परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

प्रत्‍येक पीढी का कर्तव्‍य !

     ‘प्रत्‍येक पीढी अपनी अगली पीढी की ओर समाज, राष्‍ट्र और धर्म के विषय में आशाभरी दृष्‍टि से देखती है । ऐसा न कर, प्रत्‍येक पीढी यह सोचे कि ‘हम क्‍या कर सकते हैं ?’ यह विचार रख, ऐसा कार्य करना चाहिए कि अगली पीढी को उस विषय में कुछ करने की आवश्‍यकता न रहे, जिससे वह अपना पूरा समय साधना में लगा सके !

     ‘विज्ञान के पास बहुत अल्‍प और अधूरी जानकारी होती है । इसीलिए कोई सिद्धांत निश्‍चित करने के लिए उसे बार-बार शोध करना पडता है । इसके विपरीत, अध्‍यात्‍म में सब ज्ञात रहता है; इसलिए ऐसा नहीं करना पडता । अध्‍यात्‍म में शोध इसलिए करना पडता है कि विज्ञानयुग की वर्तमान पीढी अध्‍यात्‍म पर विश्‍वास करे और अध्‍यात्‍म की ओर मुडे ।’

     ‘निर्धन होने अथवा न होने का मूल कारण ‘प्रारब्‍ध’ है’, यह जिन्‍हें ज्ञात नहीं, ऐसे लोग साम्‍यवाद पर गप्‍पें मारते हैं और निर्धन तथा धनी को समान बनाने का प्रयत्न करते हैं !’

–   (परात्‍पर गुरु) डॉ. आठवले