‘शुक्रवार, ३०.१०.२०२० को सायंकाल ५.४६ के पश्चात ‘शरद पूर्णिमा’ प्रारंभ हो रही है । इस वर्ष ‘अधिक अश्विन मास’ होने के कारण अश्विन पूर्णिमा को ‘शरद पूर्णिमा (कोजागरी पूर्णिमा)’ है ।
१. अश्विन पूर्णिमा के विविध नामों का अर्थ
अश्विन पूर्णिमा को ‘शरद (कोजागरी) पूर्णिमा’, ‘नवान्न पूर्णिमा’ अथवा ‘शरद पूर्णिमा’ के नाम से जाना जाता है । जिस दिन पूर्णिमा पूर्ण होती है, उस दिन ‘नवान्न पूर्णिमा’ मनाई जाती है ।
अ. अश्विन पूर्णिमा की उत्तररात्रि को लक्ष्मीदेवी ‘को जागरति’ अर्थात ‘कौन जाग रहा है ?’, ऐसा पूछती हैं; इसलिए इस पूर्णिमा को ‘कोजागरी पूर्णिमा’ कहते हैं ।
आ. किसान अश्विन पूर्णिमा को प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए नए अनाज की पूजा कर उसका भोग लगाते हैं; इसलिए इस पूर्णिमा को ‘नवान्न पूर्णिमा’ कहते हैं ।
इ. अश्विन पूर्णिमा शरदऋतु में आती है; इसलिए इस पूर्णिमा को ‘शरद पूर्णिमा’ कहते हैं ।
२. पूर्णिमा तिथि दो दिन हो तो किस दिन शरद पूर्णिमा (कोजागरी पूर्णिमा) मनानी चाहिए ?
ज्योतिषशास्त्रानुसार सूर्योदय के समय जो तिथि होती है उसे ग्राह्य माना जाता है । हिन्दू पंचांगानुसार अश्विन महीने में मध्यरात्रि की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा (कोजागरी पूर्णिमा) मनाई जाती है । इस वर्ष ३०.१०.२०२० को सायंकाल ५.४६ बजे से ३१.१०.२०२० की रात्रि ८.१९ बजे तक पूर्णिमा तिथि है । ३०.१०.२०२० को मध्यरात्रि पूर्णिमा होने के कारण शरद पूर्णिमा (कोजागरी पूर्णिमा) मनाई जानेवाली है ।
३. शरद (कोजागरी)पूर्णिमा को चंद्रमा देखने का ज्योतिषशास्त्रीय महत्त्व
इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के सर्वाधिक निकट रहता है । इस दिन देवी लक्ष्मी और इंद्रदेवता का पूजन किया जाता है । इस कारण लक्ष्मीजी की कृपा से सुखसमृद्धि प्राप्त होती है । रात्रि को दूध में चंद्रमा का दर्शन करने से चंद्रमा की किरणों के माध्यम से अमृतप्राप्ति होती है ।‘अश्विन पूर्णिमा’ को चंद्रमा अश्विनी नक्षत्र में होता है । अश्विनी नक्षत्र के देवता ‘अश्विनीकुमार’ हैं । अश्विनीकुमार सर्व देवताआें के चिकित्सक हैं । अश्विनीकुमार की आराधना करने से असाध्य रोग ठीक होते हैं । इसलिए वर्ष की अन्य पूर्णिमाओं की तुलना में अश्विन पूर्णिमा को चंद्रमा के दर्शन से कष्ट नहीं होता ।
ज्योतिषशास्त्र में चंद्रमा ग्रह को मन का कारक माना गया है । इसलिए हमारी मानसिक भावनाएं, निराशा और उत्साह चंद्रमा से संबंधित हैं । जिनकी जन्मकुंडली में चंद्रमा बल न्यून होता है, उन्हें पूर्णिमा के आसपास मानसिक कष्ट होने की मात्रा बढती है । जिनकी जन्मकुंडली में चंद्रमा का बल अच्छा है, उनकी प्रतिभा पूर्णिमा के चंद्रमा, चांदनी के वातावरण में जागृत होती है । उन्हें काव्य सूझता है ।
चंद्रमा मातृकारक ग्रह है, अर्थात कुंडली के चंद्रमा से माता के सुख का अध्ययन करते हैं । अश्विन पूर्णिमा को चंद्रमा की साक्षी से माता कृतज्ञताभाव से अपनी ज्येष्ठ संतान की आरती उतारती है; क्योंकि प्रथम संतान के जन्म के उपरांत स्त्री को मातृत्व का आनंद प्राप्त होता है ।’
– श्रीमती प्राजक्ता जोशी, ज्योतिष फलित विशारद, वास्तु विशारद, अंक ज्योतिष विशारद, रत्नशास्त्र विशारद, अष्टकवर्ग विशारद, सर्टिफाइड डाउसर, रमल पंडित, हस्ताक्षर मनोविश्लेषणशास्त्र विशारद, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, रामनाथी, फोंडा, गोवा.(११.१०.२०२०)