शुद्ध आश्विन शु.प. १४ (३० अक्टूबर)
‘इस दिन नवान्न (नए धान्य से) भोजन बनाते हैं । इस व्रत के रात्रिकाल में लक्ष्मी एवं ऐरावत पर बैठे इंद्र की पूजा की जाती है । पूजा के पश्चात देव व पितरों को कच्चा चिवडा (पोहे) एवं नारियल का जल समर्पित कर उसका प्राशन नैवेद्य के रूप में करते हैं; तदुपरांत उसे सभी को बांटते हैं । शरद ऋतु की पूर्णिमा की श्वेत चांदनी में चंद्र को गाढे किए गए दूध (खीर) का नैवेद्य चढाते हैं । चंद्र के प्रकाश में एक प्रकार की आयुर्वेदिक शक्ति है । इसलिए यह दूध आरोग्यदायी है । इस रात जागरण करते हैं । मनोरंजन के लिए विविध खेल बैठकर खेलते हैं । अगले दिन सवेरे पूजा के पारण (व्रत के उपरांत पहला भोजन करने की क्रिया) करते हैं ।’’ (संदर्भ : सनातन का ग्रंथ ‘धार्मिक उत्सव एवं व्रतों का अध्यात्मशास्त्रीय आधार’)