दशहरा कैसे मनाएं !

दशहरे के पहले नौ दिनों की नवरात्रि में दसों दिशाएं देवी की शक्‍ति से प्रभारित होती हैं एवं उन पर नियंत्रण प्राप्‍त होता है, अर्थात दसों दिशाओं के दिक्‌भव, गण इत्‍यादि पर नियंत्रण प्राप्‍त होता है, इससे दसों दिशाओं पर विजय प्राप्‍त होती है ।

१. सीमोल्‍लंघन : अपराह्नकाल (तीसरे प्रहर, दोपहर) में गांव की सीमा के बाहर ईशान्‍य दिशा की ओर सीमोल्‍लंघन हेतु जाते हैं । जहां शमी वृक्ष अथवा कचनार का वृक्ष होता है, वहां रुक जाते हैं ।

२. शमीपूजन : ऊपर चौखट में उल्लेखित श्‍लोकों का उच्‍चारण कर शमी की प्रार्थना करते हैं । शमी पापों का नाश करती है ।

३. कचनार का पूजन : इस समय निम्‍नांकित मंत्र का उच्‍चारण करें –
अश्‍मन्‍तक महावृक्ष महादोषनिवारण ।
इष्‍टानां दर्शनं देहि कुरु शत्रुविनाशनम् ॥
अर्थ : हे अश्‍मंतक (कचनार) महावृक्ष, तुम महादोषों का निवारण करनेवाले हो । मुझे मेरे मित्रों का दर्शन करवाओ और मेरे शत्रु का नाश करो ।
तदुपरांत शमी या कचनार वृक्ष के नीचे चावल, सुपारी एवं सुवर्ण अथवा तांबे की मुद्रा रखते हैं । फिर वृक्ष की परिक्रमा कर उसके मूल (जड) की थोडी मिट्टी एवं उसके पत्ते घर लाते हैं ।

४. कचनार केपत्तों को सोने के रूप में देना : शमी के नहीं; अपितु कचनार के पत्ते सोने के रूप में भगवान को अर्पण करते हैं एवं इष्‍टमित्रों को देते हैं । बुजुर्गों को सोना दें, ऐसा संकेत है ।

५. अपराजितापूजन : जहां शमी की पूजा होती है, उस स्‍थान की भूमि पर अष्‍टदल बनाकर अपराजिता की मूर्ति रखते हैं एवं उसकी पूजा कर आगे दिए गए मंत्र द्वारा प्रार्थना करते हैं ।
हारेण तु विचित्रेण भास्‍वत्‍कनकमेखला ।
अपराजिता भद्ररता करोतु विजयं मम ॥
अर्थ : गले में विचित्र हार धारण करनेवाली, जिसके कटि पर जगमगाती स्‍वर्णकरधनी (मेखला) है एवं भक्‍तों के कल्‍याण हेतु जो तत्‍पर है, ऐसी हे अपराजिता देवी मुझे विजयी करे ।
कुछ स्‍थानों पर अपराजिता की पूजा सीमोल्‍लंघन हेतु जाने से पूर्व भी की जाती हैं ।

६. शस्‍त्र व उपकरणों का पूजन : इस दिन राजा व सामंत-सरदार, अपने शस्‍त्रों-उपकरणों को स्‍वच्‍छ कर व पंक्‍ति में रखकर उनकी पूजा करते हैं । उसी प्रकार किसान एवं कारीगर अपने उपकरणोें एवं शस्‍त्रों की पूजा करते हैं । (कुछ लोग यह शस्‍त्रपूजा नवमी पर भी करते हैं ।) लेखनी व पुस्‍तक, विद्यार्थियों के शस्‍त्र ही हैं, इसलिए विद्यार्थी उनका पूजन करते हैं । इस पूजन का उद्देश्‍य यही है कि उन विषय-वस्‍तुओं में ईश्‍वर का रूप देख पाए; अर्थात ईश्‍वर से एकरूप होने का प्रयत्न करना ही है ।

शस्‍त्रपूजा हेतु प्रार्थना 
शस्‍त्रपूजा करते हुए ईश्‍वर और गुरु से यह प्रार्थना की जाती है, ‘आपके द्वारा उपयोग किए जानेवाले शस्‍त्र सूक्ष्म से कार्यरत होने दें तथा हमें ईश्‍वर और गुरु से शक्‍ति तथा चैतन्‍य मिलने दें ।’

७. राजविधान : दशहरा विजय का त्‍योहार है, इसलिए इस दिन राजाओं के लिए विशेष विधान बताया गया है ।
(संदर्भ : सनातन का ग्रंथ
‘त्‍योहार मनानेकी उचित पद्धतियां एवं अध्‍यात्‍मशास्‍त्र’)

दशहरे के दिन करने योग्‍य चार कृत्‍य – सीमोल्लंघन, शमीपूजन, अपराजितापूजन, शस्‍त्रपूजा

श्री सरस्‍वतीपूजन एवं शस्‍त्रपूजन

‘दशहरे पर सरस्‍वतीतत्त्व की क्रियात्‍मक पूजा से जीव के व्‍यक्‍त भाव का अव्‍यक्‍त भाव में रूपांतर होकर उसे स्‍थिरता प्राप्‍त करने में सहायता होती है ।

शमीपूजन

शमी शमयते पापं शमी लोहितकण्‍टका ।
धारिण्‍यर्जुनबाणानां रामस्‍य प्रियवादिनी ॥
करिष्‍यमाणयात्रायां यथाकाल सुखं मया ।
तत्र निर्विघ्‍नकर्त्री त्‍वं भव श्रीरामपूजिते ॥

अर्थ : शमी पापों का नाश करती है । इसके कांटे तांबे के रंग के होते हैं । शमी राम की स्‍तुति करती है तथा अर्जुन के बाणों को धारण करती है । हे शमी, श्रीराम ने तुम्‍हारी पूजा की है । मैं यथाकाल विजययात्रा पर निकलूंगा । तुम मेरी इस यात्रा को निर्विघ्‍न एवं सुखमय करो ।