्यमान लक्षणों से ‘स्वयं की प्रकृति कौन सी है ?’, यह सुनिश्चित करें एवं उसके अनुसार तारक अथवा मारक नामजप करें । ‘तारक-मारक’ प्रकृतिवाले साधक तारक एवं मारक दोनों नामजप कुछ समय कर देखें तथा ‘जिस नामजप में मन अधिक लगता है’, वह नामजप करें । जो नामजप अथवा साधना नहीं करते हों, वे भी कुछ समय तक तारक एवं मारक दोनों नामजप करके देखें और उनमें से जो नामजप अच्छा लगे, उसे करें ।
५. सनातन-निर्मित ‘सप्तदेवताआें के तारक एवं मारक नामजप’ का महत्त्व
५ अ. काल के अनुसार नामजप की निर्मिति : कोई भी बात काल के अनुसार की गई, तो उससे अधिक लाभ मिलता है । ‘काल के अनुसार आजकल देवताआें के तारक एवं मारक तत्त्व किस प्रकार के नामजप से अधिक मिल सकते हैं’, अध्यात्मशास्त्र की दृष्टि से इसका अध्ययन कर ये नामजप ध्वनिमुद्रित किए गए हैं । इसके लिए महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की संगीत समन्वयक कु. तेजल पात्रीकर ने परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी के मार्गदर्शन में अनेक प्रयोग किए । उससे ये नामजप तैयार हुए हैं । इसलिए इन नामजपों को करने से प्रत्येक साधक को उसके भाव के अनुसार आवश्यक संबंधित देवता का तारक अथवा मारक तत्त्व मिलने में सहायता होगी ।
५ आ. काल के अनुसार बढते जा रहे अनिष्ट शक्तियों के कष्ट दूर होने हेतु उपयुक्त नामजप : वर्ष २०२३ में सात्त्विक एवं आदर्श ‘हिन्दू राष्ट्र’ (ईश्वरीय राज्य) स्थापित होनेवाला है । वह न हो; इसके लिए वातावरण में व्याप्त अनिष्ट शक्तियां अपना पूरा बल एकत्रित कर विरोध कर रही हैं । उसके फलस्वरूप साधकों के शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक कष्टों में बहुत वृद्धि हो रही है । मारक भाव के नामजप काल के अनुसार परिणामकारक होने से तीव्र आध्यात्मिक कष्टवाले व्यक्तियों को इन नामजपादि उपचारों की दृष्टि से अधिक लाभ मिल सकता है । इसके अंतर्गत सप्तदेवता श्रीकृष्ण, श्रीराम, दत्त, श्री गणपति, शिव, हनुमान एवं श्री दुर्गादेवी के मारक एवं तारक नामजप ध्वनिमुद्रित किए गए हैं ।
५ इ. अधिक बीमार एवं वास्तुशुद्धि के लिए भी नामजप लाभदायक : अधिक बीमार व्यक्तियों को स्वयं नामजप करना संभव न हो, तो वे ये नामजप सुनें, उन्हें उनसे भी लाभ मिलेगा । आजकल अनिष्ट शक्तियों के बढते आक्रमणों के कारण वास्तु भी प्रभावित होकर रज-तम स्पंदनों से दूषित होती है । घर में पूरा दिन नामजप चलाने से उससे वास्तुशुद्धि होकर घर का वातावरण भी प्रसन्न होने में सहायता मिलेगी ।
५ ई. इन नामजपों के पीछे स्थित परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का संकल्प : पूरे विश्व के साधकों के आध्यात्मिक कष्ट शीघ्र दूर हों, साथ ही उन्हें देवताआें के तत्त्वों का अधिकाधिक लाभ मिले; इसके लिए डॉ. आठवलेजी ने काल के अनुसार इन नामजपों की निर्मित करवाई है । इसमें अप्रत्यक्ष रूप से उनका संकल्प कार्यरत होने से साधकों ने इन नामजपों के अनुसार नामजप किया, तो उससे उनके कष्ट दूर होने में, साथ ही उन्हें देवताआें के तत्त्वों का लाभ मिलने में निश्चितरूप से सहायता मिलेगी ।
६. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा मारक नामजप की बताई गई विशेषताएं
अ. धर्मसभा में घोषणाएं करने से मानसिक स्तर पर रजोगुण बढता है । इन नामजपों में मारक भाव होने से भले ही वे रज-सत्त्वप्रधान हों; परंतु उन्हें सुनने पर मानसिक स्तर का रजोगुण न बढकर सुननेवाले को उससे आध्यात्मिक रजोगुण का अनुभव करना संभव होगा !
आ. मारक भाव का प्रत्येक नामजप करते समय देवता के नाम में समाहित अक्षर पर बल दिया गया है ।
इ. हम ये नामजप अधिकाधिक ९० प्रतिशत तक (अंतिम सीमा) कर सकेंगे । शेष १० प्रतिशत नामजप ईश्वर स्वयं पूरा करवाएंगे । हमने ये नामजप अभी १०० प्रतिशत पूरे किए, तो आज की स्थिति में समाज उन्हें सहन नहीं कर पाएगा । इसका अर्थ यह कि आजकल समाज की सात्त्विकता अल्प होने के कारण यदि नामजप १०० प्रतिशत भी पूरे किए, तो उन नामजपों में समाहित चैतन्य सहन न होने से कुछ लोगों को इन नामजपों के कारण कष्ट भी हो सकता है ।
ई. समाज में नामजप करनेवाले ९० प्रतिशत व्यक्तियों का झुकाव भावपूर्ण नामजप करने की ओर ही होता है । भले ही ऐसा हो; परंतु अन्य १० प्रतिशत व्यक्ति, जिनके लिए मारक भाव का नामजप उपयुक्त है, वे इस नामजप से वंचित न रहें; इसके लिए उन्हें भी ध्वनिमुद्रित किया गया है ।
आजकल समाज के लिए उपलब्ध नामजप एवं तारक-मारक नामजप करने अथवा सुनने की पद्धति आजकल समाज के लिए श्रीराम एवं दत्त देवता के ‘श्रीराम जय राम जय जय राम’, ‘श्री गुरुदेव दत्त’, ‘ॐ ॐ श्री गुरुदेव दत्त ॐ ॐ’ और ‘ॐ’ ये तारक एवं मारक नामजप उपलब्ध हैं । अन्य देवताआें के नामजप भी शीघ्र उपलब्ध होंगे ।
अ. उक्त तारक एवं मारक नामजप प्रत्येक व्यक्ति आधे घंटे तक करेें अथवा सुनें । आ. आध्यात्मिक कष्टवाले व्यक्तियों को इन नामजपों में से जो नामजप करते अथवा सुनते समय अधिक कष्ट प्रतीत होता है, वे नामजपादि उपचार के रूप में उसे सुनें । इ. आध्यात्मिक कष्ट रहित साधकों को इन नामजपों मेें जो नामजप करते अथवा सुनते समय अधिक अच्छा प्रतीत होता है, वे उपचार के रूप में वह नामजप सुनें । ये नामजप हमारे जालस्थल, साथ ही ‘चैतन्यवाणी एप’, इन दोनों स्थानों पर उपलब्ध हैं । आप उनका अवश्य लाभ उठाएं । आपके परिजन, संबंधी और स्नेहीजनों को भी इन नामजपों के संदर्भ में जानकारी दें, जिससे उन्हें भी उनका लाभ लेना संभव हो । ये नामजप निम्नांकित लिंक पर उपलब्ध हैं । : www.sanatan.org/mr/audio-gallery ‘सनातन चैतन्यवाणी’ एप डाउनलोड करें www.sanatan.org/Chaitanyavani इन नामजपों को सुनते समय आपको कोई विशेषतापूर्ण अनुभूतियां हुईं तो हमें अवश्य सूचित करें । इसके लिए हमारा इ-मेल पता है [email protected] |
– कु. तेजल पात्रीकर, संगीत विशारद, संगीत समन्वयक, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.
बुरी शक्ति : वातावरण में अच्छी तथा बुरी (अनिष्ट) शक्तियां कार्यरत रहती हैं । अच्छे कार्य में अच्छी शक्तियां मानव की सहायता करती हैं, जबकि अनिष्ट शक्तियां मानव को कष्ट देती हैं । प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के यज्ञों में राक्षसों ने विघ्न डाले, ऐसी अनेक कथाएं वेद-पुराणों में हैं । ‘अथर्ववेद में अनेक स्थानों पर अनिष्ट शक्तियां, उदा. असुर, राक्षस, पिशाच को प्रतिबंधित करने हेतु मंत्र दिए हैं ।’ अनिष्ट शक्ति के कष्ट के निवारणार्थ विविध आध्यात्मिक उपाय वेद आदी धर्मग्रंथों में वर्णित हैं ।